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हरि-हर मिलन का दिन वैकुंठ चतुर्दशी : मणिकर्णिका स्नान से होगी मोक्ष की प्राप्ति, प्राचीनकाल से जुड़ा है घाट का महत्व

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Author : admin

पब्लिश्ड : 03-11-2025 03:36 PM

अपडेटेड : 03-11-2025 10:06 AM

नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को इस साल 4 नवंबर, मंगलवार को वैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाएगा। यह दिन सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे हरि और हर का मिलन कहा जाता है, यानी भगवान विष्णु और भगवान शिव का मिलन।

वैकुंठ चतुर्दशी के दिन काशी में मणिकर्णिका घाट पर विशेष आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं। यह दिन धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु स्वयं काशी आए और मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके भगवान शिव की विधिवत पूजा की। भगवान शिव ने उनकी भक्ति देखकर आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन इस पवित्र घाट पर स्नान करेगा, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होगी। यही कारण है कि इस दिन मणिकर्णिका स्नान को विशेष महत्व प्राप्त है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति को केवल आध्यात्मिक लाभ ही नहीं मिलता, बल्कि उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी आती है।

मणिकर्णिका घाट का महत्व प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह घाट केवल स्नान स्थल नहीं है बल्कि मोक्षदायिनी घाट और महाश्मशान के रूप में भी जाना जाता है। यहां अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अत्यंत पवित्र मानी जाती है और यहां की चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव मृतक के कान में पवित्र तारक मंत्र का उच्चारण करते हैं, जिससे मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि यहां स्नान करने और पूजा-अर्चना करने से जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को सांसारिक सुख का अनुभव भी होता है।

इस पावन दिन की पूजा विधि भी विशेष होती है। भगवान विष्णु की पूजा निशीतकाल यानी मध्य रात्रि में की जाती है, जबकि भगवान शिव की पूजा अरुणोदय काल यानी प्रातःकाल में की जाती है। श्रद्धालु अरुणोदय काल में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते हैं, जिसे मणिकर्णिका स्नान कहा जाता है।

पुराणों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने सबसे पहले इसी घाट पर स्नान किया और भक्तिपूर्वक भगवान शिव को एक हजार कमल के फूल अर्पित किए। जब एक फूल गायब हो गया, तो उनकी भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त इस घाट पर स्नान और पूजा करेगा, उसे सभी प्रकार के सुख और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

इसके अलावा, इस दिन दीपदान का भी विशेष महत्व है। कई श्रद्धालु 365 बाती वाला दीपक जलाते हैं, जिससे माना जाता है कि साल भर की पूजा का फल एक साथ प्राप्त होता है। काशी में बाबा विश्वनाथ का पंचोपचार विधि से पूजन और महाआरती भी इसी दिन होती है। तुलसी दल से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा करने की परंपरा है, जो जीवन में सकारात्मक विचार, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में शांति बनाए रखने के लिए लाभकारी मानी जाती है।

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