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भोपाल। घपले-घोटालों को लेकर चर्चा में आये राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) की शैक्षणिक व्यवस्थाएं चरमरा गई है। आर्थिक भ्रष्टाचार व अनियमित्ताएं इसके पीछे मुख्यरूप से जिम्मेदार ठहराई जा रही है। जिससे विश्वसनीयता ही नही, छात्रों की शैक्षिक साख भी दांव में लग गई है।
जबकि इसकी स्थापना राज्य में उच्च गुणवत्ता के साथ कम बजट में प्रदेश के विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करना था। जिससे कुशल विद्वान और पेशेवर तैयार किये जा सकें। बावजूद इसके शैक्षणिक अमले की कमी के बीच अयोग्य व विवादित प्राध्यापकों की संदिग्ध नियुक्ति के चलते जहां नियमिति कक्षाओं में कमी आई है। आलम यह है कि यहां 40 से अधिक पीएचडी प्राध्यापक भी नहीं है। वहीं आवश्यक संसाधनों के अभाव में छात्रों का मोह भी इससे भंग हुआ है। बताया जाता है कि यहां की शैक्षणिक व कार्यालयीन अव्यवस्था का नुकसार विवि से संबद्ध दूसरे तकनीकि महाविद्यालयों को भी उठाना पड़ रहा है।
आरटीआई जबाव की तैयारी में चला जाता है आधा समय
जानकारी के मुताबिक विवि में पदस्थ अधिकांश अमले का काम आरटीआई की जानकारी बनाने और देने में चला जाता है। इससे शैक्षणिक अमला जहां कक्षाओं में पहुंचकर विद्यार्थियों को समय भी नहीं दे पाता है। कारण यह भी है कि अमले की कमी के कारण अधिकांश प्रो. संकायों के प्रमुख हैं और शैक्षणिक गतिविधियों के संचालन के बजाय वह कागजी कवायदों पर अधिक ध्यान रखते हैं।
नैक ग्रेडिंग के लिये लिया झूठ का सहारा
शैक्षणिक व्यवस्थाओं के मामले में विवि प्रशासन का झूठ नैक ग्रेडिग के मामले में सामने आ चुका है। जिसमें उसने झूठ का सहारा लिया है। शिक्षण और स्मार्ट क्लासरूम की सुविधा के दावे का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि तीन हजार विद्यार्थियों के लिए छह स्मार्ट क्लासरूम हैं, वे भी पूरी तरह कार्यशील नहीं हैं। इसी तरह स्थापित नालेज रिसोर्स सेंटर में विद्यार्थी और शिक्षक कभी गए ही नहीं।
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