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गणेश चतुर्थी : विघ्नहर्ता के पूजा की अलख जगी थी विंध्य से, सतना के परसमनिया के जंगलों में बसा भुमरा गांव दे रहा गवाही
सतना। आज यानि बुधवार से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है, जिसकी धूम आगामी 10 दिनों तक देखने को मिलेगी। सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन गणेश जी का जन्म हुआ था। ऐसे इस त्योहार को मंगलमूर्ति के भक्त बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। बप्पा की प्रतिमा स्थापना के लिए भक्त शहर-गली और मोहल्लों में पंडालों साज-सज्जा में जुटे हुए हैं, लेकिन भक्तों को यह पता नहीं होगा की गणपति पूजा की जड़ें विंध्य से जुड़ी है।
इतिहास के झरोखे से देखें तो, जब देश के अन्य हिस्सों में गणेश पूजा का प्रभाव सीमित था, तब विंध्य में उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति का स्वरूप आकार लेने लगा था। बेशक यह सोध का विषय हो लेकिन अमेरिका के बॉस्टन व कोलकाता के राष्टीय संग्रहालय में मौजूद सतना जिले की प्रतिमाएं बताती हैं कि पांचवीं सदी से ही गणपति पूजा यहां आकार लेने लगी थी।
भुमराः गणपति की प्राचीन विरासत
सतना के परसमनिया के जंगलों में बसा भुमरा इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यहां मिली डेढ़ हजार साल पुरानी गणेश प्रतिमा कोलकाता के राष्टकृीय संग्रहालय में आज भी अपनी दिव्यता से हर किसी को आकर्षित करती है। पत्थर पर उकेरी गई यह प्रतिमा गणेशजी को राजसी मुद्रा में दिखाती है। मुकुट और आभूषणों से सजे एकदंत गणपति यहां विराजमान हैं। समय ने भले ही प्रतिमा के कुछ हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर दिया हो, लेकिन उनकी आभा और भव्यता आज भी अक्षुण्य है। यह सिर्फ मूर्ति नहीं, बल्कि विंध्य क्षेत्र के सतना जिले में गणपति पूजा की प्राचीन परंपरा का सजीव साक्ष्य है।
प्राचीनतम विनायक-विनायकी प्रतिमा
सतना केवल गणपति पूजा के इतिहास का ही नहीं, बल्कि विनायक और उनकी मां शक्ति के अटूट प्रेम का साक्षी भी रहा है। रॉबर्ट एल. ब्राउन की पुस्तक ‘गणेशरू स्टडीज आॅफ ऐन एशियन गॉड’ के अनुसार, सतना से प्राप्त वृषभा-बाल गणेश की प्रतिमा हर मायने में अद्भुत है, क्योंकि यह ऐसी प्राचीनतम प्रतिमा है, जिसमें बाल गणेश अपनी माता देवी पार्वती (देवी वृषभा के रूप में) के साथ हैं। इसी पुस्तक के अनुसार, यूएसए के बॉस्टन में स्थित म्यूजियम और फाइन आर्ट्स में रखी विनायक की प्रतिमा दुनिया में ऐसी सबसे पुरानी प्रतिमा है, जिसमें गणेश की गोद पर एक देवी (विनयकी) विराजी हुई हैं और उनके दाहिने हाथ में बताशे या मोदक से भरा कटोरा है। यह प्रतिमा साल 1920 में भुमरा से निकालकर अमेरिका भेज दी गई थी।
प्राचीन विष्णु मंदिररू जहां आज भी पूजे जाते हैं गणपति
इतना ही नहीं, उंचेहरा तहसील में परसमनिया पठार के देवगुणा में स्थित 10 शताब्दी में बनाए गए प्राचीन विष्णु मंदिर में विराजे श्रीगणेश पिछले सहस्त्र वर्ष से लोगों के बीच भक्ति का स्रोत बने हुए हैं। यह मंदिर आज भी स्थानीय लोगों के बीच आस्था का केंद्र है, जहां गणपति श्रीविष्णु और भोलेनाथ के साथ लोगों के विघ्न दूर करते हैं। इस गणेश चतुर्थी, जब आप बप्पा का स्वागत करें, तो याद रखिए-विंध्य की वादियों ने सदियों पहले इस सुंदर परंपरा को जन्म दिया था। गणपति पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी गौरवशाली विरासत और एकता का उत्सव है।
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