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लेबर कोड्स : नए श्रम कानून मजदूरों के अधिकारों पर सुनियोजित हमला, कांग्रेस ने की कानूनों को वापस लेने की मांग

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Author : admin

Published : 26-Nov-2025 12:20 AM

भोपाल। मप्र कांग्रेस ने केंद्र सरकार द्वारा 22 नवंबर 2025 से लागू किए गए नए श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) की निंदा करते हुए वापस लेने की मांग की है। कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने कहा कि ये चार नए कोड—जिनमें 29 पुराने श्रम कानूनों को समाहित किया गया है—कथित रूप से 'ईज आॅफ डूइंग बिजनेसझ् के नाम पर मजदूरों के दशकों के संघर्ष से अर्जित अधिकारों पर सीधी चोट हैं। ये संहिताएं न केवल मजदूरों को असुरक्षा, अस्थिरता और शोषण के नए युग में धकेल रही हैं, बल्कि भारतीय संविधान की मूल भावना—समानता, न्याय और गरिमा—के भी विरुद्ध हैं। कांग्रेस पार्टी मजदूर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए सदैव प्रतिबद्ध है और इन कोड्स को तत्काल वापस लेने की मांग करती है।

नायक ने कहा कि औद्योगिक संबंध संहिता 2020, व्यवसायिक संरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संबंधी संहिता 2020 एवं सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 कानून बन चुके हैं। गौरतलब है कि वेतन संहिता 2019 पहले ही कानून बन चुकी है। श्रम मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2021 से इन चारों श्रम संहिताओं को लागू करने की घोषणा की गई है। इनके लागू होने के साथ 29 केंद्रीय श्रम कानूनों का स्वतंत्र अस्तित्व स्वत: समाप्त हो जाएगा। ये संहिताएं मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करती हैं।

12 घंटे का हो सकता है कार्यदिवस

उन्होंने कहा कि वेतन संहिता की धारा-13 में कहा गया है कि न्यूनतम वेतन तय हो जाने के उपरांत संबंधित सरकार काम के घंटे निर्धारित कर सकती है, जो कि सामान्य कार्य दिवस माना जाएगा। अर्थात सरकार चाहे तो मजदूर का सामान्य कार्य दिवस 10 घंटे, 12 घंटे अथवा कुछ भी हो सकता है। जबकि व्यवसायिक संरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संबंधी संहिता की धारा-25 के अनुसार मजदूर का कार्यदिवस 8 घंटे से अधिक नहीं हो सकता। ट्रेड यूनियनों का आधार और अधिक सीमित हो जाएगा। औद्योगिक संबंध संहिता में मजदूरों के ट्रेड यूनियन अधिकारों पर सीधे-सीधे भारी हमला बोला गया है। नई यूनियनों खासकर 300 से कम मजदूरों वाली फैक्टरियों में यूनियनों को पंजीकृत कराना लगभग असंभव बना दिया गया है। संहिता में वैध-कानूनी हड़तालों के सभी रास्ते मजदूरों के लिए बंद कर दिए गए हैं। संहिता की धारा 62 (1) के तहत अब सभी संस्थानों में हड़ताल पर जाने से पूर्व नोटिस देना अनिवार्य बना दिया गया है।

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