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श्री महाकालेश्वर मंदिर:भस्मारती से पहले भोलेनाथ का हुआ अलौकिक श्रृंगार, एक झलक पाने उमड़े भक्त, विदेशी श्रद्धालुओं ने भी टेका माथा
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में गुरुवार सुबह से ही भक्तों का भारी जनसैलाब देखने को मिला। गुरुवार की तड़के सुबह ही लोग बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े। सुबह चार बजे मंदिर के पट खुलते ही पंडे और पुजारी गर्भगृह में पहुंचे और बाबा महाकाल का जलाभिषेक शुरू किया। पानी, दूध, दही, घी और पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया गया। इस दौरान पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। आज बाबा महाकाल का विशेष श्रृंगार भी किया गया। उनके मस्तक पर सुंदर त्रिपुंड और नवीन मुकुट धारण कराया गया। भांग, सूखे मेवे और अन्य शुभ सामग्री से श्रृंगार किया गया, जिससे पूरा मंदिर और भक्त दोनों ही मंत्रमुग्ध हो गए। लोगों ने महादेव को नमन किया और मन ही मन अपनी मनोकामनाएं मांगीं। महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भस्म अर्पित किए जाने के बाद पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल के उद्घोष से गूंज उठा।आरती के बाद सकार रूप में दर्शन देते हैं भगवानभस्म आरती का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस आरती के बाद भगवान निराकार से साकार रूप में दर्शन देते हैं। आज देश-विदेश से आए भक्तों ने इसका लाभ उठाया और बाबा महाकाल के दर्शन कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। यहां आए बच्चे, बुजुर्ग, पुरुष और महिलाएं सबके चेहरे पर श्रद्धा और आनंद साफ नजर आ रहा था।पूरे मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ थी, लेकिन व्यवस्थित व्यवस्था के कारण सभी को दर्शन का मौका मिल रहा था। मंदिर की पवित्रता और माहौल ने हर किसी को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। लोगों ने मंत्रोच्चारण किया, हाथ जोड़े और अपने जीवन में सुख-शांति की कामना की।नए साल के मौके पर भस्मारती की व्यवस्था में हुआ बदलावगौरतलब है कि श्री महाकालेश्वर मंदिर में नववर्ष के मौके पर भस्म आरती की व्यवस्था में बदलाव किया गया है। 25 दिसंबर से भस्म आरती की ऑनलाइन बुकिंग अगले 10 दिनों के लिए बंद रहेगी। इस दौरान श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए अब या तो ऑफलाइन परमिशन लेनी होगी या फिर चलित भस्म आरती का ही लाभ उठाना होगा। मंदिर प्रशासन ने ये कदम ज्यादा लोगों की भीड़ और सुरक्षित दर्शन के लिए उठाया है।

मंगलवार को करें राम भक्त की पूजा:विवि-विधान से भक्ति करने पर प्राप्त होते हैं मनोवांछित फल
नई दिल्ली। पौष माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि मंगलवार दोपहर 2 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। इसके बाद षष्ठी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा 10 दिसंबर रात 2 बजकर 22 मिनट तक कर्क राशि में विराजमान रहेगा। इसके बाद सिंह राशि में गोचर करेंगे।द्रिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 53 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इस तिथि पर कोई विशेष पर्व नहीं है, लेकिन आप वार के हिसाब से राम भक्त हनुमान की विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं।स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि मंगलवार के दिन हनुमान का जन्म हुआ था, जिस वजह से इस दिन बजरंग बली की विधि-विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय अपनाकर भक्त उनकी कृपा का पात्र बन सकते हैं।मंगलवार के दिन हनुमान भगवान की विधि-विधान से पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म-स्नान आदि करने के बाद पूजा स्थल को साफ करें। अब एक लकड़ी की चैकी लें, उस पर एक लाल कपड़ा बिछाएं और पूजा की सम्पूर्ण सामग्री और अंजनी पुत्र की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद, हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ कर सिंदूर, चमेली का तेल, लाल फूल और प्रसाद चढ़ाएं और बजरंग बली की आरती करें। इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण करें। साथ ही इस दिन शाम को भी हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।व्रत में केवल एक बार भोजन करें और नमक का सेवन न करें। मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से शक्ति और साहस में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि नियमपूर्वक बजरंगबली की पूजा करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

विशेष गहन पुनरीक्षण:कांग्रेस-विपक्ष को एसआईआर से क्यों दिक्कत, दिग्गी ने बताया, कही यह बात भी
भोपाल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने सोमवार को बताया कि आखिर क्यों उनकी पार्टी और विपक्ष के अन्य नेताओं की तरफ से मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) का विरोध किया जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हमें मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से कोई आपत्ति नहीं है। यह इस देश में पहले भी हुआ है, लेकिन इस बार जिस प्रक्रिया के तहत एसआईआर को किया जा रहा है, वो गलत है। इससे पहले, 2003 में एसआईआर के तहत बीएलओ आता था और सभी मतदाताओं का नाम पंजीकृत करता था। बीएलओ की ओर से सभी मतदाताओं के बारे में जानकारी जुटाई जाती थी। यहां तक कि वो खुद ही फॉर्म भरता था, लेकिन इस बार स्थिति काफी विपरीत नजर आ रही है। इस बार बीएलओ आ रहे हैं और लोगों को फॉर्म दे रहे हैं। इसके बाद उनसे भारत का नागरिक होने का प्रमाण मांग कर रहे हैं। उनसे कह रहे हैं कि हमें पुष्टि करके बताइए कि आप भारत के नागरिक हैं या नहीं? इसी वजह से हमें एसआईआर की प्रक्रिया से आपत्ति है।कांग्रेस नेता ने दावा किया कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) कराया जा रहा है। अगर आपको यही पता लगाना है कि भारत का असली नागरिक कौन है और कौन नहीं, तो इसके लिए आपको सीधे सीएए कराना चाहिए। आप भला एसआईआर की आड़ में इसे क्यों करा रहे हैं? इस तरह की स्थिति को भारतीय राजनीति में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हम इस पर ही आपत्ति जता रहे हैं।उन्होंने कहा कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत कई तरह की खामियां भी हो रही हैं। अभी हाल ही में मैं भोपाल के एक कार्यालय में गया था, वहां पर 30 मतदाताओं के नाम लगे हुए थे। मैं वहां पर गया तो मैंने उनसे पूछा कि आपका वोट कहां पर है? तो उन्होंने कहा कि भोपाल के मोहल्ले में हमारा वोट है। फिर, मैंने पूछा कि इस सूची में तो आप लोगों का नाम नहीं है ना? तो उन्होंने कहा कि हमारा नाम इस सूची में नहीं है। हमने 30 लोगों के नाम छांटे। इसके बाद बीएलओ से पूछा कि आपकी सूची ठीक है ना?, तो इस पर उन्होंने दावे से कहा कि हां, हमारी सूची ठीक है? घर में दो परिवार रह रहे थे। वो खटिक समुदाय से थे। वे किराए भी नहीं थे। वे जमीन पर कब्जा करके रह रहे थे। 30 मतदाताओं की सूची में सिर्फ एक लड़का वहां पर रहा था, बाकी के लोग वहां पर नहीं रह रहे थे, लेकिन वोट डाल रहे थे। अब हमने तो इस विसंगति को पकड़ लिया। हमने तय किया कि कि जिस बीएलओ और जिस आॅफिसर ने इस सूची को बनाया है, हम उसके खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराएंगे। अगर पुलिस की तरफ से संतुष्टिजनक कार्रवाई नहीं की गई तो हम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग की तरफ से स्पष्ट निर्देश दिया कि अगर किसी घर में 10 से ज्यादा मतदाता रहते हैं तो अस्टिटेंट रिटर्निंग आॅफिसर खुद उस घर में जाकर जांच करें कि वहां पर कुल कितने लोग रहते हैं, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके। वहां 30 लोग रह रहे थे, लेकिन अस्टिटेंट आॅफिसर ने जांच करने की जरूरत नहीं समझी। बीएलओ के ऊपर सुपरवाइजर भी होता है। बीएलओ और सुपरवाइजर का ट्रांसफर हो चुका था। इसके बाद दोनों नए आए हैं, लेकिन असिस्टेंट रिटर्निंग आॅफिसर पुराना ही है। हमने उनसे फोन पर भी बात की तो उन्होंने कहा कि हम पटवारी से बात करेंगे। फिर, हमने कहा कि पटवारी का इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है। अब जो नई बीएलओ थी, उनसे कहा कि मैं क्या करूं? पुराने बीएलओ नाम दर्ज किए थे। मैं अब नाम काट दूंगी। इसके बाद मैंने कहा कि सुपरवाइजर को बुलाओ, लेकिन उसने अपना फोन बंद कर लिया। यह केवल एक नमूना है। जिससे यह साफ जाहिर होता है कि एसआईआर में गड़बड़ी हो रही है।उन्होंने कहा कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर हम चाहते हैं कि खुलकर चर्चा हो। किसी भी पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जाए, लेकिन सत्तारूढ़ दल चर्चा से बच रहा है। एसआईआर के तहत 68 लाख मतदाताओं के नाम काट दिए गए हैं। अब केंद्र सरकार से मेरा यही कहना है कि आप इन लोगों को घुसपैठिए कब घोषित करेंगे?

राम मंदिर के शिखर पर फहराया धर्म ध्वज:श्रद्धा और भावनाओं से अभिभूत हुए साधु-संत, बताया सनातन गौरव का क्षण
अयोध्या। सनातन परंपरा और आस्था के प्रतीक धर्मध्वज का आज राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वज की स्थापना अयोध्या के साधु-संतों के लिए भावपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण बन गया। 500 वर्षों की प्रतीक्षा, संघर्ष और तपस्या के उपरांत प्रभु श्रीराम के दिव्य मंदिर पर धर्मध्वजा का आरोहण केवल एक धार्मिक क्षण ही नहीं बल्कि सनातन आस्था की वैश्विक प्रतिष्ठा का साक्ष्य बन रहा है। अवधपुरी के संत समाज ने श्रद्धा और भावनाओं से अभिभूत होकर इसे सनातन गौरव का क्षण बताया। वे इसे उस संघर्षपूर्ण यात्रा का फल मानते हैं जिसमें संतों, भक्तों और समाज ने सैकड़ों वर्षों में अदम्य धैर्य और आस्था का परिचय दिया।साधु-संतों का कहना है कि आज वह क्षण साकार हुआ है जिसकी कल्पना उनके पूर्वजों ने सदियों पूर्व की थी। धर्म ध्वजा का आरोहण भारतवर्ष की आध्यात्मिक विरासत को और भी मजबूत करता है तथा संपूर्ण विश्व में सनातन आस्था की महिमा को प्रखरता से स्थापित करता है।डबल की इंजन की सरकार ने सनातन परंपराओं का किया उद्धारसंत समाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका को इस उपलब्धि का महत्वपूर्ण आधार मानता है। उनका कहना है कि डबल इंजन सरकार ने सनातन परंपराओं के संरक्षण और मंदिर संस्कृति के पुनरुद्धार का जो कार्य किया है वह देश की आध्यात्मिक चेतना को सुदृढ़ कर रहा है। मठ मंदिरों का संवर्धन, धार्मिक स्थलों पर सुविधाओं के विस्तार और संतों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण को नई दिशा प्रदान की गई है।योगी को बताया धर्म परंपरा की रक्षा का प्रहरीराम वैदेही मंदिर के प्रतिष्ठित संत दिलीप दास ने कहा कि अयोध्या मिशन के अंतर्गत सनातन संस्कृति का जिस प्रकार पुनरुद्धार हुआ है वह प्रशंसनीय है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धर्म की रक्षा और स्थापना के उद्देश्य से सतत संलग्न बताते हुए कहा कि वह केवल एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि धर्म परंपरा की रक्षा के प्रहरी हैं।विवाह पंचमी के अवसर पर आयोजित इस प्रतिष्ठा समारोह में साधु संतों द्वारा प्रभु श्रीराम और माता जानकी के विवाह पर्व का पूजन अर्चन भी किया गया। संत समाज का विश्वास है कि यह क्षण भारत के उज्ज्वल भविष्य की आस्था को और अधिक मजबूत करेगा तथा सनातन समाज के आत्मगौरव का शंखनाद साबित होगा।

राम मंदिर भव्य ध्वजारोहण समारोह:आज शाम से भक्तों के लिए बंद हो जाएंगे प्रभू के दर्शन, पीएम मोदी शिखर पर फहराएंगे भगवा ध्वज
अयोध्या । अयोध्या में दिव्य राम मंदिर में कल मंगलवार को भव्य ध्वजारोहण कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है। प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी मंदिर के शिखर पर भव्य ध्वजा फहराएंगे। कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, और सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहेंगे। ध्वजारोहण समारोह की तैयारियों के चलते सोमवार शाम से राम मंदिर में राम लला के दर्शन भक्तों के लिए बंद रहेंगे।ध्वजारोहण समारोह को देखते हुए सड़कों को लाइट और बैनर से सजाया जा रहा है। शहर के खास पॉइंट्स पर सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। मंदिर परिसर के आसपास का स्पिरिचुअल माहौल जश्न की गहरी भावना दिखाता है। बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले फूल-माला बेचने वाले नरेश कुमार ने कहा कि मंदिर बनने से उनकी रोजी-रोटी पूरी तरह बदल गई।बदल गई अयोध्या, बोले फूल विक्रेताउन्होंने कहा कि जब से राम मंदिर बना है, 99 प्रतिशत बदलाव आया है। हमारी बिक्री बहुत बढ़ गई है। हर दिन हम 2-3 क्विंटल माला बेचते हैं। मैं अब हर महीने लगभग 50,000-60,000 रुपए कमाता हूं। मंदिर के बनने से मिली स्थिरता की वजह से उनका परिवार अयोध्या में बस गया है। अगर पीएम मोदी ने यह मुमकिन नहीं किया होता, तो हम आज यहां नहीं होते। अयोध्या में 35 साल से काम कर रहे एक और फूल बेचने वाले संजय ने भी यही बात कही। उन्होंने कहा कि अयोध्या पूरी तरह बदल गई है। यहां का विकास बेमिसाल है। उन्होंने तीर्थयात्रियों के लगातार आने-जाने को लोकल व्यापारियों के लिए एक आशीर्वाद बताया।आध्यात्मिक गुरुओं ने कार्यक्रम के महत्व पूर दिया जोरआध्यात्मिक गुरुओं ने भी इस कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया है। तपस्वी छावनी के पीठाधीश्वर जगत गुरु परमहंस आचार्य जी महाराज ने कहा कि इस समारोह का सभ्यता के लिए बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी युगपुरुष हैं। उन्होंने न सिर्फ अयोध्या की खूबसूरती बढ़ाई है, बल्कि उसे त्रेता युग जैसा रूप दिया है। आज जो लोग आते हैं, वे बदलाव को साफ महसूस कर सकते हैं। वेदों और पुराणों में जिस तरह अयोध्या धाम का वर्णन किया गया है, वह फिर से हकीकत बन रहा है।जैसे-जैसे अयोध्या 25 नवंबर का इंतजार कर रहा है, मंदिरों का शहर सचमुच और सांकेतिक रूप से रोशन है, जो ऐतिहासिक राम मंदिर के आस-पास के सांस्कृतिक पुनरुत्थान और आर्थिक तरक्की को दिखाता है।

महाकालेश्वर मंदिर, बाबा के भव्य श्रृंगार ने मोहा भक्तों का मन:भोलेनाथ ने सुदर्शन चक्र और त्रिशूल धारण किए हुए मनोहारी स्वरूप में दिए दर्शन
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर के दरबार में सोमवार प्रातःकाल एक विशेष आध्यात्मिक माहौल देखने को मिला, जब मंदिर के पट खुलते ही पूरा परिसर जय श्री महाकाल के जयघोष से गूंज उठा। तड़के से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा और सभी ने उत्साहपूर्वक बाबा के दिव्य दर्शन किए। भस्म आरती के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ और अधिक बढ़ गई, जिससे उज्जैन की गलियां भी भक्तिमय रंग में रंग गईं। मंदिर के साथ ही आस-पास भी जय श्री महाकाल के जयघोष से गूंज उठा।सुबह सबसे पहले पुजारियों की ओर से बाबा महाकाल का हरि ओम जल से अभिषेक किया गया। इसके उपरांत पंचामृत दूध, दही, घी और शहद से पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार पूजन सम्पन्न हुआ। अभिषेक के बाद बाबा महाकाल का भव्य श्रृंगार किया गया, जिसने उपस्थित भक्तों का मन मोह लिया। हर कोई बाबा महाकाल का एक दर्शन करने के लिए लाइन में खड़ा रहा।भक्तों ने बाबा का दर्शन कर मांगी अपनी मनोकामनासोमवार को श्रृंगार विशेष रूप से इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि बाबा ने सुदर्शन चक्र और त्रिशूल धारण किए हुए मनोहारी स्वरूप में दर्शन दिए। यह अद्वितीय अलंकरण जैसे ही सामने आया, श्रद्धालुओं में हर्ष की लहर दौड़ गई और सभी ने हाथ जोड़कर बाबा का आशीर्वाद लेकर प्राप्त किया और अपनी मनोकामना मांगी।महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से बाबा को अर्पित की गई भस्मश्रृंगार के बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से बाबा को भस्म अर्पित की गई, जो उज्जैन की महाकाल परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन अनुष्ठान माना जाता है। भस्म आरती के मंत्रोच्चार, ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। आरती के दौरान उपस्थित श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो उठे और ‘महाकाल की जय’ और ‘जय श्री महाकाल’ के नारे पूरे परिसर में गूंजने लगे।अलौकिक स्वरूप ने भक्तों के मन को दी शांतिविशेष आरती में स्थानीय भक्तों के साथ-साथ दूर-दूर से आए यात्रियों ने भी हिस्सा लिया। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि महाकाल बाबा के इस अलौकिक स्वरूप ने उनके मन को शांति और ऊर्जा से भर दिया। मंदिर प्रशासन के अनुसार, त्योहारों के दिनों के समान ही सोमवार को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, जिससे महाकाल नगरी में धार्मिक माहौल पूरे दिन बना रहा।

देश के कोने-कोने में बसते हैं भगवान:राम मंदिर में ध्वजारोहरण कार्यक्रम को लेकर बोले पार्श्व गायक - ऐतिहासिक क्षण के तैयार बच्चा-बच्चा
नई दिल्ली। पार्श्व गायक कैलाश खेर अपनी मधुर आवाज से बॉलीवुड में बीते तकरीबन 22 सालों से राज कर रहे हैं। उनकी आवाज के बिना बॉलीवुड और लोक संगीत अधूरा लगता है। अब उन्होंने राम मंदिर ध्वजारोहण और अपने पिता की स्मृति में आयोजित मेहर रंगत 2025 के बारे में खुलकर बात की है। उन्होंने राम मंदिर को लेकर कहा कि भारत के कोने-कोने में भगवान राम बसते हैं और देश का बच्चा-बच्चा इस ऐतिहासिक क्षण के लिए तैयार है।25 नवंबर को विवाह पंचमी के दिन राम मंदिर पर केसरी ध्वजारोहण होगा। ध्वज पर कोविदार वृक्ष और ऊं की छवि होगी और ये पल देश के हर राम भक्त के लिए आस्था का दिन है। ध्वजारोहण पर बात करते हुए कैलाश खेर ने कहा, इस पावन अवसर पर समस्त भारतवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। 500 सालों से जिस स्वप्न का भारत को इंतजार था, वह अब साकार हो रहा है। यह एक ऐसा क्षण है जब देश के हर कोने में भगवान राम की उपस्थिति का एहसास हो रहा है। हर बच्चा और हर नागरिक इस ऐतिहासिक क्षण के प्रति जागरूक है, जो भारत के लिए एक स्वर्णिम युग का प्रतीक है। पूरा भारत राममय हो गया है।ष्मेहर रंग का आयोजन भावनात्मक उत्सवपिता की स्मृति में आयोजित मेहर रंगत 2025 पर बात करते हुए कैलाश खेर ने कहा कि आयोजन की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मेरे पिता की स्मृति में आयोजित मेहर रंगत का सातवां संस्करण मेरे लिए एक भावनात्मक उत्सव है जहां हम पूरे भारत के लोक संगीतकारों को एक मंच पर लाते हैं।21 नवंबर की रात हुआ था मेहर रंग का आयोजनबता दें कि मेहर रंगत 2025 का आयोजन 21 नवंबर की रात को हो चुका है, जहां दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता भी पहुंची थी। उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए संगीतकारों को शॉल देकर सम्मानित भी किया था। देर रात अनुपम खेर ने भगवान शिव के गानों से कार्यक्रम में जान डाल दी थी।

दक्षिण भारत का अद्भुत श्री केशवनाथेश्वर मंदिर:गुफा के अंदर मौजूद है भगवान शिव का रहस्यमयी मंदिर
नई दिल्ली। दक्षिण भारत अपने प्रसिद्ध और संपन्न मंदिरों के लिए जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कर्नाटक के जंगलों में प्रकृति की गोद में एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर है जिसे देखने के बाद आपको अनुभव होगा कि मानो आज भी भगवान शिव यहां विराजमान हैं? कर्नाटक के मुदूर गांव में गुफा के अंदर भगवान शिव का अद्भुत मंदिर श्री केशवनाथेश्वर मंदिर है, जहां तक पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। कर्नाटक से 50 किलोमीटर दूर कुंडापुरा के पास मुदूर गांव है, जो जंगलों के बीच बसा है। ऐसी ही प्रकृति के बीचों-बीच एक गुफा में, बहते झरने के पार भगवान शिव श्री केशवनाथेश्वर के रूप में विराजमान हैं।गांव के लोगों का मानना है कि यहां भगवान शिव स्वयं अवतरित हुए थे और यहां गुफाओं में आकर उन्होंने तपस्या की थी। मंदिर में हर वक्त एक पुजारी रहता है, जो भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता है। इसे दक्षिण भारत के सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक माना जाता है।यह मंदिर पहले इतना प्रसिद्ध नहीं था, लेकिन जब साउथ सुपरस्टार जूनियर एनटीआर इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आए, तब से मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ गई है। हालांकि, मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत मुश्किल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई सीधी सड़क नहीं है। जंगलों को पार करके ही भगवान शिव के अद्भुत दर्शन किए जा सकते हैं। गुफा के बाहर किसी तरह का कोई मंदिर नहीं है, लेकिन गुफा के अंदर गर्भगृह बना है। मंदिर के गर्भगृह में साल के ज्यादातर महीने में पानी भरा रहता है। भक्तों का मानना है कि पानी का जलस्तर साल भर एक जैसा स्थिर रहता है, लेकिन मानसून में थोड़ा बढ़ जाता है। वहीं गर्मियों में पानी सूखता भी नहीं है। इसलिए भक्त जल को चमत्कारी जल मानते हैं, जो साल भर हर मौसम में स्थिर रहता है।भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए घुटनों के बल चलकर गुफा के अंदर तक आते हैं। गुफा के पास ही झरने की सहायता से बना छोटा सा कुंड है, जिसमें रंग-बिरंगी मछलियां हैं। दर्शन करने आए श्रद्धालु दर्शन के बाद मछलियों को दाना भी खिलाते हैं। मंदिर के बाहर का प्रकृति का नजारा बेहद अद्भुत है, जो किसी का भी दिल मोह लेगा। मंदिर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बेलकल तीर्थ झरने भी हैं। यह एक जाना-माना पर्यटक स्थल है।

मार्गशीर्ष माह प्रतिपदा:कल विधि-विधान से करें मां लक्ष्मी और संतोषी माता की पूजा, मिलेगा सुख-सौभाग्य
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 21 नवंबर दोपहर 2 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वितीया तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में रहेंगे। द्रिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार को अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 10 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 7 मिनट तक रहेगा। इस दिन कोई विशेष पर्व नहीं है, लेकिन वार के हिसाब से आप शुक्रवार का व्रत रख सकते हैं।ब्रह्मवैवर्त और मत्स्य पुराण के अनुसार, शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी और संतोषी माता और शुक्र ग्रह की आराधना करनी चाहिए। इस तिथि पर विधि-विधान से पूजा करने से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।यह व्रत शुक्र ग्रह को मजबूत करने और उससे जुड़े दोषों को दूर करने के लिए भी रखा जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर माता रानी भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। अगर कोई भी जातक व्रत शुरू करना चाहता है तो किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से कर सकता है। आमतौर पर 16 शुक्रवार तक व्रत रखने के बाद उद्यापन किया जाता है।इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कें। एक चैकी पर लाल कपड़ा बिछा लें और उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। दीप जलाएं और फूल, चंदन, अक्षत, कुमकुम और मिठाई का भोग लगाएं। ‘श्री सूक्त’ और ‘कनकधारा स्तोत्र’ का पाठ करें। मंत्र जप करें, श्ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमःश् और श्विष्णुप्रियाय नमःश् का जप भी लाभकारी है।

मार्गशीर्ष अमावस्या:पितरों की कृपा पाने के लिए करें दान, मिलेगी जिंदगी के हर मोड़ पर सफलता
भोपाल। हर महीने पड़ने वाली अमावस्या अपने आप में विशेष होती है। मार्गशीर्ष के माह में आने वाली दर्श अमावस्या या मार्गशीर्ष अमावस्या बेहद खास होती है, क्योंकि इसे पितृों से जोड़कर देखा गया है। माना जाता है कि अगर पितृ अशांत हैं या उनकी तृप्ति के लिए तर्पण करना है, तो दर्श अमावस्या से बेहतर दिन नहीं हो सकता है। तो चलिए पहले ये जानते हैं कि दर्श अमावस्या कब है।मार्गशीर्ष के महीने में पड़ने वाली दर्श अमावस्या का मुहूर्त 19 नवंबर की सुबह 9 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 20 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से 20 नवंबर को दर्श अमावस्या मनाई जाएगी। दर्श अमावस्या के दिन पितृों के नाम से दान-पुण्य करना और गरीबों को भोजन कराना शुभ माना जाता है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन भगवान विष्णु और पितरों की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और फिर पितृों के नाम से गेंहू, चावल और काले तिलों का दान करना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन चीजों का दान करने से पितृ शांत होते हैं और परिवार पर कृपा बरसाते हैं।मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन सुबह पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अगर नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो घर पर ही बाल्टी में नदी का जल मिला लें। नहाते समय अपने पितरों का ध्यान करें। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही साबुत उड़द और कंबल का दान करना भी शुभ होता है। इससे पितृ अपने स्थान पर सुखी और प्रसन्न रहते हैं और राहु और केतू का नकारात्मक प्रभाव भी कम होता है।मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पक्षियों को दाना खिलाना बहुत शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्षियों के रूप में आकर दाना ग्रहण करते हैं। ऐसा करने से पितरों को शांति मिलती है। इसके अलावा, मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण भी कर सकते हैं। पितृ की कृपा से घर-परिवार सुखी रहता है, करियर में सफलता मिलती है और वंश वृद्धि भी होती है।

मासिक शिवरात्रि: कुंवारी कन्याएं और सुहागिन महिलाएं रखें व्रत! लाभ के लिए जानें सही पूजा विधि
प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। 18 नवंबर को मासिक शिवरात्रि के साथ आडल योग भी बन रहा है। इस दिन जातक भोलेनाथ की अराधना करते हैं और कुछ लोग व्रत भी रखते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 2 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर शाम 4 बजकर 6 मिनट तक रहेगा।मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन कुंवारी कन्याओं को व्रत रखने से महादेव की असीम कृपा रहती है, और अच्छे वर की प्राप्ति होती है, और विवाहित महिलाओं के व्रत रखने से उनके वैवाहिक जीवन बेहतर बना रहता है।पुराणों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती तथा रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते हैं, वे इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ करके एक वर्ष तक निरन्तर कर सकते हैं।मासिक शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चैकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें, गंगाजल से अभिषेक करें और बिल्वपत्र, चंदन, अक्षत, फल और फूल चढ़ाएं। भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र के जाप से भी लाभ मिलता है। 11 बार रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें। शिवलिंग के सम्मुख बैठकर राम-राम जपने से भी भोलेनाथ की कृपा बरसती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, आडल योग एक अशुभ योग माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। ऐसे में बचने के लिए धर्मशास्त्रों में सूर्य पुत्र की पूजा की विधि बताई गई है, जिसके करने से उनकी कृपा बनी रहती है और दुष्प्रभाव भी खत्म होते हैं।

प्राचीन मंदिर:मप्र में देवाधिदेव महादेव का वो रहस्यमय मंदिर, जिसे एक रात में भूतों ने था बनाया
मुरैना। भारत में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण हजारों साल पहले हुआ था। इनमें से कुछ मंदिर इतने पुराने होने के बावजूद उनकी दीवारें आज भी मजबूती के साथ खड़ी हैं। ये मंदिर इतिहास और वास्तुकला दोनों में लोगों को बहुत आकर्षित करते हैं। लेकिन, कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें रहस्य या भूतों की कहानी जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के सिहोनिया कस्बे में है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और जमीन से लगभग 115 फुट ऊंचाई पर बना हुआ है। मंदिर थोड़ी खंडहर की स्थिति में है, लेकिन यहां जाने पर आपको शिवलिंग और कई टूटे-फूटे अवशेष दिखाई देंगे। मंदिर तक पहुंचने के लिए थोड़ी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और रास्ते में दोनों तरफ कई खंभे दिखेंगे। मंदिर में मौजूद मूर्तियां काफी पुरानी हैं, कुछ टूटी हुई भी हैं, जिन्हें माना जाता है कि पहले के शासकों ने नुकसान पहुंचाया था। कई अवशेष आज ग्वालियर के म्यूजियम में रखे हुए हैं।इतिहास के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में कछवाहा वंश के राजा कीर्ति राज ने करवाया था। कहा जाता है कि रानी ककनावती भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं, इसलिए मंदिर का नाम उनके नाम पर रखा गया। मौसम और समय की मार से कुछ हिस्से नष्ट हो गए हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग भगवान शिव के दर्शन करने आते रहते हैं। सबसे दिलचस्प बात है कि स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण एक रात में भूतों ने किया था। माना जाता है कि भूतों ने मिलकर मंदिर बनाना शुरू किया और जैसे ही सुबह हुई, उन्हें निर्माण बीच में ही छोड़ना पड़ा। इसलिए मंदिर आज भी अधूरा सा दिखाई देता है। यही वजह है कि इसे भूतों का मंदिर भी कहा जाता है। हालांकि, इस कहानी की कोई ठोस पुष्टि नहीं है, फिर भी ये रहस्य इसे और रोचक बनाता है।

महाकाल मंदिर: भोलेनाथ का दिव्य दर्शन कर अभिभूत हुए भक्त, एक झलक पाने हर कोई दिखा बेकरार
उज्जैन। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बुधवार को सुबह तड़के उज्जैन बाबा महाकाल के दरबार में भक्तों को बाबा के दिव्य दर्शन देखने को मिले। बुधवार सुबह भस्म आरती के दौरान श्रद्धालु बाबा की एक झलक पाने के लिए बेकरार थे। वे रात से ही लंबी कतारों में लगे थे, लेकिन हर कोई बाबा की झलक का इंतजार कर रहा था।वहीं, सुबह 4 बजे से ही भक्तों को दर्शन देने के लिए बाबा महाकाल के कपट खुले। इस बार का बाबा का शृंगार कुछ खास था क्योंकि इस बार शृंगार के दौरान उनके मस्तक पर चमकता त्रिपुंड, बीच में त्रिनेत्र और पूरा शरीर पवित्र भांग से सजा हुआ था, जिसे देख लग रहा था कि जैसे स्वयं भोलेनाथ आ गए हों। उनकी आंखों में चमक देखने को मिल रही थी।पूरे दिन में 6 बार होती है भस्मारतीइसके बाद पूरे मंदिर परिसर में जय श्री महाकाल, हर हर महादेव और बम बम भोले के जयकारे गूंज रहे थे। इस वातावरण से पूरा मंदिर परिसर गुंजायमान हो गया। बाबा की भस्म आरती के बाद भी भक्तों के दर्शन का सिलसिला जारी रहा। उज्जैन महाकाल मंदिर में पूरे दिन 6 बार आरती होती है, जिसमें भस्म आरती सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। वहीं इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में बाबा की आरती का आनंद उठाते हैं।सूती कपड़े में बांधा जाता है भस्म कोबाबा महाकाल पर चढ़ाई जाने वाली कपिला गाय के गोबर से बने कंडे और पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के पेड़ की लकड़ियों को जलाकर तैयार की जाने वाली भस्म को एक सूती कपड़े में बांधा जाता है और उसे शिवलिंग पर बिखेरा जाता है। मान्यता है कि महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करने चाहिए। भस्म आरती करीब दो घंटे तक की जाती है। इस दौरान वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। साथ ही, आरती के दौरान ही महाकाल का शृंगार भी किया जाता है।

बटेश्वर नाथ का मंदिर:बिहार में बसने वाली इस काशी नगरी के बारे में नहीं जानते होंगे आप, महादेव के निवास के चुनी गई थी जगह
नई दिल्ली। बाबा विश्वनाथ की नगरी कहा जाने वाला वाराणसी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महादेव की पहली पसंद काशी नहीं थी? पहले बिहार में ही एक जगह को महादेव के निवास के लिए चुना गया था। यह जगह है बिहार का भागलपुर जिला, जिसे सिल्क सिटी यानी रेशम नगरी के नाम से जाना जाता है। भागलपुर के अंतर्गत छोटा सा शहर है कहलगांव। यहां मां गंगा की तेज धारा के बीच एक पहाड़ी पर बाबा बटेश्वर नाथ का मंदिर है, जिसे बटेश्वर धाम कहा जाता है।कहा जाता है कि काशी बसने से पहले देवर्षि नारद, देव शिल्पी विश्वकर्मा और वास्तुकार वास्तु पुरुष ने यही स्थान महादेव के निवास के लिए चुना था। लेकिन जब इस जमीन की नापी की गई, तो पता चला कि यह जगह कैलाश की भूमि से एक जौ कम है। बस थोड़ी सी जमीन की कमी की वजह से यह जगह काशी नहीं बन पाई। अगर उस समय जौ भर जमीन और मिल जाती, तो यह स्थान कैलाश के बराबर त्रिखंड बन जाता और महादेव आज भी यहीं विराजमान होते।यह जगह महादेव की शर्तों के अनुरूप थी। सबसे पहले, यहां गंगा उत्तरवाहिनी बहती है। दूसरी, यह ऋषि कोहल की तपोस्थली थी, जहां उन्होंने कठिन तपस्या की थी, इसलिए यह जगह पवित्र और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण थी। लेकिन, तीसरी शर्त कि भूमि कैलाश के बराबर होनी चाहिए, वह पूरी नहीं हुई। यही वजह थी कि महादेव का निवास स्थान बिहार में नहीं बन सका।बटेश्वर धाम का महत्व यहीं खत्म नहीं होता। कहा जाता है कि यहीं ऋषि वशिष्ठ ने भी घोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें रघुकुल का कुल गुरु बनने का वरदान दिया। इसी कुल में भगवान राम का जन्म हुआ और यहीं ऋषि वशिष्ठ ने महादेव की पूजा और साधना की थी।इस धाम की खास बात यह है कि बाबा बटेश्वर के शिवलिंग के सामने माता पार्वती का मंदिर नहीं बल्कि मां काली का मंदिर है, जो दक्षिण की ओर विराजमान हैं। इसलिए उन्हें दक्षिणेश्वरी काली कहा जाता है। यही कारण है कि यह जगह एक शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इसे तंत्र विद्या के लिए भी उपयुक्त माना गया है। इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, यहां गंगा और कोसी का संगम भी है। यह स्थान ऋषि दुर्वासा की तपोस्थली भी रहा है।

भस्मारती:बाबा महाकाल के मनमोहन स्वरूप का दर्शन कर धन्य हुए भक्त, माथे पर सुशोभित हो रही थीं चन्द्रमा
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों को बाबा महाकाल के दिव्य दर्शन देखने को मिले। मंगलवार सुबह बाबा महाकाल ने त्रिपुंड और माथे पर चंद्रमा के साथ भक्तों को अद्भुत दर्शन दिए। बाबा का मनमोहक रूप देखकर भक्तों ने भी बाबा महाकाल के जयकारे लगाए और देर रात से ही श्रद्धालु बाबा की भस्म आरती का हिस्सा बनने के लिए लाइन में लगे दिखे।सुबह 4 बजे भस्म आरती के लिए पट खुलने के बाद जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया गया। इसके बाद पुजारियों ने भगवान महाकाल का दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और फलों के रस से पंचामृत अभिषेक किया और भस्म आरती की। महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से शिवलिंग पर भस्म अर्पित की जाती है, जिसमें बाबा भक्तों को निराकार रूप में दर्शन देते हैं। भस्म आरती के बाद बाबा का चंदन से शृंगार किया गया और माथे पर चंद्रमा सुसज्जित किया गया और नवीन मुकुट पहनाकर बाबा पर फूलों पर माला अर्पित की गई।निराकार से साकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं बाबा महाकालशृंगार के बाद बाबा निराकार से साकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। बाबा का चंदन रजत रूप देखने के लिए भक्तों ने लाइन लगाकर दर्शन किए और पूरा मंदिर बाबा के जयकारों से गूंज उठा। बता दें कि भस्म आरती का हिस्सा बनने के लिए भक्तों को पहले ही ऑनलाइन पंजीकरण करवाना होता है और इस दिन भस्म आरती के लिए नंबर या टोकन मिलता है और भक्त उसी दिन दर्शन के लिए आते हैं। पंजीकरण के लिए मंदिर द्वारा निर्धारित शुल्क भी देना होता है।भस्मारती का दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं भक्तभस्म आरती का हिस्सा बनने के लिए दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। माना जाता है कि महाकाल की आराधना से कालदोष, ग्रहदोष और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। साथ ही अगर राहु-केतु के दोष परेशान कर रहे हैं तो भी भक्तों को मंदिर में अनुष्ठान और पूजा-पाठ के लिए जरूर आना चाहिए। बता दें कि महाकाल की पूरे दिन में 6 बार आरती होती है और 6 आरतियों का अपना अलग महत्व होता है।

महाकालेश्वर मंदिर: भस्मारती में भगवान ने दिए दिव्य दर्शन, देखने लायक था अनोखा श्रृंगार भी, मस्तक पर सुशोभित हुआ चांदी का चंन्द्रमा
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर सोमवार को भस्मारती के दौरान बाबा महाकाल के दिव्य दर्शन और श्रृंगार अत्यंत अनोखा और देखने लायक था। बाबा महाकाल को भांग की माला पहनाई गई और उनके मस्तक पर चांदी का चंद्रमा सुशोभित किया गया, जो देखने ही बनता था।भोलेनाथ का दिव्य दर्शन करे के लिए सुबह से भक्तों का तांता लगा है। रातभर श्रद्धालु भस्म आरती देखने के लिए लाइन पर खड़े थे। सुबह 4 बजे बाबा महाकाल के पट खुले और मंगला आरती हुई। भस्म आरती के बाद स्नान कर भक्तों ने पूजा-अर्चना की। मंदिर में दिनभर भजन-कीर्तन चलता रहा। महाकाल की कृपा से श्रद्धालुओं के चेहरे पर संतुष्टि और शांति झलक रही थी। सुबह से ही मंदिर में देश-विदेश से आए श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए आतुर दिखे। वहीं, कुछ भक्त रविवार रात से ही लाइन में लगे हुए थे।ताजे फलों के रस से हुआ भगवान का जलाभिषेकवहीं, मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि वीरभद्र जी की आज्ञा से पंचामृत और ताजे फलों के रस से भगवान का जलाभिषेक किया गया। इसके बाद महानिर्वाणी अखाडे के संतों ने भस्म शिवलिंग पर चढ़ाई। इसके बाबा ने निराकार से साकार रूप में दर्शन दिए। मंदिर परिसर में भक्तों के लिए यह अनोखा दृश्य था। हर तरफ श्जय महाकालश् और श्हर हर महादेवश् के उद्घोष गूंजने लगे।छह बार होती है बाबा महाकाल की आरतीउज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर में 6 बार आरती होती है, जिनमें बालभोग, भोग, पूजन, संध्या, और शयन आरती शामिल हैं। वहीं, आरती की शुरुआत सुबह 4 बजे से होती है। भस्म आरती करीब दो घंटे तक की जाती है। इस दौरान वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। साथ ही, आरती के दौरान ही महाकाल का श्रृंगार भी किया जाता है। बाबा महाकाल पर जो भस्म चढ़ाई जाती है, वह कपिला गाय के गोबर से बने कंडों, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के पेड़ की लकड़ियों को जलाकर तैयार की जाती है।

महाकालेश्वर मंदिर:भस्मारती में अद्भुत शृंगार के साथ भगवान ने भक्तों को दिए दर्शन, मस्तक पर ॐ लगा देख निहाल हुए आस्थावान
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में शनिवार तड़के भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल का अद्भुत शृंगार के साथ भगवान महाकाल के दर्शन हुए। अगहन मास कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर हर दिन की तरह प्रात 4 बजे बाबा की भस्म आरती की गई। इस दौरान भक्तों का तांता देखने को मिला। पूरा मंदिर परिसर बाबा की झलक देखकर हर हर महादेव के जयकारे से गूंज उठा।शनिवार की भस्म आरती बहुत खास रही, क्योंकि बाबा महाकाल ने आरती के बाद किए शृंगार में मस्तक पर ॐ लगाकर भक्तों को दर्शन दिए। बाबा के माथे पर लगा ॐ श्शांति का प्रतीक है, जिससे पूरे विश्व में शांति का संदेश दिया गया।बाबा की भस्म आरती के कुछ नियम होते हैं। श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा के मुताबिक, सबसे पहले सुबह 4 बजे भगवान वीरभद्र से आज्ञा लेकर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, जिसके बाद गर्भगृह में मौजूद सभी देवी-देवताओं की नियमानुसार आरती होती है और बाबा की भस्म आरती भी होती है।बाबा को श्वेत पत्र ओढ़ाकर अर्पित की गई भस्म बाबा की भस्म आरती के लिए महानिर्वाणी अखाड़े की तरफ से भस्म भेजी जाती है। भस्म आरती में बाबा का निराकार रूप दिखता है, जिसमें वो सिर्फ भस्म से स्नान करते हैं। भस्म आरती करने से पहले शनिवार के दिन बाबा पर दूध, दही, घी, शक्कर पंचामृत और फलों के रस से अभिषेक किया गया और श्वेत वस्त्र ओढ़ाकर भस्म आरती की गई, जिसके बाद बाबा को शृंगार से सजाया जाता है। शृंगार स्वरूप उनके माथे पर ॐ लगाकर मुकुट धारण कराया गया।बाबा के इस रूप को माना जाता है साकार स्वरूपजब बाबा का शृंगार पूरा हो जाता है, तो भक्त उनके अद्भुत रूप के दर्शन करते हैं। बाबा के इस रूप को साकार स्वरूप माना जाता है। हर दिन बाबा भस्म आरती के बाद अनोखा शृंगार करते हैं। शुक्रवार को बाबा ने अपने शृंगार में मस्तक पर चांद धारण किया था और नवीन मुकुट पहनकर भक्तों को दर्शन दिए थे।

ओडिशा:भक्ति और भव्यता की अनोखी मिसाल जगन्नाथ पुरी मंदिर, चारों द्वारों में छिपे हैं ये रहस्य भी
पुरी। ओडिशा का जगन्नाथ पुरी मंदिर भक्ति और भव्यता की एक अनोखी मिसाल है। जगन्नाथ जी को कलियुग का भगवान कहा जाता है और उनके मंदिर से जुड़ी बहुत सी रहस्यमयी और अद्भुत बातें हैं जो हर किसी को हैरान कर देती हैं। मंदिर के चारों द्वारों को लेकर भी कुछ अनोखी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर के चारों द्वार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग को दर्शाते हैं। सबसे पहले बात करते हैं पूर्व दिशा के द्वार की, जिसे सिंह द्वार कहा जाता है। यह मंदिर का मुख्य द्वार है और इसे मोक्ष का प्रतीक माना गया है। जब कोई भक्त इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करता है, तो ऐसा कहा जाता है कि उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसी द्वार के सामने प्रसिद्ध अरुण स्तंभ स्थित है, जिस पर भगवान सूर्य के सारथी अरुण देव की मूर्ति है। मान्यता है कि इस स्तंभ को देखने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।अब आते हैं दक्षिण दिशा के द्वार पर, जिसे अश्व द्वार या विजय द्वार कहा जाता है। प्राचीन काल में जब राजा या योद्धा युद्ध के लिए जाते थे, तो वे इसी द्वार से होकर मंदिर में प्रवेश करते थे और भगवान जगन्नाथ से विजय की कामना करते थे। इसीलिए इसे विजय का प्रतीक माना गया है। यह द्वार शक्ति, साहस और सफलता का प्रतीक है।तीसरा द्वार है पश्चिम दिशा में स्थित हस्ति द्वार, यानी हाथी द्वार। यह द्वार समृद्धि और सुख का प्रतीक है। इस द्वार पर भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है, जो विघ्नहर्ता और समृद्धि के देवता माने जाते हैं। भक्त मानते हैं कि इस द्वार से प्रवेश करने पर जीवन में धन, ज्ञान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।अंत में आता है उत्तर दिशा का व्याघ्र द्वार, जिसे बाघ द्वार भी कहा जाता है। यह द्वार धर्म और संरक्षण का प्रतीक है। इसे भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित माना जाता है, जो अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक हैं। यह द्वार हमें सिखाता है कि धर्म की रक्षा करना ही सच्चे जीवन का उद्देश्य है।इन चारों द्वारों के माध्यम से जगन्नाथ मंदिर जीवन के चार सिद्धांतों मोक्ष, विजय, समृद्धि और धर्म का संदेश भी देता है। यही कारण है कि जगन्नाथ मंदिर केवल एक तीर्थस्थान नहीं, बल्कि जीवन दर्शन का प्रतीक माना जाता है।

महाकालेश्वर मंदिर: भस्मारती में भोलेनाथ का हुआ दिव्य श्रृंगार, गणेश स्वरूप देख निहाल हुए भक्त
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में गुरुवार सुबह भक्तों का तांता लगा रहा। रात भर लाइन में खड़े श्रद्धालु भस्म आरती देखने के लिए लाइन पर खड़े थे। सुबह ठीक 4 बजे बाबा महाकाल जागृत हुए और भक्तों को अपना दिव्य रूप दिखाया। इस बार भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल का श्रृंगार अत्यंत अनोखा और दिव्य था। भक्तों को उनके दो मनमोहक स्वरूपों के एक साथ दर्शन हुए, जिससे मंदिर परिसर भक्तिमय हो उठा। सर्वप्रथम, बाबा महाकाल के मस्तक पर चंदन से बनी चंद्रमा की आकृति सुसज्जित की गई, जिसने उनके त्रिनेत्र स्वरूप को और भी अधिक आकर्षक बना दिया।दुर्लभ दृश्य देखकर भाव-विभोर हुए भक्तआरती का सबसे विशेष आकर्षण बाबा महाकाल का श्री गणेश स्वरूप में दर्शन देना था। उन्हें हाथी के समान सिर, बड़ी-बड़ी आंखें और गजेंद्र जैसे कान धारण कराए गए थे। यह अद्भुत और दुर्लभ दृश्य देखकर भक्तगण भाव-विभोर हो उठे। इस अलौकिक श्रृंगार के साक्षी बने श्रद्धालुओं ने जयकारों की गूंज से पूरे मंदिर परिसर को गुंजायमान कर दिया। हर तरफ श्जय श्री महाकाल और श्जय श्री गणेशश् का घोष सुनाई दे रहा था, जो शिव और शक्तिपुत्र गणेश के एकाकार स्वरूप के प्रति गहरी आस्था को दर्शाता है।महानिर्वाणी अखाड़े ने अर्पित की भस्मबता दें कि बाबा महाकाल की भस्म आरती सुबह 4 बजे होती है और इसे महानिर्वाणी अखाड़े की तरफ से बाबा को अर्पित किया जाता है और भस्म आरती के बाद बाबा का श्रृंगार किया जाता है, जिसके बाद भक्त एक-एक करके दर्शन करने के लिए आते हैं। हर दिन बाबा का श्रृंगार अलग-अलग तरीके से किया जाता है, जिसके दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।चंद्र-कमल श्रृंगार ने भक्तों का मोहा मन भस्म आरती की प्रक्रिया में पहले ज्योतिर्लिंग को वस्त्र से आच्छादित किया जाता है, फिर भस्म रमाई जाती है। इसके बाद भगवान को रजत मुकुट, त्रिपुंड, रुद्राक्ष, मुंडमाला और फूलों से सजाया जाता है। यह श्रृंगार प्रतिदिन अलग-अलग रूप में किया जाता है, जो भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। आज के चंद्र-कमल श्रृंगार ने भक्तों का मन मोह लिया।

हिन्दू धर्म का पवित्र त्योहार कार्तिक पूर्णिमा:राम नगरी से लेकर संगम नगरी तक उमड़ा आस्थावानों का हुजूम, बजरंगबली के जयकारों से गूंजी हनुमान गढ़ी
अयोध्या। हिंदू धर्म के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक कार्तिक पूर्णिमा आज बुधवार को मनाई जा रही है। प्रयागराज, हरिद्वार, रायबरेली और कई धार्मिक स्थलों पर भक्त आस्था की डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं। प्रयागराज के घाटों पर तो श्रद्धालुओं का तांता लगा ही हुआ है, स्नान के बाद भक्त हनुमान गढ़ी मंदिर में भी पहुंच रहे हैं और पुलिस प्रशासन भक्तों पर पुष्प वर्षा कर रहा है।कार्तिक पूर्णिमा पर हनुमान गढ़ी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों का आगमन हुआ है। बाबा हनुमान जी के दर्शन के लिए मंदिर के बाहर तक लाइन लगी है और पुलिस प्रशासन भक्तों को अलग-अलग कतारों के जरिए मंदिर के भीतर प्रवेश दे रहे हैं। भले ही मंदिर में भीड़ है, लेकिन भक्त लंबा इंतजार करने के साथ-साथ भगवान हनुमान के जयकारे भी लगा रहे हैं।हनुमान गढ़ी में पुलिस प्रशासन ने संभाला मोर्चामंदिर में दर्शन करने के लिए आई महिला भक्त ने बताया कि भीड़ को देखते हुए पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था बहुत अच्छी है, सभी भक्तों को अच्छे से दर्शन कराया जा रहा है, भले ही भीड़ ज्यादा है लेकिन पुलिस-प्रशासन ने सब संभाल रखा है और दर्शन के समय किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई। सीएम योगी के नेतृत्व में मंदिर प्रशासन और पुलिस प्रशासन मिलकर सब कुछ कर रहे हैं। एक अन्य महिला श्रद्धालु ने बताया कि दर्शन करके बहुत अच्छा लगा और दर्शन करने आए भक्तों पर फूलों की वर्षा भी की गई।रात तीन बजे से लगा भक्तों का तांतासुरक्षा में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मंदिर में दर्शन करने के लिए बहुत भीड़ आ रही है और इसलिए दर्शन के लिए दो रास्तों को खोला गया है। कोई अनहोनी न हो, उसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है और दर्शन करने के बाद तुरंत भक्तों को मंदिर से बाहर की तरफ भेजा जा रहा है, जिससे बाकी श्रद्धालु आराम से दर्शन कर सकें। सुबह लगातार 3 बजे ही भक्त मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं और ऐसा शाम तक चलने वाला है।बता दें कि अयोध्या के बाकी मंदिरों में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिरों की तरफ बढ़ रहे हैं।

मार्गशीर्ष माह की शुरुआत:गंगा स्नान, गीता पाठ और श्रीकृष्ण-मां लक्ष्मी की पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि
नई दिल्ली। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि गुरुवार को मार्गशीर्ष और मासिक कार्तिगाई है। इस दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा सुबह 11 बजकर 27 मिनट तक मेष राशि में रहेगा। इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे।द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 1 बजकर 26 मिनट से शुरू होकर 2 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।मार्गशीर्ष माह- स्कंद, नारद और शिव पुराण में मार्गशीर्ष माह का उल्लेख मिलता है, जिसमें इस माह में धार्मिक अनुष्ठान और दान पुण्य का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण में मार्गशीर्ष में व्रत और ब्राह्मणों को भोजन कराने के महत्व के बारे में बताया गया है, जबकि शिव पुराण में अन्नदान और चांदी के दान को महत्वपूर्ण बताया गया है।इस माह में भगवान कृष्ण और मां लक्ष्मी की उपासना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस माह में स्नान, पूजा, जप-तप और दान करने का विधान है, जिससे घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने से सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिलती है। मार्गशीर्ष माह सतयुग के आरंभ का प्रतीक भी है, जिससे इस माह की महत्ता और भी बढ़ जाती है।मान्यता है कि इस महीने में गंगा स्नान, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप और भगवान श्री कृष्ण की उपासना करना विशेष फलदायी माना जाता है। संध्याकाल में भी भगवान की उपासना करना अनिवार्य है। साथ ही बाल-गोपाल को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूर शामिल करें। ऐसा करना शुभ माना जाता है।मासिक कार्तिगाई- पुराणों के अनुसार मासिक कार्तिगाई, जिसे मासिक कार्तिगाई दीपम भी कहते हैं। यह त्योहार हर महीने तब मनाया जाता है, जब चंद्र मास के दौरान कार्तिगाई नक्षत्र प्रबल होता है। यह भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित है। इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने और दीप जलाने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है।

हरि-हर मिलन का दिन वैकुंठ चतुर्दशी:मणिकर्णिका स्नान से होगी मोक्ष की प्राप्ति, प्राचीनकाल से जुड़ा है घाट का महत्व
नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को इस साल 4 नवंबर, मंगलवार को वैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाएगा। यह दिन सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे हरि और हर का मिलन कहा जाता है, यानी भगवान विष्णु और भगवान शिव का मिलन। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन काशी में मणिकर्णिका घाट पर विशेष आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं। यह दिन धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।ऐसा माना जाता है कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु स्वयं काशी आए और मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके भगवान शिव की विधिवत पूजा की। भगवान शिव ने उनकी भक्ति देखकर आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन इस पवित्र घाट पर स्नान करेगा, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होगी। यही कारण है कि इस दिन मणिकर्णिका स्नान को विशेष महत्व प्राप्त है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति को केवल आध्यात्मिक लाभ ही नहीं मिलता, बल्कि उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी आती है।मणिकर्णिका घाट का महत्व प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह घाट केवल स्नान स्थल नहीं है बल्कि मोक्षदायिनी घाट और महाश्मशान के रूप में भी जाना जाता है। यहां अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अत्यंत पवित्र मानी जाती है और यहां की चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव मृतक के कान में पवित्र तारक मंत्र का उच्चारण करते हैं, जिससे मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि यहां स्नान करने और पूजा-अर्चना करने से जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को सांसारिक सुख का अनुभव भी होता है।इस पावन दिन की पूजा विधि भी विशेष होती है। भगवान विष्णु की पूजा निशीतकाल यानी मध्य रात्रि में की जाती है, जबकि भगवान शिव की पूजा अरुणोदय काल यानी प्रातःकाल में की जाती है। श्रद्धालु अरुणोदय काल में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते हैं, जिसे मणिकर्णिका स्नान कहा जाता है।पुराणों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने सबसे पहले इसी घाट पर स्नान किया और भक्तिपूर्वक भगवान शिव को एक हजार कमल के फूल अर्पित किए। जब एक फूल गायब हो गया, तो उनकी भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त इस घाट पर स्नान और पूजा करेगा, उसे सभी प्रकार के सुख और मोक्ष की प्राप्ति होगी।इसके अलावा, इस दिन दीपदान का भी विशेष महत्व है। कई श्रद्धालु 365 बाती वाला दीपक जलाते हैं, जिससे माना जाता है कि साल भर की पूजा का फल एक साथ प्राप्त होता है। काशी में बाबा विश्वनाथ का पंचोपचार विधि से पूजन और महाआरती भी इसी दिन होती है। तुलसी दल से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा करने की परंपरा है, जो जीवन में सकारात्मक विचार, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में शांति बनाए रखने के लिए लाभकारी मानी जाती है।

देवउठनी एकादशीः:हिन्दू धर्म में अतंत्य पवित्र है यह तिथि, तुलसी विवाह का भी है विशेष महत्व, जानें शुभ मुहूर्त-पूजा विधि के बारे में
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाती है। देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। वहीं भक्त विशेष विधि से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर तुलसी विवाह भी करते हैं। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की सटीक तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि के बारे में...कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि शनिवार को सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। इसके बाद एकादशी शुरू हो जाएगी। इस दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा कुम्भ राशि में रहेंगे। द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 9 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। ऐसे में गृहस्थ लोग 1 नवंबर को और वैष्णव संप्रदाय के लोग 2 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत रखेंगे। दरअसल, गृहस्थ लोग पंचांग के अनुसार और वैष्णव परंपरा के साधक व्रत का पारण हरिवासर करते हैं।स्कंद और पद्म पुराण में देवउठनी एकादशी का विशेष उल्लेख स्कंद और पद्म पुराण में देवउठनी एकादशी का विशेष उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि इस तिथि को श्री हरि चार माह की योग निद्रा से जागृत होते हैं और सृष्टि का संचालन करना शुरू करते हैं और साथ ही इसके बाद से घर-घर में शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकदशी भी कहा जाता है और उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इस दिन तुलसी विवाह भी मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तुलसी पूजन और विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य प्राप्त होता है और व्रत रखने से भाग्य चमकता है और सभी कार्य सफल होते हैं।पूजा स्थल को साफ कर करें गंगाजल का छिड़काव इस दिन पूजा करने के लिए सुबह भोर में उठकर नित्य कर्म स्नान आदि करने के बाद पूजा स्थल को साफ करें और उसमें गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही इस दिन पीले वस्त्र धारण करें। अब पूजा स्थल पर गाय के गोबर में गेरु मिलाकर भगवान विष्णु के चरण चिह्न बनाएं और नए मौसमी फल अर्पित करें। अब दान की सामग्री, जिनमें अनाज और वस्त्र हैं, अलग से तैयार करें।भगवान और माता को लगाएं पंचामृत का भोगदीपक जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें और शंख-घंटी बजाते हुए उठो देवा, बैठो देवा मंत्र का उच्चारण करें, जिससे सभी देवता जागृत हों। पंचामृत का भोग लगाएं। अगर आप व्रत रखते हैं तो तिथि के अगले दिन पारण करते समय ब्राह्मण को दान दें।

श्री रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर:पशुराम भगवान ने की थी यहां शिवलिंग की स्थापना, ऋषियों की तपस्या से बना मुनिगिरी क्षेत्रम
नई दिल्ली। दक्षिण भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने इतिहास, पौराणिक कथा और बनावट के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित है, जहां भगवान शिव स्वयंप्रभू विराजमान हैं। इस मंदिर के गर्भग्रह पर सीधी सूरज की किरणें पड़ती हैं और भक्त ऐसा अद्भुत नजारा देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में रामलिंगेश्वर नगर के पास यानामालाकुडुरू में श्री रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर है, जहां गर्भगृह में स्थित भगवान शिव एक स्वयंभू देवता हैं, जिन्हें वायु लिंग भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना ऋषि परशुराम ने की थी। उन्होंने यहां भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वायु लिंगम रूप में विराजमान होने का वचन दिया था। किंवदंतियों में ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर की पहाड़ी पर 1000 से ज्यादा पवित्र संतों और ऋषियों ने कठोर तप किया था, जिसकी वजह से गांव का नाम श्वेयी मुनुला कुदुरुश् पड़ा, लेकिन बाद में इसे बदलकर श्यनामालाकुदुरुश् कर दिया गया।शिवरात्रि के समय मंदिर को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है और दूर-दूर से शिव भक्त मंदिर में भगवान शिव के वायु लिंगम अवतार के दर्शन करने के लिए आते हैं। श्री रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर शांत बहती कृष्णा नदी के पास बसा है, जो समंदर तल से 612 फीट ऊंची पहाड़ी पर बसा है। मंदिर के चारों ओर पहाड़ी क्षेत्र होने के साथ-साथ हरियाली भी भक्तों का दिल जीत लेती है। मंदिर जिस एरिया में बना है, उसे श्मुनिगिरी क्षेत्रमश् भी कहा जाता है क्योंकि यहां बहुत सारे ऋषि और मुनियों ने तपस्या की थी।इस पवित्र क्षेत्र का विकास करने और श्रद्धालुओं की पहुंच आसान बनाने के लिए मंदिर के पास विकास कार्य जारी है। मंदिर के पास मल्टीप्लेक्स पार्किंग की सुविधा के लिए बिल्डिंग तैयार की जा रही है और हैरानी की बात ये है कि इस बिल्डिंग को बनाने के लिए 70 करोड़ रुपए प्रशासन ने नहीं बल्कि शिव भक्त ने खर्च किए हैं। यानमलकुदुरु निवासी शिव भक्त सांगा नरसिम्हा राव मंदिर के आसपास निर्माण कार्य करा रहे हैं और अब तक 70 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। पिछले दो दशकों से लगातार नरसिम्हा राव अपनी निजी संपत्ति को मंदिर के विकास में लगा रहे हैं।

सौगात:अब उज्जैन के इतिहास और पवित्र शिप्रा की महिमा को जान सकेंगे भक्त, धार्मिक नगरी में लगा पहला लेजर लाइट एंड साउंड शो
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर की महिमा अपार है। बाबा महाकाल के दरबार में दूर-दूर से भक्त कष्टों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। अब उज्जैन के इतिहास और पवित्र शिप्रा नदी की महिमा को भी जान पाएंगे। मंदिर में भक्तों को उज्जैन के इतिहास से अवगत कराने के लिए लेजर लाइट शो रखा गया, और शो देखने के लिए भक्तों की भीड़ देखी गई।उज्जैन के बाबा महाकाल के मंदिर में वाटर स्क्रीन लाइट एंड साउंड शो श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। शो में भगवान महाकाल की संपूर्ण गाथा, शिप्रा नदी और उज्जैन का इतिहास इनोवेटिव तरीके से दिखाया गया, जिससे आज के युवा बाबा महाकाल और सनातन धर्म के बारे में जान सकें। शो 30 मिनट लंबा है, जिसमें इतिहास को पानी की स्क्रीन (वाटर स्क्रीन) पर प्रोजेक्शन के माध्यम से श्रद्धालुओं को दिखाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन दीपावली पर किया गया और पहले दिन मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शो देखा था। इस परियोजना को स्मार्ट सिटी और मध्य प्रदेश टूरिज्म ने मिलकर 18 करोड़ खर्च कर बनाया है।शो को देखने के लिए नहीं रखा गया कोई शुल्कनिगम कमिश्नर अभिलाष मिश्रा ने मीडिया को बताया कि लाइट एंड साउंड शो को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है और अभी शो को देखने के लिए कोई शुल्क नहीं रखा गया है। शो में उज्जैन का इतिहास और बाबा महाकाल की महिमा के बारे में बताया गया है, और कैसे पुराणों में मौजूद कथाओं की शुरुआत हुई। इन चीजों पर फोकस किया गया है।शो को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साहशो को लेकर श्रद्धालुओं के बीच भी उत्साह देखा गया। श्रद्धालु प्रियंका ने बताया कि उन्होंने पहले भी कई लेजर शो देखे हैं, लेकिन जो शो उन्होंने मंदिर में देखा, उसका वर्णन नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि ऐसे शो को देखने के बाद युवा पीढ़ी धर्म को समझेगी कि कैसे महाकाल उज्जैन की नगरी में स्थापित हुए। एक अन्य श्रद्धालु ने बातचीत में बताया कि किसी भी शो में इतने अच्छे तरीके से शिव महापुराण महिमा के बारे में नहीं बताया गया है। यह लाइटिंग साउंड शो धर्म और आधुनिक तकनीक का अनूठा संगम है।

भस्मारती: बाबा महाकाल को भांग, चंदन और सुगंधित पुष्पों से किया गया अलंकृत, निराकार से साकार रूप देख धन्य हुए भक्त
उज्जैन। कार्तिक मास के पावन अवसर पर शनिवार को विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में प्रात: 4 बजे भस्म आरती में भक्तों को भगवान महाकाल के दिव्य दर्शन प्राप्त हुए। सभा मंडप में वीरभद्र जी के कान में स्वस्ति वाचन कर घंटी बजाकर भगवान से आज्ञा लेकर सभा मंडप वाले चांदी के पट खोला गया। मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारियों ने गर्भगृह में विराजमान भगवान महाकाल का पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस) से अभिषेक कर पूजन-अर्चन किया। इसके बाद बाबा महाकाल को भस्म अर्पित की गई। बाबा महाकाल को भांग, चंदन, ड्रायफ्रूट्स और सुगंधित पुष्पों से अलंकृत किया गया। उनके मस्तक पर त्रिनेत्र स्वरूप बेलपत्र धारण कराया गया, जिसने उनके स्वरूप को और अलौकिक बना दिया। श्रृंगार के बाद हर किसी की नजर बाबा पर ही बनी रही।देखते ही बन रहा बाबा महाकाल का रूपरजत शेषनाग मुकुट और रुद्राक्ष की मालाओं से सुसज्जित महाकाल का रूप देखते ही बनता था। पूरी आरती के दौरान मंदिर परिसर में जय महाकाल के जयघोष गूंज उठे और वातावरण भक्तिमय हो गया। भस्म आरती में शामिल होने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते है।मंदिर परिसर में गूंजती रहीं भक्ति संगीत की ध्वनियांभक्तों ने बताया कि बाबा के निराकार से साकार होते हुए स्वरूप का साक्षात दर्शन करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। आरती के पश्चात पुजारियों की ओर से भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया और मंदिर परिसर में भक्ति संगीत की ध्वनियां गूंजती रहीं। आरती में हजारों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दिव्य दर्शन के लिए रात 1 बजे से ही मंदिर के बाहर लाइन में लगे हुए थे। महाकालेश्वर मंदिर प्रशासन के अनुसार, कार्तिक मास में प्रतिदिन विशेष अनुष्ठान और श्रृंगार किए जा रहे हैं। आज का श्रृंगार सबसे मनमोहक माना गया, जिसमें बाबा के त्रिनेत्र स्वरूप ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।हर दिन बाबा को नए स्वरूप किया जाता है तैयारउन्होंने बताया कि रोजाना बाबा को नए स्वरूप में तैयार किया जाता है। हर स्वरूप का अपना महत्व होता है। श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही देखने को मिलती है। एक-एक करके श्रद्धालुएं बाबा का दर्शन करते है, किसी को कोई परेशान न हो, इसका विशेष ध्यान दिया जाता है। सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंधन किए गए है। जगह-जगह सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात किया जाता है, जिससे किसी कोई परेशानी न हो और हर श्रद्धालु दर्शन पूजन कर सके।

छठ पर्व: यह केवल आस्था का नहीं, बल्कि प्रकृति ओर विज्ञान का है संगम, सदियों पुरानी है परपंरा
नई दिल्ली। भारत में जब लोग छठ मईया के गीत गाते हुए डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल आस्था का क्षण नहीं होता-यह प्रकृति और विज्ञान का संगम होता है। सदियों पुरानी यह परंपरा, जिसे आयुर्वेद और लोकसंस्कृति दोनों ने जीवन का संतुलन माना है।छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि यह केवल पूजा नहीं, बल्कि सूर्योपासना है। वेदों में कहा गया है, “सूर्योऽत्मा जगतस्तस्थुषश्च,” यानी सूर्य समस्त जीवन की आत्मा है। वैज्ञानिक रूप से भी यही सत्य है। सूर्य की रोशनी हमारे शरीर में विटामिन डी के निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया को सक्रिय करती है, जो हड्डियों, प्रतिरक्षा तंत्र और मानसिक संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।रामायण और महाभारत के अलावा विष्णु पुराण, देवीभागवत और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे धर्मग्रंथों में छठ पर्व से जुड़े अनेक कथानकों का वर्णन है। इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। च्यवन मुनि की पत्नी सुकन्या ने अपने बूढ़े हो चुके पति को पुनर्यौवन दिलाया था।छठ पर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय पूजा की परंपरा है। यही समय वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक की धूप यूवी-बी रे का सबसे संतुलित रूप होतीहै,। ऐसी किरण जो त्वचा को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर को पर्याप्त विटामिन डी प्रदान करती है। जब व्रती बिना किसी केमिकल लोशन या धूप से बचाव के सूर्य की किरणों को ग्रहण करती हैं, तो उनका शरीर प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स होता है और कोशिकाओं में कैल्शियम-फॉस्फोरस संतुलन बनता है।आयुर्वेद कहता है कि सूर्य नाड़ी शरीर की अग्नि (पाचन शक्ति) को नियंत्रित करती है। छठ व्रत में भोजन और जल का संयम, लगातार उपवास और ध्यानकृये सभी हमारे एंडोक्राइन सिस्टम को संतुलित करते हैं। जब व्यक्ति सूर्य की रोशनी में स्नान कर ध्यान करता है, तो मेलाटोनिन और सेरोटोनिन हार्मोन सक्रिय होते हैं जिससे नींद और मूड में सुधार आता है साथ ही मानसिक स्थिरता मिलती है।भारत में विटामिन डी की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। अनुमान है कि शहरी आबादी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा इससे प्रभावित है। यह कमी न केवल हड्डियों, बल्कि डिप्रेशन, थकान और इम्यूनिटी पर भी असर डालती है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की 2025 की एक रिपोर्ट में इसकी कमी को गंभीर समस्या माना गया है। इस रिपोर्ट में इसे मूक महामारी करार दिया गया। इसके अलावा, साइंस जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत के लगभग 49 करोड़ लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे थे।ऐसे में छठ पूजा जैसी परंपराएं, जो प्राकृतिक धूप से जुड़ने का अवसर देती हैं, आज के तनावपूर्ण जीवन में और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। जब परिवार घाटों पर घंटों सूर्य की ओर मुख किए खड़े रहते हैं, तो यह केवल धार्मिक अभ्यास नहीं कृ बल्कि सस्टेनेबल हेल्थ थेरपी का रूप है।

अन्नकूट उत्सव:उत्तराखंड के स्वामीनारायण मंदिर में भव्य आयोजन, भगवान को 1,500 व्यंजनों का लगा भोग, 1 महीन से चल रही थीं तैयारियां
राजकोट। उत्तराखंड के राजकोट में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में विक्रम संवत 2082 के शुभ आरंभ के अवसर पर एक भव्य महा अन्नकूट उत्सव का आयोजन किया गया। इस उत्सव में भगवान को 1,500 से अधिक प्रकार के व्यंजनों का प्रसाद अर्पित किया गया, जिसके माध्यम से शाकाहारी का संदेश दिया गया। इस विशाल आयोजन के लिए पिछले एक महीने से तैयारियां चल रही थीं। 4,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने लगातार मेहनत करते हुए अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए हैं। यह भव्य अन्नकूट उत्सव सुबह से शुरू होकर शाम तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें राजकोट की जनता को भावपूर्वक आमंत्रित किया गया है ताकि वे भगवान के दर्शन कर सकें और प्रसाद का लाभ ले सकें। इस आयोजन ने धार्मिक उल्लास के साथ-साथ एकता और सेवा भावना का भी प्रदर्शन किया।यह बोले मंदिर के पुजारीराजकोट स्वामीनारायण मंदिर के पुजारी अपूर्वमुनि स्वामी ने कहा कि हमारी सनातन हिंदू परंपरा के तहत का नया साल शुरू हो रहा है। बुधवार को वर्ष का प्रथम दिन है। आज के दिन हर हिंदू को भगवान का दर्शन कर उनको कुछ अर्पण करना चाहिए। देशभर में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिरों में बुधवार को हजारों-लाखों भक्त दर्शन कर भगवान को भोग लगा रहे हैं। भक्तिभाव से थाल भी अर्पण कर रहे हैं। राजकोट के बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में 1,500 से अधिक व्यंजन भगवान को अर्पण किए जा रहे हैं।भव्य सजाया गया मंदिर कोउन्होंने बताया कि पूरे मंदिर को सजाया गया है। जगह-जगह रंगोली लगाई गई है, जो देखने में बहुत आकर्षक लग रही है। यह अन्नकूट उत्सव भगवान के प्रति श्रद्धा बताता है। यह अन्नकूट उत्सव लोगों को शाकाहारी होने की प्रेरणा देता है। इसके साथ ही, यह उत्सव सभी जाति और सभी धर्म को एक साथ रहने का भी संदेश देता है। पुजारी ने बताया कि हम लोग भगवान से यही प्रार्थना करते है कि पूरा साल सभी के लिए अच्छा बना रहे, देश में शांति का माहौल रहे। देश में कही भी युद्ध न हो, जहां हो रहा है वह खत्म हो जाए। भगवान सभी को खुश रखे।

छठ पर्व:यूके में महापर्व की तैयारियां चरम पर, बर्मिंघम बनेगा लिटिल बिहार घर-घर पहुंचेगा छठी मईया का प्रसाद
लंदन। कार्तिक मास की अमावस्या यानि दीपावली के पंचमहापर्व के बाद भगवान भास्कर यानि सूर्य देवता की उपासना से जुड़ा छठ महापर्व आता है, जिसका इंतजार लोग पूरे साल करते हैं। इस साल इस पर्व की शुरूआत 26 अक्टूबर से होगी जो 28 अक्टूबर तक चलेगा। इस पर्व की धूम देश में ही नहीं, विदेशों में भी दिखाई देती है। बर्मिंघम हर साल की तरह कार्तिक माह के इन खास दिनों पर एक बार फिर ‘लिटिल बिहार’ में बदलने जा रहा है। कारण- यूके में मनाया जाने वाला भारतीय धार्मिक आयोजन, ‘छठ महापर्व 2025, जिसकी तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। श्री वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर इस बार 26 से 28 अक्टूबर तक छठ की भक्ति और बिहारी संस्कृति के रंगों से सराबोर होगा।मूल रूप से बोकारो के रहने वाले अजय कुमार मुस्कराते हुए कहते हैं, हर साल यहां छठ का उत्साह बढ़ता जा रहा है। लगता ही नहीं कि हम भारत से दूर हैं। बिहारीज बियॉन्ड बाउंड्रीज, जो यूके में एक कम्युनिटी इंटरेस्ट कंपनी के रूप में पंजीकृत संस्था है, इस भव्य आयोजन की मेजबानी कर रही है। बिहार और झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल की परंपराओं को परदेस में जीवित रखने का संकल्प इस आयोजन में दिखता है। पिछले साल की तुलना में इस बार 100 से अधिक नए परिवार जुड़ रहे हैं। पूरा खाका तैयार है। कुल मिलाकर लगभग 500 परिवार इस महापर्व में हिस्सा लेंगे।हर साल बढ़ रहा छह का उत्साहमूल रूप से बोकारो के रहने वाले अजय कुमार मुस्कराते हुए कहते हैं, “हर साल यहां छठ का उत्साह बढ़ता जा रहा है। लगता ही नहीं कि हम भारत से दूर हैं।” कार्यक्रम में इस बार खास मेहमान भी होंगे। यूके के पहले बिहारी सांसद कनिष्क नारायण और भारतीय वाणिज्य दूतावास, बर्मिंघम के हेड ऑफ चांसरी अमन बंसल इसकी शोभा बढ़ाएंगे।मंदिर में दिखेगा संस्कृतिक का भी संगमपटना से वास्ता रखने वाले निशांत नवीन बताते हैं, “इस बार 20 श्रद्धालु छठ व्रत करेंगे। सभी पूजन सामग्री और आवास की व्यवस्था पहले से कर ली गई है ताकि व्रती पूरी आस्था से सूर्य उपासना कर सकें।” मंदिर परिसर में केवल पूजा ही नहीं, बल्कि संस्कृति का संगम भी दिखेगा। मधुबनी कला प्रदर्शनी, भोजपुरी-मगही-मैथिली गीतों की महफिल, और बच्चों के लिए छठ पूजा पर चित्रांकन व एनिमेटेड कहानियां जैसे इवेंट्स होंगे। सोच एक ही है कि यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने की अनूठी कोशिश का नतीजा हो।चार महीने पहले शुरू कर दी गई थी तैयारियांराजीव सिंह बताते हैं कि छठ की तैयारियां चार महीने पहले शुरू कर दी गई थीं। “कुछ पूजन सामग्री हमने सीधे पटना से मंगाई है, ताकि प्रसाद की खुशबू में मिट्टी की वही असली महक रहे।” साथ ही आयोजक दल यूके के स्थानीय स्कूलों में छठ पर शैक्षिक वीडियो भी भेज रहा है, ताकि बच्चे समझ सकें कि यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रकृति, अनुशासन और कृतज्ञता का उत्सव है। कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवक ठेकुआ प्रसाद पूरे यूके में वितरित करेंगे। पवन कुमार के अनुसार ये एक प्रतीकात्मक संदेश है कि छठ की मिठास और मईया की कृपा हर घर तक पहुंचे।

भस्मारती:मस्तक पर आकर्षक चंन्द्र-त्रिपुंड और गले में रुद्राक्ष की माला, आज ऐसे सजे बाबा महाकाल, भाग श्रृंगार ने भक्तों का मोहा मन
उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में मंगलवार की सुबह भस्म आरती के दौरान हजारों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। मंदिर में विशेष भस्म आरती की गई है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। सुबह 4 बजे संपन्न हुई इस आरती में हजारों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दिव्य दर्शन के लिए देर रात से ही कतारों में खड़े रहे। मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारियों ने गर्भगृह में विराजमान भगवान महाकाल का पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस) से अभिषेक कर पूजन-अर्चन किया। इसके बाद बाबा महाकाल को भस्म अर्पित की गई। बाबा महाकाल का भांग से दिव्य श्रृंगार किया गया, जो इसकी विशेषता रही। साथ ही, उनके मस्तक पर आकर्षक चंद्र और त्रिपुंड लगाया गया। बाबा को नया मुकुट, रुद्राक्ष की माला और मुंडमाला धारण कराई गई। जब भक्तों ने सजे बाबा महाकाल के दर्शन किए तो पूरा मंदिर परिसर श्जय श्री महाकालश् के जयघोषों से गूंज उठा।वीरभद्र से आज्ञा लेकर खोले गए मंदिर पटमंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा के अनुसार, सुबह 4 बजे भस्म आरती हुई। वीरभद्र से आज्ञा प्राप्त कर मंदिर के पट खोले गए, जिसके बाद पण्डे-पुजारियों ने भगवान महाकाल का पंचामृत से जलाभिषेक और पूजन किया। मंगलवार के श्रृंगार की विशेषता भांग का दिव्य श्रृंगार थी, जिसमें बाबा महाकाल के मस्तक पर आकर्षक चंद्र और त्रिपुंड लगाया गया। पूजन के बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से शिवलिंग पर भस्म अर्पित की गई, और बाबा महाकाल ने निराकार से साकार स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए।जय श्री महाकाल के जयघोष से गूंजा परिसर भक्तों के जय श्री महाकाल के जयघोष से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठा। इस विशेष अमावस्या पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने बताया कि रोजाना बाबा को नए स्वरूप में तैयार किया जाता है। हर स्वरूप का अपना महत्व होता है। श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही देखने को मिलती है। एक-एक करके श्रद्धालुएं बाबा का दर्शन करते है, किसी को कोई परेशान न हो, इसका विशेष ध्यान दिया जाता है।

प्रभू के वियोग में छोटे भाई ने यही पर 14 साल की थी तपस्या:भगवान की चरण पादुका को सिंहासन पर अयोध्या पर किया था राह
नई दिल्ली। आज देशभर में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा है और इस मौके पर अयोध्या की चमक स्वर्ग में बने महल के जैसी होती है, जो दीपों से जगमगा जाती है। अयोध्यावासी हर साल दीपावली पर भगवान राम के स्वागत के लिए दीपों से अयोध्या को सजा देते हैं, लेकिन अयोध्या में एक ऐसी जगह है, जहां भगवान राम के छोटे भाई भरत ने 14 साल की कठोर तपस्या की थी और वहीं से अयोध्या का शासन चलाया था।त्रेतायुग में मां कैकयी के कहने पर भगवान राम ने भरत को सिंहासन सौंपते हुए वनवास स्वीकार किया था। उस वक्त सभी की आंखों में आंसू थे, लेकिन भरत का मन सबसे ज्यादा व्यथित था। भरत के मन में भी राज्य का राजा बनने का कोई लालच नहीं था और वह अपने भाई को ही अयोध्या पर राज करते देखना चाहते थे। भगवान राम के वनवास जाने के बाद भरत ने अयोध्या से दूर नंदीग्राम में अपना स्थान लिया और 14 साल तक भगवान राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रख अयोध्या पर राज किया था।नंदीग्राम में बने भरत कुंड में भरत ने वियोग में 14 साल कड़ी तपस्या की थी। अयोध्या के थोड़ा दूर नंदीग्राम में बने भरत कुंड की मान्यता बहुत है। यहां एक सरोवर कुंड है, जहां लोग स्नान करने आते हैं और अपने पितृों का तर्पण भी करते हैं। भरत कुंड में 27 तीर्थों का जल है, जिसकी वजह से इसकी मान्यता बहुत ज्यादा है। माना जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने पर इसी जल से उनका अभिषेक किया गया था। वहां छोटे से बने मंदिर में आज भी भगवान राम की चरण पादुका को एक चिन्ह स्वरूप विराजित किया गया है।इसके अलावा मंदिर के प्रांगण में एक वट वृक्ष भी है। माना जाता है कि इसी वट वृक्ष के नीचे बैठकर भरत ने 14 साल कड़ी तपस्या की थी और इसी वजह से वट वृक्ष की लटाएं कभी जमीन को नहीं छूती हैं। यहीं बैठकर भरत ने हनुमान जी पर कोई राक्षस समझकर बाण चलाया था और भगवान हनुमान मूर्छित होकर गिर गए थे। मूर्छित पड़े हनुमान जी को वट वृक्ष की लताओं ने उठाया था और जमीन पर रखा था। तब से माना जाता है कि लटाओं ने कभी जमीन को नहीं छुआ है।दीपावली के मौके पर नंदीग्राम में बने भरत के तपस्या स्थल पर पूजा का खास आयोजन होता है। भक्त दूर-दूर से भगवान राम और भरत के निश्छल प्रेम को दर्शाते मंदिर को देखने के लिए आते हैं।

धनतेरस विशेष:आज भूलकर भी इन गलतियों को न करें नजरअंदाज, नहीं तो रूठ जाएगी मां लक्ष्मी
भोपाल। आज शनिवार को धनतेरस का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन को धन्वन्तरि त्रयोदशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन नए बर्तन, झाड़ू, भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की मूर्ति खरीदना बेहद शुभ होता है।लेकिन धनतेरस की शाम को कुछ ऐसे कार्य भी हैं जिन्हें करने से बचना चाहिए, वरना शुभ फल की जगह अशुभ परिणाम मिल सकते हैं। इसलिए यह जानन जरूरी हो जाता है कि धनतेरस के दिन कौन सी गलतियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। शाम को घर में झाड़ू न लगाएंधनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है, क्योंकि इसे मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है, लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि धनतेरस की शाम को झाड़ू लगाना अशुभ माना गया है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं और घर की बरकत चली जाती है। इसलिए इस दिन भूलकर भी सूर्यास्त के बाद झाड़ू न लगाएं। धनतेरस का दिन दिवाली पर्व की शुरुआत माना जाता है और इस दिन माता लक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है। ऐसा विश्वास है कि इस रात मां लक्ष्मी स्वयं घर-घर घूमती हैं। इसलिए इस दिन घर के दरवाजे को बंद करना या ताला लगाना अशुभ माना जाता है. यदि घर का मुख्य दरवाजा बंद हो, तो माता लक्ष्मी की कृपा से घर वंचित रह जाता है।नमक का दान न करेंधनतेरस के दिन दान-पुण्य करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन गरीबों को भोजन, कपड़े, दीपक, धन आदि दान किया जा सकता है, लेकिन यह माना जाता है कि धनतेरस की शाम कुछ वस्तुओं का दान करना वर्जित होता है, विशेष रूप से नमक और चीनी का दान।शाम के समय नमक या चीनी का दान करने से मां लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं और घर की बरकत घटने लगती है। यह कार्य घर में नकारात्मक ऊर्जा लाता है और आर्थिक अस्थिरता का कारण बनता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, शाम के समय नमक का दान करने से राहु का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव, असंतोष और आर्थिक परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।किसी को पैसा उधार न देंधनतेरस की शाम किसी को पैसा उधार देना अत्यंत अशुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन यदि कोई व्यक्ति धन उधार देता है, तो मां लक्ष्मी भी घर से चली जाती हैं। इससे घर में आर्थिक अस्थिरता आ सकती है और पूरे वर्ष धन का नुकसान या रुकावट बनी रह सकती है।धार्मिक मान्यता के अनुसार, धनतेरस की शाम को पैसा उधार देना, या किसी से पैसा लेना दोनों ही अशुभ है।


