Download App

Latest News

सीएम ने देखी ‘चलो जीते हैं’ मूवी : पीएम मोदी के बचपन से है प्रेरित , मोहन ने मुक्त कंठ से की फिल्म की सराहनासीएम ने कटनी को 233 करोड़ की सौगात : बोले- अब कटनी बनेगा कनकपुरी, देश इकोनॉमी में देगा अहम यागदानलक्ष्य भेदने के लिए अनुकूल थी 7 मई की रात : आपरेशन सिंदूर पर बोले सीडीएस, स्कूली बच्चों से संवाद कर फौज में आने किया प्रेरितडांसिंग कॉप कान्स्टेबल लाइन अटैच : महिला के गंभीर आरोप पर हुआ एक्शन, जानें क्या है पूरा मामलादर्शकों को झटका : कल्कि 2898 एडी के सीक्वल से दीपिका पादुकोण बाहर, मेकर्स ने किया कंफर्मचामोली में कुदरत का सितम : आधी रात बादलने से मबले में समा गए तीन गांव-गौशालाएं और जिंदगियांगोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीदों को सीएम ने किया नमन : पिता-पुत्र की वीरता को भी याद, बोले- वे अपने संस्कारों पर सदैव अडिग रहेAyurveda : पैकेज्ड फूड नहीं, फल हैं असली पावरहाउस! आयुर्वेद से जानें खाने का सही तरीकाआनलाइन डिलीट नहीं हो सकता वोटर का नाम : राहुल ने बनाई गलत धारणा, ईसी ने आरोपों को सिरे से किया खारिजNDA जितना मजबूत होगा, बिहार उतना ही समृद्ध होगा : सासाराम में शाह की हुंकार, लालू फैमिली पर बोला जुबानी हमला

कांवड़ यात्रा : भारतीय संस्कृति-आध्यात्मिक परंपरा का एक अद्भुत और विराट स्वरूप

Featured Image

Author : Ganesh Sir

पब्लिश्ड : Invalid Date

अपडेटेड : 27-06-2025 07:46 AM

भगवान भोलेनाथ के सबसे प्रिय महीने सावन में लाखों शिव भक्त, जिन्हें कांवड़िए कहा जाता है, पवित्र नदियों से जल लेकर अपनी पीठ पर लादकर, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर भगवान शिव को चढ़ाने के लिए निकलते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाता है जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का एक अद्भुत और विराट स्वरूप है।

उत्पत्ति और महत्व

कांवड़ यात्रा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम पहले कांवड़िए थे जिन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर पुरा महादेव पर शिवलिंग का अभिषेक किया था। एक अन्य कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जहां विषपान के बाद भगवान शिव के शरीर में उत्पन्न हुई जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगाजल चढ़ाया था। तब से, शिव भक्त श्रद्धापूर्वक यह यात्रा करते आ रहे हैं, भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था व्यक्त करते हुए।

यात्रा का स्वरूप और त्याग-तपस्या का प्रतीक

कांवड़ यात्रा में शिव भक्त गंगा नदी, खासकर हरिद्वार, गौमुख, सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थानों से जल भरते हैं। इस जल को बांस से बनी श्कांवड़श् में रखा जाता है, जिसके दोनों सिरों पर कलश बंधे होते हैं। कांवड़िए गेरुए वस्त्र धारण करते हैं और श्बोल बमश्, श्बम बम भोलेश् जैसे जयकारों के साथ नंगे पैर यात्रा करते हैं। यह यात्रा अत्यंत कठिन होती है, जिसमें भक्त कई दिनों तक लगातार चलते हैं, विश्राम के लिए अस्थायी शिविरों का सहारा लेते हैं। इन शिविरों में स्वयंसेवकों द्वारा भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाती है, जो इस यात्रा की सामुदायिक भावना को दर्शाता है।

कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं, बल्कि यह त्याग, तपस्या और शारीरिक दृढ़ता का भी प्रतीक है। लंबी पैदल यात्रा, धूप, बारिश और शारीरिक कष्टों को सहते हुए भक्त अपने आराध्य के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करते हैं। इस यात्रा के दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है, जैसे जमीन पर सीधे सोना, तामसिक भोजन का त्याग करना और कांवड़ को जमीन पर न रखना।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव, चुनौतियाँ और प्रबंधनरू कांवड़ यात्रा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाती है, भाईचारे और एकता की भावना को बढ़ावा देती है। यह यात्रा न केवल धार्मिक भावनाओं को मजबूत करती है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान करती है, क्योंकि यात्रा मार्ग पर लगने वाले शिविरों और दुकानों से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।

इतने बड़े पैमाने पर होने वाली इस यात्रा के दौरान कुछ चुनौतियां भी आती हैं, जिनमें यातायात प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतजाम प्रमुख है। सरकारें और विभिन्न सामाजिक संगठन इन चुनौतियों से निपटने के लिए हर साल विशेष व्यवस्थाएं करते हैं, ताकि यात्रा सुचारू रूप से संपन्न हो सके।

कांवड़ यात्रा भारतीय संस्कृति की जीवंतता और धार्मिक आस्था की गहराई का एक शानदार उदाहरण है। यह न केवल भगवान शिव के प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि भारत की श्एकता में अनेकताश् की भावना को भी पुष्ट करती है, जहां लाखों लोग एक ही लक्ष्य के लिए, एक ही मार्ग पर एक साथ चलते हैं देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने।

Powered by Tomorrow.io

Advertisement

Ad

Related Post

Placeholder