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काली हल्दी:एक ऐसा पौधा, जिसकी जड़ों में छीपा है औषधीय गुणों का खजाना
नई दिल्ली। काली हल्दी एक बहुत ही खास और दुर्लभ पौधा है, जिसे आम हल्दी की तरह रोजमर्रा के मसाले के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इसे आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में एक शक्तिशाली औषधि माना गया है। इसका वैज्ञानिक नाम कुरकुमा कैसिया है। बाहर से यह साधारण हल्दी जैसी ही दिखाई देती है, लेकिन जब इसके कंद को काटते हैं तो अंदर का रंग नीले से गहरे काले रंग का होता है, जो इसे बाकी सभी हल्दी से अलग बनाता है। इसी अनोखे रंग और तेज सुगंध के कारण इसे काली हल्दी कहा जाता है। पुराने समय में लोग इसे बहुत संभालकर रखते थे और जरूरत पड़ने पर ही इसका उपयोग करते थे।आयुर्वेद में काली हल्दी का उपयोग दर्द, सूजन, सांस से जुड़ी समस्याओं, अस्थमा और जोड़ों के दर्द में किया जाता रहा है। माना जाता है कि इसमें प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो शरीर की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। गांवों में लोग इसे घरेलू दवा की तरह इस्तेमाल करते थे। फोड़े-फुंसी, कीड़े के काटने, चोट या घाव होने पर काली हल्दी को पीसकर लेप बनाया जाता था, जिससे जल्दी आराम मिलता था। सरसों के तेल के साथ इसे हल्का गर्म करके लगाने की परंपरा भी रही है।काली हल्दी सिर्फ दवा के रूप में ही नहीं, बल्कि पूजा-पाठ और आध्यात्मिक कार्यों में भी खास मानी जाती है। तांत्रिक विद्या और लक्ष्मी पूजा में इसका विशेष महत्व बताया गया है। पुराने लोग मानते थे कि यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और घर में सकारात्मकता लाती है। इसी कारण इसे ताबीज या पूजा की वस्तु के रूप में भी रखा जाता था। हालांकि आज के समय में इसके आध्यात्मिक उपयोग से ज्यादा इसके औषधीय गुणों पर ध्यान दिया जा रहा है।आजकल काली हल्दी कम दिखाई देती है, क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध नहीं है और इसे उगाने में समय लगता है। आधुनिक दवाओं के आने के बाद लोग पारंपरिक जड़ी-बूटियों से भी दूर हो गए हैं। फिर भी, अब धीरे-धीरे लोग इसके महत्व को दोबारा समझने लगे हैं।

सर्दियों में हेल्दी स्नैक:भुना मखाना शरीर को देता है गर्माहट और एनर्जी
नई दिल्ली । सर्दियों में ठंड की वजह से पाचन तंत्र सुस्त पड़ जाता है, जिससे अपच, कब्ज, गैस समेत पेट की कई परेशानियां होने लगती हैं। साथ ही शरीर में एनर्जी की कमी महसूस होती है। ऐसे मौसम में भुना मखाना एक हल्का, स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ता साबित होता है। भुना मखाना कम कैलोरी वाला होता है, लेकिन प्रोटीन, फाइबर और जरूरी मिनरल्स से भरपूर होता है। रोजाना एक मुट्ठी भुना मखाना खाने से पाचन दुरुस्त रहता है, एनर्जी बनी रहती है और अनहेल्दी क्रेविंग भी कम होती है।भारत सरकार का आयुष मंत्रालय सर्दियों में सेहत बनाए रखने के लिए भुने हुए मखाने को नाश्ते की प्लेट में शामिल करने की सलाह देता है। सर्दियों में सेहत को सही रखने के लिए एक मुट्ठी भुने हुए मखाने का सेवन करें, यह शरीर की एनर्जी बनाए रखते हैं और क्रेविंग को कम करते हैं। हेल्दी भुना मखाना न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि पेट को ठीक रखता है और शरीर को कई फायदे पहुंचाता है।मखाना, जिसे फॉक्स नट्स या कमल के बीज भी कहते हैं, पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह कम कैलोरी वाला स्नैक है, जो प्रोटीन, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटैशियम, आयरन और जिंक का अच्छा स्रोत है। सर्दियों में जब शरीर को गर्माहट और एनर्जी की ज्यादा जरूरत होती है, तब भुना मखाना बेहतरीन विकल्प है। यह शरीर को अंदर से गर्म रखता है और अनहेल्दी स्नैक्स की क्रेविंग को कंट्रोल करता है।भुने मखाने में भरपूर फाइबर होता है, जो कब्ज दूर करता है और पेट को ठीक रखता है, पाचन तंत्र के लिए बेहद फायदेमंद है। भुने मखाने में कम कैलोरी और हाई फाइबर होती है, जिस वजह से भूख कम लगती है और वजन घटाने में मदद मिलती है। यह सर्दियों में थकान दूर करता है और दिन भर एनर्जी बनाए रखता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स और पोटैशियम से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है और हार्ट हेल्थ अच्छी रहती है। यही नहीं, यह कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर होता है, जो हड्डियों और दांत को मजबूत बनाता है।भुना मखाना एंटी-एजिंग भी है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा को चमकदार बनाते हैं और उम्र के प्रभाव को कम करते हैं। लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स की वजह से मखाना डायबिटीज के मरीजों के लिए भी सही है। जिंक और अन्य मिनरल्स रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करते हैं।भुना मखाना बनाना बहुत आसान है। एक मुट्ठी मखाने को घी या बिना तेल के भून लें। इसमें स्वाद के अनुसार नमक, काली मिर्च पाउडर, या चाट मसाला डालकर खाएं। इसे मीठा बनाने के लिए गुड़ या शहद मिला सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में रोजाना एक मुट्ठी भुना मखाना खाने से शरीर गर्म और सेहत अच्छी बनी रहती है। यह बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के लिए सुरक्षित और फायदेमंद है। हालांकि, ज्यादा मात्रा में न खाएं और अगर कोई एलर्जी हो तो डॉक्टर से सलाह लें।

सुपरफ्रूट अंजीर:रोजाना करें सेवन, कब्ज-कमजोरी से लेकर खांसी तक में मिलेगा फायदा
नई दिल्ली । अंजीर न केवल एक स्वादिष्ट फल है, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर है, जो सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है। आयुर्वेद में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसके रोजाना सेवन से न केवल कब्ज-कमजोरी दूर होती है बल्कि पुरानी खांसी तक में फायदा मिलता है। संस्कृत में उदुम्बर कहलाने वाला यह फल ताजा और सूखे दोनों रूपों में फायदेमंद होता है। यह शरीर को पोषण प्रदान करता है और कई रोगों में राहत देकर तकलीफें कम करने में कारगर है।आयुर्वेद के अनुसार, अंजीर का रस मधुर, औषधीय गुणों से भरपूर और शीतल होता है। यह मुख्य रूप से पित्त और वात दोष को शांत करता है, जबकि कफ में सीमित मात्रा में उपयोगी है। पाचन तंत्र पर अंजीर का प्रभाव विशेष रूप से लाभकारी है। यह पुरानी कब्ज में भी राहत देता है। साथ ही आंतों के रूखेपन को कम करता है, गैस और पेट के भारीपन से मुक्ति दिलाता है।बवासीर के मरीजों के लिए यह लाभदायी है। अंजीर मल त्याग को आसान बनाने के साथ ही खूनी बवासीर में जलन-दर्द कम करता है। सुपरफ्रूट कमजोरी और रक्त संबंधी समस्याओं में भी लाभदायी है। यह लंबी बीमारी के बाद रिकवरी में मदद करता है और महिलाओं की सामान्य कमजोरी दूर करता है।श्वसन तंत्र के लिए सूखा अंजीर सूखी खांसी, गले की खराश और फेफड़ों को पोषण देता है। हृदय स्वास्थ्य के लिए अंजीर एक टॉनिक है। यह रक्त वाहिनियों को मजबूत बनाता है, कोलेस्ट्रॉल संतुलित रखता है और रक्त संचार सुधारता है। आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि त्वचा पर इसका लेप फोड़े-फुंसी और घाव भरने में सहायक है, जबकि रूखी त्वचा को नमी प्रदान करता है।अंजीर का सेवन कैसे करें, इसके बारे में आयुर्वेदाचार्य जानकारी देते हैं। इसके लिए रात में 1-2 सूखे अंजीर पानी में भिगोकर रखें और सुबह खाली पेट खाएं। दूध के साथ लेने से शरीर को ताकत मिलती है।विशेषज्ञों का कहना है कि अंजीर प्रभावी फल है, जो शरीर की कई समस्याओं को दूर कर पोषण और ताकत देता है। नियमित और संतुलित सेवन से ही लाभ मिलता है। हालांकि, सावधानी जरूरी है। मधुमेह के मरीज सीमित मात्रा लें, अधिक कफ वाले ज्यादा न खाएं और अत्यधिक सेवन से पेट ढीला हो सकता है। आयुर्वेदिक उपचार से पहले वैद्य की सलाह अवश्य लें।

अजवाइन का पानी:सर्दी-जुकाम में राहत का देसी नुस्खा, घर पर ऐसे करें तैयार
नई दिल्ली । सर्दियों के मौसम और बढ़ते प्रदूषण की वजह से सर्दी, जुकाम और छाती में कंजेशन की समस्या आम हो जाती है। ऐसे में दवाओं के अलावा घरेलू उपाय बेहद कारगर साबित होते हैं। इनमें से एक लोकप्रिय और प्रभावी देसी नुस्खा है अजवाइन का पानी। आयुष मंत्रालय अजवाइन के पानी के गुणों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए घर पर खुद से तैयार करने की पूरी विधि भी बताता है। यह सरल, प्राकृतिक और आसानी से उपलब्ध सामग्री से बनने वाला उपाय जुकाम और कंजेशन में तुरंत राहत प्रदान करता है।अजवाइन में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एक्सपेक्टोरेंट गुण होते हैं, जो बलगम को ढीला करते हैं और सांस की नलियों को साफ करने में मदद करते हैं। नियमित और सीमित सेवन से सांस लेने में आराम मिलता है और शरीर को राहत मिलती है। यह उपाय सदियों से भारतीय घरों में इस्तेमाल किया जा रहा है, खासकर मौसमी बीमारियों के दौरान।अजवाइन का पानी बनाने की विधि बहुत आसान है। सबसे पहले 1 कप पानी को उबालें। उबलते पानी में 1 चम्मच अजवाइन डाल दें। इसे धीमी आंच पर 5-10 मिनट तक उबालें, ताकि अजवाइन के गुण पानी में अच्छी तरह घुल जाएं। फिर इसे छान लें और गुनगुना होने पर पी लें। दिन में 1-2 बार इसका सेवन किया जा सकता है। गुनगुने पानी में अजवाइन की खुशबू और स्वाद न केवल राहत देता है, बल्कि पाचन को भी बेहतर बनाता है।आयुर्वेद के अनुसार, अजवाइन का पानी न केवल जुकाम और कंजेशन में राहत देता है, बल्कि यह इम्युनिटी को भी मजबूत बनाने में सहायक है। यह उपाय बेहद फायदेमंद है, लेकिन कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी है। अधिक मात्रा में सेवन न करें, क्योंकि इससे पेट में जलन या एसिडिटी हो सकती है। खाली पेट लेने से पहले अपनी सहनशीलता जांच लें। गर्भवती महिलाएं इसका सेवन डॉक्टर की सलाह लेकर ही करें। अगर सेवन के बाद पेट में कोई परेशानी या जलन महसूस हो, तो तुरंत बंद कर दें। बच्चों को देने से पहले भी विशेषज्ञ की राय लें।

सेहत:चुपचाप पैर पसारती है ये आंत से जुड़ी बीमारी, लक्षणों को न करें अनदेखा
नई दिल्ली। व्यवस्त जीवनशैली में कई बार पोषण से जुड़ी जरूरतें नजरअंदाज हो जाती हैं और भागदौड़ भरी जिंदगी की रफ्तार में स्वास्थ्य कहीं पीछे छूट जाता है। इससे शरीर में कई बीमारियां घर करने लगती हैं और उनका पता तब चलता है, जब बात हाथ से निकल जाती है। अक्सर हम पेट के हल्के दर्द को मामूली समझकर छोड़ देते हैं, लेकिन इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। यह असल में यह आंतों की खराब सेहत का इशारा हो सकता है, जो आगे चलकर किसी बड़ी बीमार का रूप ले सकता है।आंत हमारे शरीर का अहम हिस्सा होता है, जो शरीर की गंदगी को बाहर निकालने का काम करता है। आंतों का संक्रमण तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी छोटी या बड़ी आंतों में बढ़ने लगते हैं और धीरे-धीरे पेट दर्द, पाचन, कब्ज, हॉर्मोन असंतुलन, उल्टी, बुखार जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ आंतों में ज्यादा परेशानी होने पर कीड़े भी हो जाते हैं और ये स्थिति शरीर को कमजोर और बेहद बीमार कर सकती है।आंतों का संक्रमण होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे गंदा पानी और दूषित भोजन का सेवन करना, बार-बार एंटीबायोटिक लेना, कमजोर पाचन प्रणाली का होना, बिना हाथ साफ किए भोजन खाना, जंक फूड ज्यादा खाना, और तनाव लेना शामिल है।आयुर्वेद में आंतों की देखभाल के लिए कई तरह के उपाय बताए गए हैं। इसके लिए रोजाना दोपहर के समय छाछ का सेवन कर सकते हैं। छाछ आंतों के लिए औषधि है। इसमें हींग और जीरा मिलाकर पीने से आंतों का बैक्टीरिया खत्म होता है। दूसरा, अनार का रस पीने से भी आंतों को ठीक से काम करने की क्षमता मिलती है। इससे आंतों में फैलने वाला संक्रमण नियंत्रित होगा। अगर संक्रमण की वजह से पेट खराब हो गया है और दस्त की शिकायत है, तो अनार का सेवन जरूर करें।तीसरा, आयुर्वेद में बेल को अतिसार नाशक माना गया है, जो ठंडक से भरपूर होता है। ऐसे में बेल का जूस आंतों के लिए लाभकारी होता है। गर्मियों में बेल का जूस आंतों को साफ करने में मदद करता है। चैथा, त्रिफला चूर्ण का सेवन भी आंतों के लिए दवा की तरह है। त्रिफला चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ लेने से आंतों की सफाई होती है और संक्रमण का खतरा कम होता है। पांचवा, दूध के साथ हल्दी का सेवन भी आंतों को साफ करने में मदद करता है और आंतों की सूजन को कम करता है। हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो शरीर की अंदरूनी सूजन को कम करते हैं।

सेहत:रात भर भीगे हुए सूखे मेवों के हैं दोगुने फायदे, हमेशा चुस्त-दुरूस्त रहेगा शरीर
नई दिल्ली। शरीर को हमेशा चुस्त-दुरूस्त बनाए रखने के लिए आहार के अलावा, सूखे मेवे भी खाने चाहिए। सूखे मेवे शरीर की कोशिकाओं को पोषण देने के साथ-साथ मन और मस्तिष्क का पूरा ध्यान रखते हैं। हमेशा कहा जाता है कि सूखे मेवे को रात के समय भिगोकर रखना चाहिए और फिर खाना चाहिए। लेकिन ऐसा क्यों? आज हम आपको बताएंगे कि सूखे मेवे को भिगोकर रखने से शरीर को कौन-कौन से लाभ मिलते हैं और किन मेवों का सेवन बिना भिगोए किया जा सकता है।बादाम का सेवन हर किसी को करना चाहिए, लेकिन भिगोने के बाद। रात के समय भिगोकर रखने से बादाम में मौजूद फाइटिक एसिड कम हो जाते हैं, जो शरीर में पोषण के अवशोषण को रोकते हैं। भिगोकर रखने से पाचन भी आसान होता है और बादाम का पूरा पोषण शरीर को मिलता है।किशमिश का सेवन भी रात को भिगोने के बाद सुबह करना चाहिए। भीगी हुई किशमिश में सूखी किशमिश की तुलना में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, और वे पाचन और शरीर को गर्मी को दूर करने में मदद करती हैं। सूखी किशमिश में तासीर थोड़ी गर्म होती है, लेकिन भिगोने के बाद वे शरीर को ठंडक देने का काम करती हैं।अंजीर का सेवन भी भिगोकर ही करना चाहिए। सूखने की वजह से अंजीर के रेशे सख्त हो जाते हैं और पाचन में बाधा डालते हैं। ऐसे में अंजीर को भिगो देने से वो नर्म पड़ जाती है और कैल्शियम, पोटैशियम और मिनरल्स का अवशोषण अच्छे से होता है। अगर इसे दूध के साथ लिया जाए तो ये शरीर की ऊर्जा को दोगुना कर देती है।कुछ बीज भी शरीर को पोषण देने में मदद करते हैं, जिन्हें रात में भिगोकर लेना चाहिए। इसमें असली के बीज और मेथी और धनिए के बीज शामिल हैं। मेथी के बीजों को भिगोने से उसका कड़वापन कम हो जाता है और पाचन आसानी से होता है। मेथी का पानी या दानों का सेवन ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है और आंतों में मौजूद टॉक्सिन को बाहर निकालने में मदद करता है।असली के बीजों को भी भिगोकर खाना चाहिए। भिगोने से असली में मौजूद फाइटिक एसिड कम हो जाते हैं और पाचन में मुश्किल नहीं होती। असली में प्रोटीन, कैल्शियम, और आयरन होते हैं, जो शरीर को कई बीमारियों से बचाते हैं। इसके अलावा, अखरोट, खसखस, काजू, पिस्ता और मगज के बीजों का सेवन बिना भिगोए भी कर सकते हैं।

गर्म पानी पीने से लेकर गुनगुने पानी से स्नान तक:जानिए कैसे छोटी-छोटी आदतें पीरियड्स के दर्द को कर सकती हैं कम
नई दिल्ली। महिलाओं के जीवन में पीरियड्स प्राकृतिक और जरूरी शारीरिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके साथ आने वाला दर्द कई बार रोजमर्रा की जिंदगी को मुश्किल बना देता है। पेट में ऐंठन, कमर दर्द, थकान, चिड़चिड़ापन और भारीपन जैसी समस्याएं आम हैं। आयुर्वेद इसे शरीर में वात दोष के असंतुलन से जोड़ता है, जबकि विज्ञान के अनुसार यह दर्द गर्भाशय में बनने वाले प्रोस्टाग्लैंडीन नामक रसायन की वजह से होता है, जो मांसपेशियों को सिकोड़ देता है। ऐसे में कुछ आसान आदतें अपनाकर इस दर्द को काफी हद तक कम किया जा सकता है।पीरियड्स के दौरान दिन की शुरुआत अगर गर्म पानी से की जाए, तो शरीर को तुरंत राहत मिलती है। आयुर्वेद में गर्म पानी को अग्नि यानी पाचन शक्ति को मजबूत करने वाला माना गया है। सुबह उठते ही एक गिलास गर्म पानी पीने से शरीर के अंदर जमी ठंडक दूर होती है और गर्भाशय की मांसपेशियां धीरे-धीरे खुलने लगती हैं। विज्ञान भी मानता है कि गर्म पानी ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करता है, जिससे पेट में जकड़न कम होती है। इससे सूजन घटती है और दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसमें हर्बल चाय भी फायदा पहुंचाती है।नहाने का तरीका भी पीरियड्स के दर्द पर असर डालता है। ठंडे पानी से नहाने पर मांसपेशियां और ज्यादा सिकुड़ सकती हैं, जिससे दर्द बढ़ता है। वहीं गुनगुने या गर्म पानी से नहाने पर शरीर को सुकून मिलता है। जब गर्म पानी पेट और कमर पर पड़ता है, तो वह प्राकृतिक सिकाई का काम करता है। आयुर्वेद में इसे स्वेदन कहा जाता है, यानी शरीर से जकड़न निकालना। विज्ञान के अनुसार, गर्म पानी नसों को शांत करता है और दर्द को कम करता है।पीरियड्स के दौरान सुबह का नाश्ता बहुत अहम हो जाता है। इस समय शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा और पोषण की जरूरत होती है। अगर नाश्ता हल्का लेकिन पौष्टिक हो, तो कमजोरी और चक्कर जैसी समस्याएं कम होती हैं। आयुर्वेद में ऐसे भोजन की सलाह दी जाती है जो शरीर को ताकत दे और आसानी से पच जाए। केले, सूखे मेवे, बीज और हरी सब्जियां शरीर में जरूरी तत्वों की कमी पूरी करती हैं। विज्ञान के अनुसार मैग्नीशियम और पोटेशियम मांसपेशियों को आराम देने में मदद करते हैं, जिससे ऐंठन कम होती है। फल और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ सूजन को भी घटाते हैं।पीरियड्स में हल्की एक्सरसाइज या योग शरीर के लिए फायदेमंद साबित होता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि योग से वात दोष संतुलित रहता है। सुबह कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग या आसान योगासन करने से पेट की मांसपेशियों में खून का बहाव बढ़ता है। विज्ञान भी मानता है कि हल्की एक्सरसाइज से एंडोर्फिन नामक हार्मोन निकलता है, जो शरीर का प्राकृतिक दर्द निवारक होता है। इससे मन हल्का और शरीर आराम में आ जाता है।पीरियड्स के दर्द में सिकाई एक पुराना लेकिन बहुत असरदार तरीका है। गर्म पानी की बोतल या हॉट वाटर बैग को पेट पर रखने से तुरंत राहत महसूस होती है। आयुर्वेद इसे बाहरी ऊष्मा चिकित्सा मानता है, जो अंदर की जकड़न को खोलता है। विज्ञान के अनुसार, गर्माहट से नसें फैलती हैं और खून का प्रवाह तेज होता है, जिससे दर्द पैदा करने वाले रसायन कम हो जाते हैं।

स्टडी में खुलासा:प्रीडायबिटीज को ठीक करने से हार्ट अटैक के खतरे में 60 प्रतिशत की आ सकती है कमी
नई दिल्ली। एक स्टडी के अनुसार, प्रीडायबिटिक मरीज जो अपने ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं और बीमारी को कंट्रोल कर लेते हैं, वे गंभीर दिल की बीमारियों की संभावना को लगभग 60 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में पब्लिश रिसर्च के अनुसार ब्लड ग्लूकोज को नॉर्मल लेवल पर लाने से, यानी प्रीडायबिटीज को प्रभावी ढंग से ठीक करने से, दिल की बीमारी से मौत या हार्ट फेलियर के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा कम हो जाता है।जिन लोगों ने प्रीडायबिटीज से छुटकारा पा लिया था, उनमें कार्डियोवैस्कुलर मौत या हार्ट फेलियर के कारण हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा 58 प्रतिशत कम था। यूके के किंग्स कॉलेज लंदन के रिसर्चर्स ने कहा कि यह असर ग्लूकोज लेवल को नॉर्मल करने के दशकों बाद भी बना रहा, जो ब्लड ग्लूकोज को रेगुलेट करने पर एक स्थायी प्रभाव दिखाता है।यह खोज खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हालिया रिसर्च से पता चला है कि सिर्फ लाइफस्टाइल में बदलाव, जिसमें एक्सरसाइज, वजन कम करना और खाने-पीने में सुधार शामिल हैं, प्रीडायबिटीज वाले लोगों में कार्डियोवैस्कुलर जोखिम को कम नहीं करते हैं।किंग्स कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ट्यूबिंजन में डायबिटीज के रीडर, लीड लेखक डॉ. एंड्रियास बिर्केनफेल्ड ने कहा, ष्यह स्टडी मॉडर्न प्रिवेंटिव मेडिसिन की सबसे बड़ी मान्यताओं में से एक को चुनौती देती है। सालों से, प्रीडायबिटीज वाले लोगों से कहा जाता रहा है कि वजन कम करने, ज्यादा एक्सरसाइज करने और हेल्दी खाना खाने से वे हार्ट अटैक और जल्दी मौत से बचेंगे। हालांकि ये लाइफस्टाइल में बदलाव निस्संदेह मूल्यवान हैं, लेकिन सबूत इस बात का समर्थन नहीं करते कि वे प्रीडायबिटीज वाले लोगों में हार्ट अटैक या मृत्यु दर को कम करते हैं।बिर्केनफेल्ड ने आगे कहा, इसके बजाय, हम दिखाते हैं कि प्रीडायबिटीज से छुटकारा पाने का संबंध जानलेवा कार्डियक घटनाओं, हार्ट फेलियर और सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर में स्पष्ट कमी से है। प्रीडायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जहां ब्लड ग्लूकोज का लेवल नॉर्मल से ज्यादा होता है लेकिन अभी इतना ज्यादा नहीं होता कि टाइप 2 डायबिटीज का पता चल सके।पिछली स्टडीज में दिखाया गया था कि लाइफस्टाइल में किए गए मिले-जुले बदलाव, जिसमें ज्यादा एक्सरसाइज और हेल्दी खाना शामिल है, कार्डियोवैस्कुलर बीमारी को कम नहीं करते हैं। यह बताता है कि डायबिटीज की शुरुआत में देरी करना ही कार्डियोवैस्कुलर सुरक्षा की गारंटी नहीं देता, जब तक कि महत्वपूर्ण मेटाबॉलिक बदलाव न हों।बिरकेनफेल्ड ने कहा, स्टडी के नतीजों का मतलब है कि प्रीडायबिटीज रिमिशन, ब्लड प्रेशर कम करने, कोलेस्ट्रॉल कम करने और स्मोकिंग छोड़ने के साथ, चैथे बड़े प्राइमरी प्रिवेंशन टूल के तौर पर अपनी जगह बना सकता है, जो सच में हार्ट अटैक और मौतों को रोकता है।

सेहत:तन-मन की थकान से कैफीन नहीं, ये हर्बल-टी दिलाएगी आराम, याददाश्त बढ़ाने में भी करेगी मदद
नई दिल्ली। तन और मन जब भी थक जाते हैं, तो लोग चाय या कॉफी का सहारा लेते हैं। आमतौर पर धारणा है कि चाय और कॉफी सुस्ती उतारने और मस्तिष्क को एकाग्रता के साथ काम करने की ताकत देती है, लेकिन इसका असमय और अतिसेवन पूरे शरीर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। ऐसे में आयुर्वेद के पास एक ऐसा समाधान है, जो कैफीन के स्वाद से बेहतर और शरीर के लिए लाभकारी है।आयुर्वेद में थकान और तनाव को तंत्रिकाओं से जोड़ कर देखा गया है। जब तंत्रिकाएं थक जाती हैं, तब आँखें बंद होने लगती हैं, नींद आने लगती है, काम करने का मन नहीं करता, और पूरा शरीर ही अपना संतुलन खो बैठता है। सिर से लेकर पैर तक शरीर सिर्फ और सिर्फ आराम मांगता है। ऐसे में हर्बल टी बहुत लाभकारी होती है, जो शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती है और याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती है।हर्बल टी बनाने के लिए जटामांसी, ब्राह्मी और कैमोमाइल चाहिए। ये तीनों ही चीजें आसानी से बाजार में मिल जाती हैं। जटामांसी और ब्राह्मी जड़ी-बूटी हैं और कैमोमाइल एक औषधीय फूल है। इन तीनों को मिलकर पानी में उबाल लें और काढ़ा बना लें। इस मिश्रण को छानकर गुनगुना होने पर पीएं। ये शरीर को चुस्त और दुरुस्त रखने में मदद करेगा। ये तीनों मिलकर थकान को कम करती हैं और तंत्रिकाओं को आराम देती हैं, जिससे अच्छी नींद आती है।जटामांसी हृदय और चेतना को स्थिर करती है और मन को संतुलित रखती है। यह घबराहट और बेचैनी को कम करने में राहत देती है। इसमें मौजूद न्यूरो-रिलैक्सेंट यौगिक तंत्रिका तंत्र को शांत करते हैं और धीरे-धीरे शरीर को थकावट का अहसास कम होता है। वहीं ब्राह्मी मस्तिष्क में स्पष्टता और एकाग्रता लाती है। इसके साथ ही शरीर में तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन कॉर्टिसोल और एड्रेनालाईन को संतुलित रखते हैं। ये दोनों हार्मोन ही शरीर में बेचैनी और तनाव को बढ़ाते हैं।इसके अलावा, कैमोमाइल में ऐसे गुण होते हैं जो नींद में सहायक होते हैं। ये मस्तिष्क को शांत करने के अलावा, गहरी नींद लाने में सहायक हैं। ये जानना भी जरूरी है कि हर्बल चाय का सेवन किस समय करना सही होता है। इसके लिए रात को सोने से पहले, या लगातार स्ट्रेस की स्थिति में इसको लेना अच्छा होता है। काम के समय एकाग्रता बढ़ाने के लिए भी टी का सेवन कर सकते हैं। इसकी लत चाय की तरह नहीं पड़ती है और ये पूरी तरह सुरक्षित हैं।

रात का हेल्थ बूस्टर है दूध:जानें सर्दी में कैसे करता है स्वास्थ्य की पूरी देखभाल
नई दिल्ली। घर के बड़े बुजुर्गों ने हमेशा कहा कि रात के समय दूध पीकर सोना चाहिए, लेकिन सिर्फ रात में दूध का सेवन क्यों करना चाहिए? आयुर्वेद में रात के समय दूध का सेवन करना लाभकारी बताया गया है। रात के समय दूध का सेवन नींद सुधारने में मदद करता है और शरीर की मरम्मत में लगने वाली ऊर्जा को भी बढ़ाता है। इसलिए रात को लिया गया दूध अमृत के समान है। दूध में ट्रिप्टोफैन, कैल्शियम, विटामिन्स, प्रोटीन और अच्छे फैट होते हैं और शरीर को नई ऊर्जा से भर देते हैं। अच्छी नींद लाने में सहायक हैं। शरीर को संतुलित करते हैं। शरीर का ओज बढ़ाते हैं और दिल और दिमाग को गहराई से शांत करते हैं। शीत ऋतु में रोजाना अगर रात के समय दूध का सेवन किया जाए तो शरीर को बहुत सारे लाभ होंगे।शीत ऋतु में वात बढ़ने की वजह से नींद में परेशानी होती है। इसके लिए दूध में हल्दी या जायफल को मिलाकर लें। इससे शरीर में मेलाटोनिन और सेरोटोनिन बढ़ने लगता है और मन और मस्तिष्क का तनाव कम होता है। गहरी नींद आती है और सुबह दोगुनी ऊर्जा के साथ शरीर काम करता है।दूध का सेवन हड्डियों और जोड़ों को मजबूत बनाता है। दूध में कैल्शियम, प्रोटीन, और कम मात्रा में विटामिन डी भी होता है, जो मांसपेशियों और हड्डियों को नई ऊर्जा देता है। कंधे और कमर दर्द में भी राहत मिलती है। इसके लिए दूध में चुटकीभर अजवाइन मिलाकर लेने से आराम मिलेगा।दूध स्किन पर ग्लो लाने का काम भी करता है। दूध के सेवन से चेहरे पर ओज तेज होता है। इसके लिए दूध में केसर मिलाकर लें। इससे कोलेजन बढ़ता है, रूखापन कम होता है और स्किन मुलायम बनती है। अगर शरीर में थकान और कमजोरी बनी रहती है तो रात के समय दूध में इलायची और मिश्री मिलाकर लें। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और शरीर एक्टिव रहता है। इलायची और मिश्री के सेवन से पेट भी साफ रहता है और पाचन अग्नि तेज होती है।इसके अलावा अगर ब्लड शुगर की परेशानी रहती है तो इसके लिए बिना हल्दी वाला दूध का सेवन करें। दूध में किसी तरह का मीठा न डालें। इससे शरीर में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रहेगी और इंसुलिन नहीं बढ़ेगा।

गुणों से भरपूर है शतावरी की जड़े:महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी है वरदान
नई दिल्ली। आयुर्वेद में कई ऐसी औषधिया हैं, जिन्हें जीवनवर्धक माना गया है। ऐसी ही एक औषधि है शतावरी। शतावरी को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। कहीं इसे सतावर, सतावरि, सतमूली, शतावरी और सरनोई भी कहते हैं। शतावरी महिलाओं के लिए अमृत की तरह काम करती है और पुरुषों के लिए भी उतनी ही लाभकारी है।शतावरी एक पौधा है, जिसकी जड़े गुणों से भरपूर होती हैं। शतावरी का सेवन शरीर को अंदर से मजबूत बनाता है, महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है, और पुरुषों के लिए भी वीर्यवर्धक है। इसके अलावा, शतावरी को अन्य रोगों की रोकथाम में भी इस्तेमाल करते आए हैं। शतावरी की तासीर ठंडी और स्वाद में मधुर होती है। ठंडी तासीर होने की वजह से शतावरी शरीर के रूखेपन को कम करती है, शरीर में नमी बनाए रखती है, और हार्मोन को बैलेंस रखती है।शतावरी की जड़ का पाउडर स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए लाभकारी है। जिन माओं को डिलीवरी के बाद दूध आने में परेशानी होती है, अगर उन्हें दूध के साथ रात के समय शतावरी पाउडर दिया जाए तो मां के शरीर में दूध बनना शुरू हो जाता है। ये प्राकृतिक रूप से माओं में दूध की क्षमता को बढ़ाती है। इसके साथ ही प्रसव के बाद की कमजोरी में भी राहत देती है।जिन महिलाओं या लड़कियों को पीरियड में अनियमितता या हार्मोन असंतुलन की समस्या रहती है, उनके लिए भी शतावरी अमृत है। शतावरी महिलाओं में एस्ट्रोजन के स्तर में सुधार लाती है। बता दें कि महिलाओं में एस्ट्रोजन के सही स्तर की वजह से ही गर्भावस्था ठीक से हो पाती है। अगर एस्ट्रोजन का स्तर कम है तो गर्भपात होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके लिए सुबह खाली पेट दूध के साथ शतावरी का सेवन करना चाहिए।वहीं जिन पुरुषों को कमजोरी महसूस होती है, शुक्राणु की कमी है या शीघ्रपतन जैसी समस्या होती है, वे भी शतावरी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए शतावरी के साथ अश्वगंधा और कौंच बीज को दूध में एक साथ उबालकर लेना चाहिए। इससे पुरुषों में वीर्यवर्धक होता है और शारीरिक कमजोरी दूर होती है।जिन महिलाओं और पुरुषों को बार-बार यूरिन इंफेक्शन का खतरा रहता है, यूरिन में जलन होती है, या यूरिन की बूंदें अपने आप टपक जाती हैं, उनके लिए भी शतावरी का सेवन लाभकारी है। इसके लिए दूध और शतावरी रात के समय लें।

संदियों में सौंदर्य को नीखारता है एलोवेरा:बालों के लिए भी है संजीवन, जानें कैसे करें उपयोग
नई दिल्ली। एलोवेरा दिखने में साधारण पौधे की तरह लगता है, लेकिन इसका इस्तेमाल बुखार से लेकर त्वचा और बालों को संवारने तक में किया जाता है। सदियों से सौंदर्य को बढ़ाने के लिए एलोवेरा का इस्तेमाल होता आ रहा है, लेकिन शीत ऋतु में सर्द हवा से त्वचा और बाल दोनों प्रभावित होते हैं। ऐसे में प्राकृतिक तरीके से एलोवेरा बालों और स्किन के लिए बहुत फायदेमंद है।आयुर्वेद में एलोवेरा को कुमारिका कहा गया है, यानी वह वनस्पति जो केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि जीवन का पोषण करता है। एलोवेरा पित्त और रक्त दोष शामक होता है और इसकी तासीर ठंडी होती है। इसके उपयोग से त्वचा को शांत महसूस होता है, कोशिकाएं जागृत होती हैं, और बालों को जड़ से पोषण मिलता है। एलोवेरा स्त्री स्वास्थ्य में भी लाभकारी है। इसके सेवन से मासिक धर्म से जुड़े रोगों में भी आराम मिलता है। एलोवेरा में विटामिन ए, सी, और ई, बी-12 समेत खनिज, अमीनो एसिड, एंजाइम, शर्करा, लिग्निन और सैलिसिलिक एसिड पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह के फायदे पहुंचाते हैं।अगर त्वचा पर कील, मुहांसे, सनबर्न या दाग-धब्बे हैं तो इसके लिए एलोवेरा सुबह चेहरा साफ करने के बाद एलोवेरा लगाएं। फिर दोपहर के समय भी एलोवेरा जेल से त्वचा की मालिश करें और रात के समय भी दोबारा दोहराएं। ऐसा करने से स्किन पर किसी तरह की गंदगी नहीं जमेगी, चेहरा अंदर से साफ होगा, झुर्रियों में कमी आएगी, दाग-धब्बे कम होंगे और त्वचा की कोशिकाओं को पूरा पोषण मिलेगा।ध्यान देने वाली बात ये है कि ताजा एलोवेरा का इस्तेमाल करें। इस्तेमाल करने से पहले एलोवेरा को अच्छे से पानी में धो लें और उसके बाद ही लगाएं। कई बार एलोवेरा से निकलने वाला पीला पानी त्वचा पर खुजली कर देता हैअगर बालों में रूसी है, बाल झड़ रहे हैं, बालों में रूखापन है, या बालों की जड़ें कमजोर हैं, तब नारियल के तेल में एलोवेरा मिलाकर सिर की मालिश करें और आधे घंटे के लिए छोड़ दें। धोने के बाद एलोवेरा जेल के साथ आंवला पाउडर मिलाकर पेस्ट बनाकर बालों पर लगाएं। इससे बालों की मजबूती मिलेगी और बालों से जुड़ी समस्याएं कम होंगी। ये उपाय हफ्ते में 2 बार करें और आहार में आंवला भी शामिल करेंय ये त्वचा और बाल दोनों के लिए लाभकारी है।

आयुर्वेद: कूड़े में न फेंकें मटर के छिलके, इसमें छिपे हैं सेहत के असली खजाने
नई दिल्ली । हमारी रसोई में अक्सर ऐसी कई चीजें होती हैं जिन्हें हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, जबकि आयुर्वेद और वैज्ञानिक शोध में वही चीजें शरीर की सेहत के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। मटर का छिलका भी ऐसा ही छुपा सुपरफूड है। मटर के ताजे छिलकों में ताकत के भरपूर गुण होते हैं। आयुर्वेद में इसे शरीर के लिए पाचन-सहायक और पोषणकारी बताया गया है। मटर के हरे छिलकों में मौजूद प्राकृतिक फाइबर पेट के लिए लाभकारी होता है। फाइबर पेट को साफ रखने, पाचन को आसान बनाने और गैस जैसी दिक्कतों को कम करने में मदद करता है। यह पेट को धीरे-धीरे और आराम से काम करने में मदद करता है। कई वैज्ञानिक शोध भी बताते हैं कि फाइबर वाला भोजन पेट को देर तक भरा महसूस कराता है। यही कारण है कि छिलके की सब्जी या चटनी खाने से बार-बार भूख नहीं लगती और खाने की लालसा कम होती है। यह तरीका उन लोगों के लिए उपयोगी होता है जो अपने वजन को संतुलित रखना चाहते हैं।मटर के छिलकों में पोटेशियम, कैल्शियम, कॉपर, विटामिन सी, विटामिन के और कई तरह के तत्व मौजूद होते हैं। पोटेशियम शरीर के द्रव संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे हृदय को सहज काम करने में सहयोग मिलता है। कैल्शियम हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने में एक जरूरी पोषक तत्व है, जबकि कॉपर शरीर में ऊर्जा बनाने की प्रक्रिया और रक्त के निर्माण में भूमिका निभाता है। विटामिन सी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सपोर्ट करता है, और विटामिन के रक्त के सामान्य थक्के बनने और हड्डियों की मजबूती के लिए जाना जाता है।छिलकों में मौजूद प्राकृतिक रसायन, जैसे कैरोटेनॉइड, आंखों के लिए भी मददगार माने जाते हैं। ये तत्व आंखों की कोशिकाओं को सामान्य रूप से काम करने में सहायता देते हैं और प्रकाश से होने वाली क्षति से बचाने का काम करते हैं।मटर के छिलकों की सब्जी जितनी पौष्टिक है, उतनी ही स्वादिष्ट भी है। इसकी सब्जी बनाने के लिए बस छिलकों को साफ करके बड़े टुकड़ों में काट लें। इसमें आलू मिला लें और सामान्य तरीके से मसालों के साथ पकाएं। जिन लोगों को नए-नए देसी स्वाद आजमाना पसंद है, उनके लिए छिलकों की चटनी भी बेहतरीन विकल्प है। हरा धनिया, लहसुन, नींबू और मसालों के साथ पीसकर यह चटनी किसी भी भोजन के साथ खाई जा सकती है।

बालों को पोषण देगा प्याज का रस:झड़ने समेत कई समस्याओं से मिलेगी राहत
नई दिल्ली। आज के समय में बालों का झड़ना, सफेद होना और डैंड्रफ जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। तेज धूल, प्रदूषण, केमिकल वाले हेयर प्रोडक्ट और तनाव के कारण बालों का प्राकृतिक सौंदर्य तेजी से खत्म होने लगता है। ऐसे में लोग फिर से घरेलू नुस्खों की ओर लौट रहे हैं, क्योंकि ये सुरक्षित, सस्ते और लंबे समय तक असर करने वाले होते हैं। इन्हीं नुस्खों में से एक है प्याज का रस, जिसे सदियों से बालों की मजबूती और वृद्धि के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आयुर्वेद में प्याज के रस को केश्य यानी बालों को पोषण देने वाला बताया गया है, वहीं आधुनिक वैज्ञानिक शोधों में भी इसमें मौजूद पोषक तत्वों को बालों के विकास में प्रभावशाली पाया गया है।प्याज में सल्फर की मात्रा पर्याप्त होती है, जिसे केराटिन बिल्डिंग ब्लॉक माना जाता है। केराटिन वही प्रोटीन है, जिससे बाल बने होते हैं। शरीर में सल्फर की कमी होने पर बाल कमजोर होने लगते हैं, जड़ें ढीली पड़ने लगती हैं और हेयर फॉल बढ़ जाता है। प्याज का रस लगाने से यह सल्फर सीधे स्कैल्प तक पहुंचता है, जिससे बालों को प्राकृतिक मजबूती मिलती है। इसके अलावा, प्याज में विटामिन सी, बी6, मैंगनीज, फ्लेवोनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो सिर की त्वचा में रक्त संचार बढ़ाकर नई कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया को तेज करते हैं।आयुर्वेद में प्याज को गर्म तासीर वाला माना गया है, जो स्कैल्प में जमा गंदगी, अतिरिक्त तेल और बंद हुए रोमछिद्रों को साफ करने में मदद करता है। वहीं वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि प्याज के रस में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-फंगल गुण मौजूद होते हैं, जो डैंड्रफ, फंगल इंफेक्शन और स्कैल्प इंफ्लेमेशन जैसी समस्याओं को कम करते हैं। इससे सिर की त्वचा स्वस्थ रहती है और बाल प्राकृतिक रूप से बढ़ने लगते हैं।बालों के लिए प्याज का रस कई तरह से लाभ पहुंचाता है। जब इसे सीधे स्कैल्प पर लगाया जाता है तो यह जड़ों को पोषण देता है और बालों को टूटने से रोकता है। सल्फर के कारण बालों की जड़ें मजबूत होती हैं, जिससे हेयर थिकनेस और घनापन बढ़ने लगता है।प्याज के रस में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैटालेज एंजाइम को भी सक्रिय करते हैं, जो सफेद बालों का कारण बनने वाले हानिकारक तत्वों को कम करता है। इसके लगातार इस्तेमाल से बाल मुलायम और चमकदार लगते हैं।प्याज का रस बालों में नमी बनाए रखने में भी मदद करता है। कई लोग हेयर ड्रायर, स्ट्रेटनर और केमिकल वाले कलर का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं। प्याज के रस में मौजूद मिनरल्स और विटामिन ऐसे बालों को फिर से हाइड्रेट करते हैं और दोमुंहे बाल कम होते हैं। इसके अलावा, यह स्कैल्प में गर्माहट पैदा करता है, जिससे खून का बहाव बढ़ता है और बाल तेजी से बढ़ने लगते हैं।

सेहत: सिर्फ पौधा नहीं प्रकृति का वरदान है तुलसी, बूस्ट होती है इम्यूनिटी
नई दिल्ली। शरीर की इम्यूनिटी मजबूत रहे तो कोई भी समस्या छू नहीं पाएगी। वहीं, कमजोर इम्यूनिटी कई बीमारियों की वजह बन जाती है। हर घर में आसानी से मिल जाने वाले तुलसी के पौधे को आयुर्वेद किसी वरदान से कम नहीं बताता। देवी-देवताओं को प्रिय तुलसी की पत्तियां इम्यूनिटी को बूस्ट करती हैं। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय बताता है कि तुलसी सिर्फ पूजा की थाली का पवित्र पत्ता नहीं, बल्कि प्रकृति का सबसे शक्तिशाली औषधीय वरदान है। खासकर सर्दियों में जब वायरस और संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है, रोजाना तुलसी का सेवन शरीर को अंदर से इतना मजबूत बना देता है कि दवाइयों की जरूरत कम पड़ती है।आयुर्वेद बताता है कि तुलसी में कई अद्भुत गुण छिपे हैं। तुलसी के पत्तों में भरपूर मात्रा में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। यही वजह है कि इसे श्आरोग्य की संरक्षिकाश् कहा जाता है।रोजाना तुलसी खाने से कई फायदे मिलते हैं। इससे इम्यूनिटी इतनी मजबूत होती है कि सर्दी, खांसी, बुखार और फ्लू आसानी से नहीं लगता। गले में खराश, बलगम और पुरानी खांसी में राहत मिलती है। सांस की तकलीफ, अस्थमा और एलर्जी के मरीजों को फायदा होता है। शरीर से खराब तत्व बाहर निकलते हैं, ब्लड प्यूरिफिकेशन होता है। पाचन मजबूत होता है, गैस, अपच और एसिडिटी दूर रहता है। तुलसी के पत्ते खाने से तनाव और चिंता कम होती है क्योंकि तुलसी की खुशबू दिमाग को शांत करती है और नींद अच्छी लाती है।मुंह के छाले में भी आराम मिलता है। त्वचा पर चमक आती है, कील-मुंहासे कम होते हैं। सिर दर्द और माइग्रेन में भी फायदा होता है। आयुर्वेद में बताया जाता है कि रोजाना तुलसी सुबह खाली पेट चबाने से शरीर को कई लाभ मिलते हैं। तुलसी की चाय, शहद के साथ तुलसी का रस मिलाकर लेने से भी लाभ मिलता है। अदरक, काली मिर्च, लौंग डालकर तुलसी का काढ़ा बनाकर सेवन से भी लाभ मिलता है।

सेहत:कहीं आप रेनॉड्स सिंड्रोम के शिकार तो नहीं, सर्द मौसम में ध्यान देना जरूरी
ठंड में कइयों के हाथ-पैर अचानक बर्फ जैसे ठंडे पड़ जाते हैं, रंग बदल जाता है और कुछ समय तक कुछ महसूस ही नहीं होता है। अक्सर इसे लोग सामान्य ठंड समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह एक खास मेडिकल स्थिति भी हो सकती है, जिसे रेनॉड्स सिंड्रोम कहते हैं।सरल भाषा में कहें तो ठंडी हवा या तनाव के कारण हाथ-पैर की छोटी रक्त नलिकाएं अचानक बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं। जैसे ही खून का बहाव कम होता है, अंगों का रंग पहले सफेद, फिर नीला और बाद में लाल हो जाता है। इस दौरान ये सुन्न पड़ जाते हैं।यह शरीर की एक ऐसी प्रतिक्रिया है जो ठंड से खुद को बचाने के लिए होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह जरूरत से ज्यादा तीव्र हो जाती है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में इससे ज्यादा प्रभावित होती हैं, और यह समस्या प्रायः किशोरावस्था या युवावस्था में शुरू होती है। भावनात्मक तनाव भी इसका एक बड़ा कारण हो सकता हैकृजब मन घबराता है, शरीर की नसें सिकुड़ सकती हैं और उंगलियां ठंडी पड़ सकती हैं।वैज्ञानिकों ने इसकी दो किस्में बताई हैं। पहली, प्राइमरी रेनॉड्सकृजो अपने आप होती है और गंभीर नहीं मानी जाती। दूसरी, सेकेंड्री रेनॉड्सकृजो किसी अन्य बीमारी जैसे स्क्लेरोडर्मा या ल्युपस से जुड़ी हो सकती है और कभी-कभी उंगलियों में घाव का कारण भी बन सकती है। इसलिए अगर यह अक्सर और बहुत तीव्र रूप से हो, तो डॉक्टर से जांच कराना जरूरी है।एक महत्वपूर्ण अध्ययन (2023),लैंसेट रूमेटोलॉजी में प्रकाशित हुआ, जिसमें पाया गया कि जिन मरीजों में सेकेंड्री रेनॉड्स होता है, उनमें माइक्रोवेस्कुलर (बहुत छोटी रक्त नलिकाओं) को होने वाली क्षति जल्दी पकड़ में आ जाती है। शुरुआती पहचान से गंभीर जटिलताओं को रोका जा सकता है। एक और स्टडी, जो जर्नल ऑफ ऑटोइम्युनिटी में छपी, इस बात पर जोर देती है कि रेनॉड्स कई बार ऑटोइम्यून रोगों का पहला संकेत हो सकता है, इसलिए इसे हल्के में लेना उचित नहीं।दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे सर्दी से बचाव के लिए हमेशा दस्ताने और गर्म मोजे पहनना, अचानक तापमान परिवर्तन से बचना, धूम्रपान छोड़ना, तनाव कम करना और ऐसी चीजों से दूर रहना जिनमें हाथों पर कंपन ज्यादा पड़ता हो। कुछ लोगों को गर्म पानी में हाथ-पैरों को डुबोना तुरंत राहत देता है। जिन मरीजों में यह अधिक गंभीर होता है, डॉक्टर ब्लड वेसल्स फैलाने वाली दवाइयां देते हैं ताकि खून का प्रवाह ठीक बना रहे।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समस्या को शर्म या नजरअंदाज करने की चीज न समझें। यदि हाथ-पैर बार-बार सफेद-नीले हो रहे हों, दर्द व सुन्न-पन लंबे समय तक बना रहे या त्वचा पर घाव बनने लगें, तो यह संकेत है कि शरीर किसी बड़ी दिक्कत की ओर इशारा कर रहा है। समय पर जांच और सही देखभाल से रेनॉड्स पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है और सामान्य जीवन जिया जा सकता है।

देसी घी:भारत का असली सुपरफूड, जो स्वाद और सेहत दोनों का रखे ख्याल
नई दिल्ली। देसी घी सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाने वाली चीज नहीं है, बल्कि भारत का सदियों से माना जाने वाला असली सुपरफूड है। हमारे यहां घी को ताकत, ओज और लंबी उम्र का प्रतीक माना जाता है। आज विज्ञान भी मानता है कि देसी गाय का घी दुनिया के सबसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों में से एक है।इसमें मौजूद सीएलए, ब्यूट्रेट, ओमेगा-3, विटामिन ए, डी, ई, के2 और कई तरह के फैटी एसिड इसे एक सम्पूर्ण औषधि बना देते हैं। आयुर्वेद में इसे योगवाही कहा गया है जो दूसरी औषधियों की क्षमता भी बढ़ा देता है।घी की सबसे खास बात है कि यह पाचन को मजबूत बनाता है। इसमें मौजूद ब्यूट्रिक एसिड आंतों को हील करता है, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम और एसिडिटी को शांत करता है और अग्नि को बढ़ाता है। मस्तिष्क के लिए तो घी किसी अमृत से कम नहीं है। यह मस्तिष्क को स्निग्धता देता है, याददाश्त सुधारता है और तनाव कम करने में मदद करता है। महिलाओं में हार्मोन बैलेंस, पीसीओडी, थायराइड और पीरियड से जुड़ी समस्याओं में भी घी के अच्छे प्रभाव माने जाते हैं।हड्डियों और जोड़ों के लिए भी घी बेहद फायदेमंद है, क्योंकि इसमें मौजूद विटामिन के2 कैल्शियम को सही जगह हड्डियों में जमा करता है। जॉइंट्स में स्नेहन बढ़ता है और दर्द कम होता है। सर्दियों में घी शरीर को गर्माहट देता है, वायरल इंफेक्शन से बचाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।आयुर्वेद में घी को रसायन, मेध्य (दिमाग के लिए टॉनिक) और उम्र बढ़ाने वाला बताया गया है। यह वात-पित्त-कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है और शरीर की हर धातु को पोषण देता है। चरक संहिता में घी को हर ऋतु में सेवन करने योग्य सर्वश्रेष्ठ स्निग्ध बताया गया है।घी के कई घरेलू उपयोग आज भी लोग करते हैं, जैसे सर्दी-खांसी में अदरक वाला घी, त्वचा के लिए हल्दी-घी का लेप, कब्ज में रात को घी वाला गुनगुना दूध, बालों के झड़ने में घी की मालिश और दिल की सेहत के लिए लहसुन के साथ घी का सेवन। बच्चों को थोड़ी मात्रा में शहद के साथ घी दिया जाता है ताकि पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो। आंखों के सूखेपन में त्रिफला घी, एसिडिटी में घी का सेवन और नस्य के रूप में घी की 1-2 बूंदें भी पारंपरिक उपायों का हिस्सा हैं।

सेहत: सर्दियों के मौसम में शरीर में आते हैं कई बडे बदलाव, दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, जानें और भी
नई दिल्ली। साइंस हो या आयुर्वेद दोनों कहते हैं कि पूरी नींद कई समस्याओं की काट है। मगर सोने का भी एक समय होता है। रात की नींद सबसे प्रभावी मानी जाती है। सर्दियों का मौसम शुरू होते ही शरीर में कई बदलाव आने लगते हैं। ऐसे में आयुर्वेद दिन में न सोने की सलाह देता है। आयुर्वेद के अनुसार हेमंत ऋतु (मध्य नवम्बर से मध्य जनवरी) में पाचन अग्नि सबसे प्रबल होती है, इसलिए भूख ज्यादा लगती है और शरीर को पौष्टिक एवं गर्म आहार की जरूरत पड़ती है।हेमंत एवं शिशिर ऋतु के बारे में बताया जाता है कि इस मौसम में क्या करना चाहिए और किन बातों का परहेज करना चाहिए। आयुर्वेद कहता है कि इस मौसम में दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। दिन में सोने से परहेज करें, इससे कफ दोष बढ़ता है और पाचन शक्ति मंद पड़ती है। ठंड और शुष्क वातावरण में पहले से ही कफ बढ़ने की प्रवृत्ति रहती है, दिन की नींद इसे और बढ़ा देता है, जिससे सर्दी-खांसी, भारीपन, सुस्ती और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।नींद के अलावा आयुर्वेद यह भी बताता है कि सर्दियों में क्या खाएं और क्या न खाएं, इसके लिए खट्टा, नमकीन, मीठा और घी युक्त भारी आहार लें , दूध-दही, गुड़, तिल, मूंगफली, बाजरा, नए गेहूं की रोटी फायदेमंद है। गर्म सूप, हर्बल चाय, अदरक-तुलसी वाली चाय, नींबू युक्त गर्म पानी, तिल-गुड़ की गजक, रेवड़ी, मूंगफली की चिक्की खाना फायदेमंद होता है।इन चीजों का सेवन फायदेमंद होता है। वहीं, कुछ चीजों के सेवन न करने की भी सलाह आयुर्वेद देता है। इस मौसम में कड़वा, कसैला और फूलगोभी, आलू , ठंडा पानी, कोल्ड ड्रिंक, बासी भोजन का सेवन नुकसान दे सकता है। ज्यादा मसालेदार चीजें भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं।आयुष मंत्रालय का कहना है कि कुछ नियमों का पालन करने से सर्दियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहती है और मौसमी बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है। दिन में सोने की आदत छोड़कर और सही आहार-विहार अपनाकर इस मौसम में फिट और फाइन रहा जा सकता है। सर्दियों में रोज पूरे शरीर पर तिल या सरसों का तेल लगाकर मालिश (अभ्यंग) करना, गुनगुने पानी से नहाना, गर्म कपड़े पहनना फायदेमंद होता है। सुबह की धूप जरूर लें, यह विटामिन डी देती है और कफ को संतुलित करती है। इसके साथ ही व्यायाम और योग करने से शरीर गर्म रहता है और इम्यूनिटी बूस्ट होती है।

आयुर्वेदः:सर्दियों में सबसे ज्यादा गुणकारी है तिल का तेज, त्वचार को संरक्षण देने के साथ जोड़ों के दर्द को भी करता है कम
नई दिल्ली। जैतून का तेल और बाकी प्राकृतिक तेलों के अपने-अपने फायदे होते हैं। सर्दियों में तेल अभ्यंग करना बहुत अच्छा होता है, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सर्दियों में किस तेल का इस्तेमाल ज्यादा लाभकारी होता है। आयुर्वेद में तिल के तेल को सर्दियों में सबसे ज्यादा गुणकारी बताया गया है, जो त्वचा को संरक्षण देने के साथ-साथ जोड़ों के दर्द में भी काम देता है।तिल का तेल सिर्फ एक तेल नहीं, बल्कि सर्दियों का नेचुरल बॉडी कवच है। यह शरीर को सुरक्षित रखने के साथ-साथ शरीर को गर्म रखता है, स्किन को पोषित करके उसे जवां बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही, मांसपेशियों और जोड़ों में होने वाले दर्द से भी राहत देता है। आयुर्वेद में माना गया है कि तिल का तेल सर्दियों में बढ़ने वाले वात को कम करता है, जिससे गठिया, जोड़ों में दर्द और नींद न आने की परेशानी होती है। ऐसे में अगर तिल के तेल से अभ्यंग किया जाए तो इन सभी परेशानियों से राहत मिल सकती है।आयुर्वेद में माना गया है कि तिल का तेल इतना प्रभावशाली होता है कि जैसे ही इसे त्वचा पर लगाया जाता है, तो त्वचा की सात परतों को पार करके अंदर तक अपना असर दिखाता है। इसमें भरपूर मात्रा में सेसामोल, सेलमिन और विटामिन ई होता है, जो प्राकृतिक रूप से त्वचा को पोषण देता है। इससे त्वचा का रूखापन, झुर्रियां और सर्दियों में त्वचा पर पड़ने वाली दरारें कम होती हैं। सेसामोल और सेलमिन मिलकर त्वचा को अंदर से पोषण देते हैं।भारतीय संस्कृति में सालों से उबटन में तिल के तेल का इस्तेमाल होता आया है, क्योंकि ये धूप में मौजूद यूवी किरणों से भी बचाता है। ये हमारे शरीर पर सनस्क्रीन की तरह काम करता है। इसके प्रयोग से त्वचा पर एक पतली लेयर बन जाती है। ये लेयर 24 घंटे तक शरीर पर बनी रहती है और त्वचा की रक्षा करती है। ऐसी क्षमता न तो नारियल के तेल में होती है और न ही जैतून के तेल में।तिल के तेल का प्रयोग हड्डियों को मजबूती देता है। जोड़ों के दर्द और गठिया की परेशानी सर्दियों में ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में सुबह-शाम तिल के तेल से अभ्यंग लाभकारी होता है।

सेहतः :शरीर के लिए आहार के साथ सूर्य स्नान भी है जरूरी, जानें तीन महत्वपूर्ण स्टेप्स
नई दिल्ली। एक अच्छी जीवन शैली के लिए पौष्टिक भोजन को बहुत महत्व दिया जाता है, लेकिन पौष्टिक भोजन के साथ-साथ सूर्य की रोशनी की भी आवश्यकता होती है। शीत ऋतु के मौसम में शरीर में विटामिन डी की कमी ज्यादा हो जाती है, जिससे थकान, हड्डियों में कमजोरी, मांसपेशियों का कमजोर होना और मन बेवजह उदास होने की समस्याएं महसूस होती हैं। ऐसे में डॉक्टर सप्लीमेंट का सहारा लेने की सलाह देते हैं, लेकिन सप्लीमेंट से ज्यादा प्राकृतिक रूप से शरीर को विटामिन डी देना ज्यादा लाभकारी होता है।शरीर को सिर्फ आहार नहीं, बल्कि धूप भी चाहिए। आयुर्वेद में विटामिन डी की कमी को अग्नि और रस धातु की कमी से जोड़कर देखा गया है। आयुर्वेद कहता है कि सूर्य के बिना शरीर की अग्नि यानी पाचन शक्ति, ओज (शरीर की लड़ने की शक्ति और चमक), रक्तधारा (ब्लड सर्कुलेशन), और धातु-पोषण (शरीर में बनने वाले उत्तकों का पोषण) अधूरा है।जब तक शरीर को धूप का स्पर्श नहीं मिलता, तब तक शरीर इन सभी फायदों से वंचित रह जाता है। शीत ऋतु में भी सूर्य की ऊर्जा से विटामिन डी की कमी को पूरा किया जा सकता है। सुबह के सूर्य उष्णता, प्रकाश और प्राण की शक्ति से युक्त होता है, जो शरीर को वो ताकत देता है जिसकी पूर्ति विटामिन डी के सप्लीमेंट भी नहीं कर पाते हैं।इसके लिए सबसे पहले सुबह 7-8 बजे की धूप शरीर के लिए लाभकारी होती है। ऐसे में सूती कपड़े पहनकर धूप ग्रहण करें। आयुर्वेद में इसे सूर्य स्नान भी कहते हैं। दूसरा, सूर्य की रोशनी में ही अभ्यंग विधि करें। अभ्यंग तेल मालिश की विधि है, जो शरीर में विटामिन डी के अवशोषण को बढ़ाती है। इसके लिए पैर, हाथ, और गर्दन पर तेल मालिश करें। शीत ऋतु में जैतून का तेल, बादाम का तेल, और तिल के तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।तीसरा स्टेप है पौष्टिक आहार लेना। पौष्टिक आहार लेकर भी शरीर में विटामिन डी का अवशोषण बढ़ता है। विटामिन डी का अवशोषण शरीर में वसा युक्त भोजन के साथ ज्यादा अच्छे तरीके से होता है। इसके लिए तिल, मूंगफली, अलसी, गाय का दूध, मक्खन, मशरूम, सोंठ, काली मिर्च और आंवले का सेवन लाभकारी होता है। ये तीनों स्टेज शरीर को पुनर्जीवित करने की ताकत रखते हैं। ऐसा करने से हड्डियों, मांसपेशियों और मन तीनों को ताकत मिलती है।

सेहत:सर्दी के मौसम में तन और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं अंकुरित अनाज, इम्यूनिटी के खास दोस्त
भोपाल। सर्दी के मौसम का पाचन तंत्र पर खास प्रभाव पड़ता है। इस मौसम के साथ ही पेट फूलना, कब्ज, गैस और अपच जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। ऐसे में एक्सपर्ट तन और मन दोनों को स्वस्थ रखने वाले अंकुरित अनाज को खाने की थाली में शामिल करने की सलाह देते हैं। मध्य प्रदेश का आयुष विभाग बताता है कि अंकुरित अनाज का सेवन पाचन तंत्र के लिए बेहद फायदेमंद होता है और इनसे जुड़ी परेशानियों का आसान और प्राकृतिक इलाज है।अंकुरित अनाज न सिर्फ पाचन को दुरुस्त रखता है, बल्कि पूरे शरीर को पोषण देकर तन-मन दोनों को स्वस्थ बनाता है। अंकुरण की प्रक्रिया में अनाज के अंदर छिपे सारे पोषक तत्व कई गुना बढ़ जाते हैं। साधारण मूंग, चना में प्रोटीन अंकुरित होने पर बढ़ जाता है। इसी तरह विटामिन-सी, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, आयरन, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट्स की मात्रा भी कई गुना बढ़ जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि अंकुरण के दौरान एंजाइम एक्टिव हो जाते हैं, जो भोजन को आसानी से पचाने में मदद करते हैं।अंकुरित अनाज को अपने खाने की थाली में शामिल करने से एक-दो नहीं, बल्कि कई फायदे मिलते हैं। फाइबर की भरपूर मात्रा कब्ज, अपच, गैस जैसी समस्याओं को दूर करती है और आंतों को साफ रखती है। एंजाइम की वजह से शरीर को विटामिन-मिनरल आसानी से मिल जाते हैं। कम कैलोरी में भरपेट पोषण मिलता है, भूख कम लगती है। इससे वजन नियंत्रण में मदद मिलती है। विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट्स संक्रमण से बचाते हैं। इम्यूनिटी बढ़ती है। आयरन की मात्रा बढ़ने से एनीमिया में फायदा मिलता है और खून की कमी दूर होती है। इससे त्वचा और बालों में भी निखार आता है। बायोटिन और प्रोटीन बालों का झड़ना रोकते हैं और चमक लाते हैं।डायबिटीज के मरीजों के लिए भी अंकुरित अनाज अनेक लाभ देने वाला है। लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स होने से ये डायबिटीज रोगियों के लिए भी अच्छा होता है। इसे बनाना भी बेहद सरल और झंझटों से मुक्त है। रात में मूंग, चना, काला चना या मिक्स अनाज भिगो दें। सुबह पानी निकालकर गीले कपड़े में बांधकर 8 से 10 घंटे रखें। अगले दिन ताजे अंकुरित अनाज में नींबू-नमक, काला नमक, भुना जीरा डालकर, चाट बनाकर या सब्जी में मिलाकर खा सकते हैं। ये नाश्ते में सबसे अच्छा रहता है।

आयुर्वेद :दिल और दिमाग के लिए बेहद फायदेमंद है छुहारा, जानें रात के समय इसके सेवन के लाभ
नई दिल्ली। सर्दियों का मौसम शुरू होते ही, हमारे खान-पान में सब्जियों और ड्राई फ्रूट्स को शामिल करने का अच्छा समय आ जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में पाचन अग्नि (जठराग्नि) अत्यंत प्रबल होती है, जिससे भारी से भारी भोजन भी आसानी से पच जाता है। इसी कारण, सर्दियों में ऐसे ड्राई फ्रूट्स का सेवन करना चाहिए जो शरीर को गर्म रखने और शक्ति देने में सहायक हों। इनमें से एक सुपरफूड है छुहारा, जिसे सूखे खजूर के नाम से भी जाना जाता है।छोटा-सा दिखने वाला छुहारा स्वाद में मीठा होता है और इसके अंदर ऊर्जा और पोषण के साथ औषधीय गुणों का भी भंडार होता है। आयुर्वेद में छुहारा को शक्तिवर्धक माना जाता है, क्योंकि ये सर्दियों में शरीर को गर्म रखने का काम करता है, ऊर्जा प्रदान करता है और कमजोरी को दूर करता है। सर्दियों में छुहारा का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। रोजाना 2दृ3 छुहारा लेकर दूध में उबालकर रात के समय लेने चाहिए। इससे शरीर गर्म रहता है और सर्दी से होने वाले छोटे-मोटे संक्रमण भी नहीं होते हैं।छुहारे का सेवन दिल के लिए लाभकारी होता है। छुहारे में पोटैशियम और आयरन होते हैं, जो शरीर में रक्त संचार को सुधारते हैं और हीमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाते हैं। इससे बीपी बढ़ने की परेशानी भी नहीं होती है, क्योंकि यह दिल को सही तरीके से काम करने में मदद करता है। छोटा सा छुहारा मस्तिष्क के लिए भी लाभकारी होता है। इसका सेवन मस्तिष्क की नसों को मजबूत करता है और इसमें मौजूद मैग्नीशियम और फॉस्फोरस मस्तिष्क के तनाव को कम करते हैं।इसके साथ ही शरीर में होने वाली कमजोरी और थकान के लिए भी रोजाना छुहारे का सेवन कर सकते हैं। छुहारे में भरपूर मात्रा में कैल्शियम होता है, जो हड्डियों और दांतों को मजबूत करने में मदद करता है। बुजुर्गों के लिए तो छुहारे का सेवन अमृत के समान है। चाहें तो बुजुर्गों को छुहारे को पीसकर दूध में उबालकर दिया जा सकता है। ये गठिया के दर्द में भी आराम देता है। इसके साथ ही ये स्किन और बालों के लिए, रक्त की शुद्धता और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भी उपयोगी है।

विश्व निमोनिया दिवस: ठंड में बढ़ता है बीमारी का खतरा, ये योगासन और प्राणायाम बनाएंगे फेफड़ों को मजबूत
नई दिल्ली। हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों को फेफड़ों की सुरक्षा और गंभीर श्वसन रोगों के प्रति जागरूक करने के लिए समर्पित है। निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो फेफड़ों में संक्रमण पैदा करती है और इसका कारण बैक्टीरिया, वायरस या कभी-कभी फंगस भी हो सकता है। इससे मरीज को तेज बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। निमोनिया के दौरान और इसके बाद फेफड़ों की शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे समय में शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना बेहद जरूरी होता है। इसी बीच योग और प्राणायाम शरीर को न केवल आराम पहुंचाते हैं, बल्कि फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाकर संक्रमण से लड़ने की क्षमता को भी मजबूत करते हैं।भुजंगासन यह आसन फेफड़ों में अंदर तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है। निमोनिया से उबरते समय अक्सर मरीज को सांस लेने में कठिनाई होती है, और छाती में जकड़न रहती है। भुजंगासन इस जकड़न को कम करता है और फेफड़ों की मांसपेशियों को मजबूत बनाकर शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है। इसका नियमित अभ्यास रिकवरी की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाता है।मत्स्यासन: यह आसन फेफड़ों में रक्त का संचार बढ़ाने में सहायक होता है। फेफड़ों की मांसपेशियों को पर्याप्त खून और पोषण मिलने से उनकी ताकत बढ़ती है। इस आसन से निमोनिया के बाद फेफड़ों की रिकवरी जल्दी होती है और सांस लेने की प्रक्रिया में सुधार आता है।अनुलोम-विलोम: यह प्राणायाम फेफड़ों के लिए बेहद लाभकारी है। यह सांस की नलियों को साफ रखता है और फेफड़ों की क्षमता को बनाए रखता है। जब व्यक्ति निमोनिया से उबर रहा होता है, तो श्वसन तंत्र अक्सर सुस्त और कमजोर होता है। इस प्राणायाम से धीरे-धीरे फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है, जिससे सांस लेना आसान हो जाता है और संक्रमण के बाद शरीर जल्दी ऊर्जा महसूस करता है।कपालभाति: यह प्राणायाम शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। यह केवल फेफड़ों की सफाई नहीं करता, बल्कि उन्हें मजबूत भी बनाता है। निमोनिया के बाद फेफड़ों में अक्सर कफ और नमी जमा रहती है, जो सांस लेने में बाधा डालती है। कपालभाति प्राणायाम इन समस्याओं को कम करता है और श्वसन प्रणाली को सक्रिय बनाकर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

सेहत के लिए रामबाण है केला और काली मिर्च:हड्डियां और इम्यून सिस्टम भी होंगे मजबूत
नई दिल्ली। बात जब भी सेहत की आती है, तो फलों में केले और मसालों में काली मिर्च का जिक्र जरूर होता है। दोनों का मेल शरीर को अंदर से मजबूत बनाता है और दिमाग को तेज करता है। सुबह खाली पेट या खाने के बाद केले के साथ चुटकी भर काली मिर्च पाउडर लेने से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है। वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक, केला फाइबर, विटामिन और मिनरल्स से भरपूर होता है, जबकि काली मिर्च में पाइपेरिन नामक तत्व मौजूद होता है, जो शरीर में पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से सोखने में मदद करता है। जब दोनों साथ खाए जाते हैं, तो यह पाचन को सक्रिय करता है और कब्ज या पेट फूलने जैसी आम समस्याओं से राहत दिलाता है। केले और काली मिर्च का मिश्रण स्वाद के साथ-साथ सेहत भी देता है।केले में प्राकृतिक शुगर जैसे ग्लूकोज और फ्रुक्टोज की भरपूर मात्रा होती है, जिससे शरीर को तुरंत ऊर्जा मिलती है। काली मिर्च इस ऊर्जा का तेजी से शरीर में संचार करने में मदद करती है। यही कारण है कि कई फिटनेस लवर्स इसे वर्कआउट से पहले एक हल्के एनर्जी बूस्टर के रूप में लेते हैं। यह लंबे समय तक थकान को दूर रखता है और शरीर को एक्टिव बनाए रखता है।वजन नियंत्रित रखने में भी केले और काली मिर्च की जोड़ी मददगार होती है। केला पेट को लंबे समय तक भरा रखता है, जिससे ज्यादा खाने की इच्छा कम होती है। वहीं, काली मिर्च शरीर में थर्मोजेनेसिस यानी गर्मी पैदा करने की प्रक्रिया को बढ़ाती है, जिससे मेटाबॉलिज्म तेज होता है और कैलोरी तेजी से बर्न होती हैं। यह बिना किसी साइड इफेक्ट के वजन घटाने में मदद कर सकता है।हड्डियों की मजबूती की बात करें तो केला मैग्नीशियम और पोटैशियम से भरपूर होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। काली मिर्च में मौजूद मैंगनीज बोन डेंसिटी को बढ़ाने में सहायक होता है। दोनों का मेल शरीर को जरूरी मिनरल्स देता है, जिससे उम्र बढ़ने के साथ भी हड्डियों की ताकत बरकरार रहती है।मानसिक स्वास्थ्य पर भी इस कॉम्बिनेशन का अच्छा असर होता है। केले में मौजूद श्ट्रिप्टोफैनश् नामक अमीनो एसिड शरीर में जाकर श्सेरोटोनिनश् में बदल जाता है, जो दिमाग को शांत करता है। दूसरी ओर, काली मिर्च इन पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित होने में मदद करती है, जिससे तनाव और चिड़चिड़ापन कम होता है।इसके अलावा, इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में भी केला और काली मिर्च असरदार हैं। केला विटामिन सी और बी6 से भरपूर होता है, जबकि काली मिर्च में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर को हानिकारक फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं। यह मिश्रण सर्दी-जुकाम जैसी मौसमी बीमारियों से रक्षा करता है और शरीर की अंदरूनी शक्ति को बढ़ाता है।

प्रेग्नेंसी में महिलाओं के लिए वरदान से कम नहीं ये आसन:कई समस्याओं से दिलाता है निजात
नई दिल्ली। कहते हैं कि बच्चे को जन्म देने के समय माताओं को 206 हड्डियों के टूटने जैसा दर्द होता है। हालांकि, उसके पहले का भी सफर आसान नहीं होता है क्योंकि गर्भावस्था में महिलाओं को कई शारीरिक परेशानियां झेलनी पड़ती हैं, लेकिन योगासन इसमें बड़ा सहारा बन सकता है। यही नहीं, भद्रासन गर्भवती महिलाओं के लिए तो वरदान से कम नहीं है।भद्र शब्द का अर्थ दृढ़, सज्जन, या सौभाग्यशाली होता है। यह आसन शरीर को मजबूत बनाता है और मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है। खासकर गर्भवती महिलाओं और मासिक धर्म के दौरान पेट दर्द से जूझ रही महिलाओं के लिए यह वरदान से कम नहीं है।आयुष मंत्रालय के अनुसार, भद्रासन का नियमित अभ्यास गर्भावस्था के समय को आसान बनाता है, जिससे प्रसव आसान हो सकता है। यह आसन महिलाओं को मासिक धर्म के समय होने वाले असहनीय पेट दर्द, ऐंठन से भी राहत दिलाता है। साथ ही, यह शरीर को मजबूती भी देता है और मन को शांत रखता है। गर्भावस्था में होने वाली कमर दर्द, थकान और तनाव जैसी समस्याओं में भी यह प्रभावी साबित होता है।योग एक्सपर्ट भद्रासन का अभ्यास कैसे करें? इस विषय में विस्तार से जानकारी देते हैं। भद्रासन करने के लिए सबसे पहले जमीन पर चटाई बिछाकर बैठें। दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाएं। अब घुटनों को मोड़कर पैरों के तलुए को आपस में जोड़ें। एड़ियां पेट के पास लाएं और हाथों से पैरों को पकड़कर रखें। इस दौरान पीठ और गर्दन को सीधा रखें और आंखें बंद कर गहरी सांस लें और छोड़ें। शुरुआत में 1-2 मिनट तक इस आसन में रहें, धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।महिलाओं के लिए भद्रासन कई तरह से फायदेमंद है। पीरियड्स के दौरान पेट में ऐंठन और दर्द को भी कम करने में सहायक है। यह रीढ़ की हड्डी को लचीला रखता है और कब्ज जैसी समस्या से छुटकारा दिलाता है। भद्रासन न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह तनाव मुक्ति में भी सहायक है। हालांकि, गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर या योग विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही अभ्यास करना चाहिए। किसी भी योगासन से पहले चिकित्सक की सलाह जरूरी है।

सौ समस्याओं का समाधान:आयुर्वेद के इन पांच सिद्धांतों को अपनाकर जीवनशैली को करें संतुलित
नई दिल्ली। आज की भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में तनाव, अनिद्रा समेत कई बीमारियों का बिन बुलाए मेहमान की तरह आना बेहद आम सी बात बन चुकी है। हालांकि, कुछ बातों का ध्यान रखकर इन समस्याओं को छूमंतर किया जा सकता है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने बेहतरीन स्वास्थ्य का संपूर्ण और सरल तरीका बताया है। मंत्रालय के अनुसार, आयुर्वेद संतुलित जीवनशैली और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है। दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार, सद्वृत्त और योग जैसे प्रमुख सिद्धांतों को जीवन में शामिल करके कोई भी व्यक्ति स्वस्थ, ऊर्जावान और रोग मुक्त रह सकता है। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर जोर देती है, जिससे रोजमर्रा की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आता है।मंत्रालय का कहना है कि ये सिद्धांत अपनाने से एक नहीं अनेक फायदे मिलते हैं। आयुर्वेद न केवल रोग निवारण करता है, बल्कि जीवन को खुशहाल बनाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, शहरों में बढ़ते तनाव और प्रदूषण के बीच ये तरीके विशेष रूप से उपयोगी हैं।आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देशों में इन सिद्धांतों को आसानी से अपनाने की सलाह दी गई है। इसमें पहले नंबर पर आता है दिनचर्या, यह दैनिक रूटीन का सिद्धांत है। सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, स्नान और समय पर भोजन-सोना शामिल है। इससे शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक संतुलित रहती है और ऊर्जा बनी रहती है।मंत्रालय ऋतुचर्या यानी मौसम के अनुसार जीवनशैली बदलने की सलाह देता है। गर्मियों में ठंडी चीजें, सर्दियों में गर्म और पौष्टिक आहार लेना। इससे मौसमी बीमारियां दूर रहती हैं और शरीर अनुकूलित होता है। मंत्रालय उचित आहार ग्रहण करने पर जोर देता है। इसके लिए संतुलित और सात्विक भोजन, ताजा फल, सब्जियां, अनाज इस्तेमाल करने चाहिए। पाचन के अनुसार भोजन चुनें, जैसे वात दोष वाले हल्का गर्म भोजन। इससे पोषण मिलता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।मंत्रालय सद्वृत्त के बारे में जानकारी देता है। इसके अंतर्गत नैतिक और मानसिक व्यवहार का पालन, सत्य बोलना, क्रोध नियंत्रित करना, दया और संयम रखना शामिल है। यह मन को शांत रखता है और तनाव से मुक्ति देता है।मंत्रालय सौ समस्याओं का समाधान योग को बताता है। आसन, प्राणायाम और ध्यान। रोजाना अभ्यास से लचीलापन, श्वास पर नियंत्रण और मानसिक स्पष्टता आती है। यह शरीर को मजबूत बनाता है और ऊर्जा का प्रवाह सुचारू करता है।

स्वास्थ्य:कई समस्याओं का एक समाधान है सूर्योदय से पहले उठना, आयुष मंत्रालय ने गिनाए लाभ
नई दिल्ली। सूर्योदय से पहले उठना स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। यह एक आदत कई समस्याओं का समाधान है और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने बताया है कि ताजी हवा से लेकर मानसिक शांति तक, सुबह जल्दी उठने के लाभ अनगिनत हैं। आयुष मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर बताया, सूर्योदय से पहले उठकर अविश्वसनीय लाभ पाएं, ताजी हवा से लेकर बेहतर स्वास्थ्य तक, सूर्योदय से पहले अपना दिन शुरू करने से जिंदगी में काफी सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।आयुष मंत्रालय ने लाभ गिनाते हुए बताया, सूर्योदय से पहले की हवा सबसे शुद्ध और ऑक्सीजन से भरपूर होती है। इस समय वायु प्रदूषण कम होता है, जिससे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। सुबह की ताजी हवा में सांस लेने से शरीर में ऊर्जा बढ़ती है और दिन भर ताजगी बनी रहती है।आयुष मंत्रालय के अनुसार, सुबह जल्दी उठने से नींद, भोजन और व्यायाम का चक्र नियमित होता है। इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है, वजन नियंत्रित रहता है और तनाव कम होता है। दिन की शुरुआत व्यवस्थित होने से पूरा दिन ताजगी भरा बनता है।सुबह जल्दी उठने से शरीर के हार्मोन जैसे मेलाटोनिन और कोर्टिसोल का संतुलन बना रहता है। इससे नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है और थकान दूर रहती है। यह आदत इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करती है। यही नहीं, सुबह का शांत वातावरण मन को शांति देता है। इस समय ध्यान करने से तनाव, चिंता और अवसाद कम होता है।मंत्रालय का कहना है कि सुबह जल्दी उठने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसके साथ ही सूर्योदय से पहले उठने से पीनियल ग्रंथि सक्रिय होती है, जो मेलाटोनिन हार्मोन बनाती है। यह नींद को नियंत्रित करती है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करती है। इससे शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक सही रहती है। एक्सपर्ट के अनुसार, सूर्योदय से पहले का समय (ब्रह्म मुहूर्त) ध्यान, योग और पूजा के लिए सबसे उत्तम है। इस समय एकाग्रता बढ़ती है और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इससे दिन की शुरुआत सकारात्मक होती है।

योग की शक्ति:उत्तानपादासन से पेट की चर्बी घटाएं, नर्वस सिस्टम को भी करता है बैलेंस
आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोग स्वस्थ भोजन और सेहत का ध्यान रखना भूल जाते हैं। नतीजतन लोगों को कम वजन या अनियंत्रित वजन की शिकायत का सामना करना पड़ता है। साथ ही, डिप्रेशन और एंग्जाइटी बढ़ने लगती है। ऐसे में योग करना प्रभावी उपाय हो सकता है। उत्तानपादासन इन्हीं में से एक है। आयुष मंत्रालय माने तो उत्तानपादासन का रोजाना अभ्यास करने से पेट दर्द, अपच और दस्त जैसी शारीरिक समस्या कम खत्म होने लगती हैं। इसका नियमित अभ्यास उदर पीड़ा, अपच और अतिसार (दस्त) को दूर करने में सहायक है। यह उदर और पेल्विस की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। साथ ही यह अवसाद और चिंताओं से उबारने में भी सहायक है।इसे करने के लिए फर्श में योगा मैट बिछा लें। फिर लेट जाएं और दोनों हाथ शरीर से सटाकर रखें। हथेलियां जमीन की ओर रखें और गहरी सांस लें और धीरे-धीरे पैरों को 30-45 डिग्री तक ऊपर उठाएं। 10-20 सेकंड तक होल्ड करें, फिर सांस छोड़ते हुए नीचे लाएं। शुरुआत में 3-5 राउंड करें, फिर धीरे-धीरे बढ़ाएं। सुबह खाली पेट करें तो ज्यादा फायदा होगा। यह आसन दिमाग को शांत करता है, नर्वस सिस्टम को बैलेंस करता है और स्ट्रेस लेवल भी कम करता है। यह ऑफिस की टेंशन या पढ़ाई के प्रेशर से जूझ रहे युवाओं के लिए मन को स्थिर रखने का बेहतरीन तरीका है।उत्तानपादासन को करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिसका सीधा असर पाचन तंत्र पर पड़ता है। भोजन पचने की प्रक्रिया में सुधार आता है और गैस या कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। जिन लोगों को रोज पेट साफ नहीं होता या जिन्हें खाने के बाद भारीपन लगता है, उनके लिए यह आसन बेहद फायदेमंद माना गया है। नियमित अभ्यास से 15 दिनों में फर्क दिखना शुरू हो जाएगा, लेकिन इस बात का खास ख्याल रहे कि गर्भवती महिलाएं और हर्निया या सर्जरी वाले मरीज इस आसन को करने से बचें या डॉक्टर से सलाह लें।

आयुर्वेद:रोज सुबह मेथी का पानी पीने से शरीर में होते हैं चमत्कारी बदलाव, जानिए आयुर्वेद और विज्ञान दोनों की राय
नई दिल्ली। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मेथी को अमृत तुल्य औषधि बताया गया है। इसके छोटे-छोटे बीजों में सेहत को बदल देने वाली ताकत छिपी होती है। आयुर्वेद कहता है कि मेथी त्रिदोषनाशक यानी वात, पित्त और कफ, तीनों दोषों को संतुलित करने वाली जड़ी-बूटी है। वहीं, आधुनिक विज्ञान भी इसे सुपरफूड की श्रेणी में रखता है, क्योंकि इसमें फाइबर, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन बी6, और एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे कई जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि मेथी के बीजों में मौजूद सैपोनिन और फेनोलिक कंपाउंड शरीर के अंदर सूजन को कम करने, ब्लड शुगर को नियंत्रित करने और मेटाबॉलिज्म को सुधारने में मदद करते हैं।जब हम रातभर मेथी के दानों को पानी में भिगो देते हैं, तो उनके सारे पोषक तत्व पानी में घुल जाते हैं। सुबह खाली पेट यह पानी पीने से यह शरीर में आसानी से अवशोषित हो जाता है। यही कारण है कि आयुर्वेद में बासी मुंह मेथी जल पीने की सलाह दी गई है। यह साधारण-सा घरेलू नुस्खा शरीर की कई बड़ी परेशानियों को जड़ से दूर करने की क्षमता रखता है। सबसे पहले यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। यह पेट में जमी गैस, एसिडिटी या कब्ज जैसी दिक्कतों को दूर कर आंतों को साफ करता है। जब पाचन अच्छा होता है, तो शरीर को ऊर्जा भी ज्यादा मिलती है और चेहरे पर एक अलग ही निखार आता है।विज्ञान भी यह मानता है कि मेथी में घुलनशील फाइबर होता है जो भोजन के पाचन को धीमा कर ब्लड शुगर को स्थिर रखता है। यही गुण डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद है। वहीं वजन घटाने की चाह रखने वालों के लिए भी मेथी का पानी एक आसान उपाय है। यह मेटाबॉलिज्म को तेज करता है और लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस करवाता है। इससे अनचाही भूख कम लगती है और शरीर की अतिरिक्त चर्बी धीरे-धीरे घटने लगती है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि मेथी में मौजूद फाइबर फैट ब्रेकडाउन में मदद करता है और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी संतुलित रखता है।दिल की सेहत के लिए भी यह बेहद उपयोगी माना जाता है। मेथी का पानी शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल को घटाता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल यानी एचडीएल को बढ़ाता है। इससे दिल की धमनियों में ब्लॉकेज की संभावना कम होती है और हृदय स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह हृदय को पोषण देने वाली औषधि है जो रक्त संचार को भी दुरुस्त रखती है।महिलाओं के हार्मोनल बैलेंस के लिए भी मेथी का पानी बेहद लाभकारी है। यह पीसीओडी, थायरॉइड और मासिक धर्म की अनियमितता जैसी समस्याओं में राहत देता है। मेथी के तत्व शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन को संतुलित करते हैं, जिससे त्वचा और बालों दोनों की सेहत सुधरती है। मेथी के एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालते हैं, जिससे त्वचा साफ, चमकदार और जवान दिखती है।

संखाहुली को खरपतवार मानकर न करें अनदेखा:इसमें छिपा है औषधीय गुणों का भंडार, जाना जाता है धतरे के नाम से भी
नई दिल्ली। भारत, एक ऐसा राष्ट्र है जो सदियों से प्रकृति को देवी स्वरूप पूजता आया है और अपनी वनस्पति संपदा को भी उसी सम्मान से देखता है। हमारे यहां प्रकृति से प्राप्त प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग करने की गहरी परंपरा रही है। वास्तव में, प्रकृति में मिलने वाला हर पौधा किसी न किसी रूप में मानव जाति के लिए लाभकारी होता है- आवश्यकता केवल उसके सही उपयोग की सटीक जानकारी होने की है। ऐसा ही एक पौधा है संखाहुली, जिसे अक्सर लोग साधारण खरपतवार मानकर अनदेखा कर देते हैं, लेकिन यह औषधीय गुणों का एक छिपा हुआ भंडार है।संखाहुली एक खतपतवार है, जो नुकीला होता है और कपड़ों में बुरी तरीके से चिपक जाता है। ये पशुओं की त्वचा पर भी चिपककर उन्हें नुकसान पहुंचाता है और इसी वजह से लोग इसे विषकारी मानते हैं, लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। ये पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे कॉकलेबुर, संखाहुली, छोटा धतूरा और हरंखुरी भी कहा जाता है, इसका वैज्ञानिक नाम जैन्थियम स्ट्रूमेरियम है। इस पौधे के उगने का खास समय नहीं होता है, ये साल भर उगता है और नदियों के किनारे और घास के मैदानों में ज्यादा पाया जाता है। हालांकि, उसका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि पौधे के बीज और कुछ हिस्से जहरीले होते हैं।संखाहुली में फेनोलिक एसिड, एंटीऑक्सिडेंट, एनाल्जेसिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो कई बीमारियों को कम करने में मदद करते हैं। अगर बालों के झगड़ने की समस्या हो रही है तो ये पौधा बहुत अच्छे परिणाम देता है। ये स्कैल्प में रक्त के संचार को बढ़ाता है और बालों को मजबूती भी देता है, जिससे बाल कम टूटते हैं और नए बाल आते हैं। इसे पौधे का लेप बनाकर सीधा बालों में लगाया जा सकता है या नारियल के तेल में संखाहुली मिलाकर उबालकर बालों की मसाज की जा सकती है।संखाहुली में कोलेजन बहुत ज्यादा मात्रा में होता है और स्किन और नाखूनों के लिए फायदेमंद होता है। ये स्किन को जवान दिखाता है और झुर्रियों को कम करता है। इतना ही नहीं, अगर स्किन पर काले धब्बे हैं तो भी इसका लेप लगाया जा सकता है। बाजार में संखाहुली का पाउडर और दवा मौजूद होती है, लेकिन इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। गठिया और हड्डियों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए भी संखाहुली बहुत फायदेमंद है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो हड्डियों को मजबूती देते हैं और जोड़ों के दर्द में आराम भी देते हैं। इसके लिए संखाहुली को काढ़े के रूप में ले सकते हैं। यह शरीर में होने वाले दर्द से भी राहत देता है।

Health:सर्दीं के मौसम में लहसुन का सेवन सेहत के लिए है रामबाण, औषधीय गुणों से भरपूर, हृदय रोगों का खतरा भी होता है कम
लहसुन सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि यह आयुर्वेदिक दृष्टि से एक बहुमूल्य औषधि है। लहसुन में पाए जाने वाले गंधक, एलिसिन, विटामिन बी6, मैग्नीशियम और सेलेनियम जैसे तत्व इसे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी बनाते हैं। आयुर्वेद में इसका गुण कड़वा और तीखा माना गया है, इसकी तासीर गर्म है और यह वात और कफ दोष को शांत करता है। लहसुन हल्का, तीक्ष्ण और पचने में आसान होता है, इसलिए यह शरीर में कई प्रकार के लाभ देता है।लहसुन के नियमित सेवन से हृदय रोगों का खतरा कम होता है। यह धमनियों में जमी अवरोधों को साफ करता है और कोलेस्ट्रॉल तथा ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है। इसके अलावा, यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है, पेट की अग्नि को तेज करता है और कब्ज, गैस या अपच जैसी समस्याओं में राहत देता है। लहसुन शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति को भी मजबूत करता है, जिससे सर्दी, खांसी और संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।आयुर्वेद की मानें तो लहसुन जोड़ों के दर्द, गठिया और अर्थराइटिस में लाभकारी है। इसके सेवन से वात और कफ से संबंधित समस्याएं कम होती हैं। त्वचा पर होने वाले संक्रमण, फोड़े-फुंसी और अन्य रोगों में भी लहसुन का लेप उपयोगी माना जाता है। कुछ घरेलू नुस्खों में लहसुन के तेल की मालिश कान दर्द और मांसपेशियों की सूजन में राहत देती है। लहसुन और शहद का मिश्रण प्रतिरक्षा बढ़ाता है और लहसुन का काढ़ा सर्दी और खांसी में लाभकारी है।खाली पेट 1-2 कच्ची कलियां खाना, लहसुन को तेल या शहद के साथ लेना या इसका काढ़ा बनाकर पीना काफी फायदेमंद होता है। नियमित और संतुलित आयुर्वेदिक पद्धति से इसका सेवन जीवन को स्वस्थ, ऊर्जावान और रोगमुक्त बनाता है। हालांकि, अत्यधिक गर्म तासीर के कारण अधिक सेवन से पेट में जलन या पसीना आ सकता है। गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर की सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए।

स्किन और बालों के लिए लाभकारी है गंधक:सेवन की विधि जानना है जरूरी, श्वास रोगियों के लिए भी है रामबाण
नई दिल्ली। कुछ खनिज या रासायनिक तत्व ऐसे होते हैं, जिनका इस्तेमाल खेतों से लेकर पटाखों तक में किया जाता है, लेकिन वही रसायन औषधि के रूप में भी काम करते हैं और कई रोगों से निजात दिलाने में मदद करते हैं। हम बात कर रहे हैं गंधक की। गंधक का नाम सभी ने सुना होगा, क्योंकि दादी और मां गंधक का प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए करती हैं, लेकिन इसका प्रयोग आयुर्वेद में औषधि के तौर पर किया जाता है।गंधक एक रसायन है और इसका वैज्ञानिक प्रतीक एस है और इसे बाजार में सल्फर के नाम से भी जाना जाता है। यह दिखने में पीले रंग का होता है और उसकी गंध असहनीय होती है, लेकिन आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल त्वचा संबंधी रोग, यौवन को बनाए रखने और रोग-प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। इसका स्वाद तीखा और कसैला होता है और तासीर गर्म होती है। अगर शरीर में वात और कफ का असंतुलन है, तो गंधक इन्हें बैलेंस करता है।गंधक का सेवन करने से पहले इसे शुद्ध गंधक में परिवर्तित करना पड़ता है, जिससे इसे खाने लायक बनाया जा सके। अगर आप इसे नहीं करना चाहते हैं, तो बाजार में शुद्ध गंधक गोलियों और भस्म के रूप में मिल जाएगी। शुद्ध गंधक बनाने के लिए लोहे की कहाड़ी में गंधक को गर्म करें और जब वह पिघलने लगे तो उसमें नींबू रस मिला दें। इस प्रक्रिया को तीन बार करें और गंधक को सुखाकर उसका चूर्ण बना लें।गंधक चूर्ण कई बीमारियों में इस्तेमाल किया जाता है। अगर फोड़े-फुंसी, मुंहासे, खुजली या स्किन से जुड़ा कोई इंफेक्शन है तो गंधक चूर्ण लिया जा सकता है। इसके अलावा, अगर पाचन शक्ति कमजोर है और संक्रमण रोग जल्दी घेर लेते हैं तो इसका सेवन किया जा सकता है। ये शरीर की ऊर्जा शक्ति को बढ़ाने और थकान को कम करने में मदद करेगा, साथ ही शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को भी बाहर निकालेगा।गंधक चूर्ण का इस्तेमाल श्वसन रोगों में किया जाता रहा है। अस्थमा, खांसी, सर्दी-जुकाम और फेफड़ों को शुद्ध करने में गंधक का चूर्ण सबसे ज्यादा लाभकारी है। अगर आप बालों से जुड़ी समस्या से परेशान हैं, तो गंधक चूर्ण का सेवन इसे कम करने में मदद करेगा। ये बालों को झड़ने से रोकता है और उन्हें काला बनाए रखने में भी मदद करता है। गंधक चूर्ण का सेवन 1 से 3 ग्राम के बीच ही करें और ये खाना खाने से पहले सुबह या शाम के समय लिया जा सकता है। बच्चों को गंधक चूर्ण के सेवन से दूर रखें। बाकी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करें।


