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पड़ोसी मुल्क में अशांति : क्या अमेरिका के इशारे पर ISI ने भड़काई नेपाल में हिंसा, बांग्लादेश पैटर्न से बढ़ी आशंका
गणेश साकल्ले, भोपाल
दक्षिण एशिया के छोटे-छोटे देशों पर दुश्मनों की वक्रदृष्टि लगी हुई है। अगर हम नेपाल की हिंसा को देखे तो यहां पर भी वैसा ही हो रहा है, जैसा बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त में हुआ था। असंतोष की इस आग में श्रीलंका, म्यांमार पहले ही झुलस चुके हैं। पाकिस्तान पहले ही बदहाली का शिकार है। ऐसे में अमेरिका और चीन सबको आंख दिखा रहे हैं। भारत की बढती ताकत और उभरती अर्थव्यवस्था विकसित देशों को खल रही है। क्या एशिया के इन दो देशों को घेरने की साजिश के तहत ही पहले बांग्लादेश और फिर नेपाल में हिंसा भड़की? इस हिंसक प्रदर्शन को हवा किसने दी? चिंगारी कहां से फैली इन सारे सवालों के जवाब नेपाल का हर नागरिक जानना चाह रहा है।
नेपाल में इस हिंसक प्रदर्शन को जेन-जेड क्रांति का नाम दिया गया है। लेकिन ये किसी के गले नहीं उतर रहा है, क्योंकि मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहने वाली युवा पीढ़ी स्वतः स्फूर्त इतना बड़ा कदम उठाएगी, इसमें संदेह है। हर क्रांति लंबे शोषण, उत्पीड़न अथवा अत्यधिक ज्यादती के बाद ही उभरती है। बांग्लादेश और नेपाल के मौजूदा हालात ऐसे नहीं नजर आते कि नई पीढ़ी खुद हथियार उठा ले। तख्तापलट कर दे, किसी अन्य को सत्ता में बैठाए। इतनी व्यापक सोच के साथ संघर्ष का आगाज स्वस्फूर्त होना असंभव सा लगता है। अगर वह तख्ता पलट ही करना चाहती तो कुछ और करती। हिंसक आंदोलन-प्रदर्शन भी करती, लेकिन उसके हाथों में हथियार थमाए किसने। यह सवाल ग्लोबल पाॅलिटिक्स में गूंज रहा है।
यह शीशे की तरह है साफ
जिओ पाॅलिटिक्स की दृष्टि से नेपाल हो या बांग्लादेश, म्यांमार हो या श्रीलंका। इन मुक्लों पर अमेरिका और चीन की हमेशा से नजर रही है। वे इन देशों में अपनी पसंदीदा सरकार चाहते हैं, तो कोई वहां पर अपना एयरबेस या सैन्य ठिकाना रखना चाहता है। नेपाल की केपी शर्मा ओली सरकार तो चीन के इशारों पर ही चल रही थी। इसलिए एक बात तो शीशे की तरह साफ हो गई है कि ड्रैगन वहां पर हिंसा नहीं भड़काएंगा। क्योंकि बगैर कुछ करे उसके मन मुताबिक फैसले हो रहे थे। फिर हिंसा की आग में नेपाल को चीन क्यों झोंकेगा?
भारत-चीन और रूस का गठबंधन देख बौखलाया अमेरिका
एससीओ बैठक में भारत-चीन और रूस का गठबंधन देख अमेरिका बौखला गया है। इसके बाद ही ट्रम्प के सुर भी बदले और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से दोस्ती का दावा भी किया गया। रूस से कच्चा तेल भारत अर्से से खरीद रहा है। इसे मुद्दा बनाकर भारत पर भारी टैरिफ लगाने से अमेरिका का बहुत बडा वर्ग ट्रम्प के इस फैसले के खिलाफ है। एशिया की दो महाशक्तियों के रूस के करीब जाने से अमेरिका का बौखलाना लाजिमी है। ऐसे में इस आशंका को बल मिलता है कि हो न हो नेपाल की हिंसा में भी परोक्ष रूप से अमेरिका और पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ हो। इसी गठजोड़ ने जिस तरीके से बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट किया था। कमोबेश उसी तरीके से नेपाल में जेन-जेड क्रांति का आगाज हुआ है। दुबई-बांग्लादेश की तरह नेपाल में भी आईएसआई की खासी मौजूदगी गाहे-बगाहे देखी गई है। इसलिए यह शंका बलवती होती है कि अमेरिका के इशारे पर ही आईएसआई ने नेपाल को हिंसा की आग में झोंक दिया।
इन घटनाओं से मिल रहा अशंका को बल
मजेदार तथ्य तो यह है कि एक तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ एससीओं की बैठक में भाग लेने चीन जाते हैं तो दूसरी तरफ पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर ट्रम्प की डिनर डिप्लोमेसी में शरीक होते हैं। गौरतलब है कि असीम मुनीर पाक सेना प्रमुख बनने के पहले आईएसआई चीफ रह चुके हैं। इन सारे घटनाक्रमों से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि दक्षिण एशिया के एक शांति प्रिय नेपाल जैसे देश में हिंसा की आग आखिर कौन किसके इसारे पर भड़का सकता है। इस हिंसा से किसको फायदा होगा और किसको नुकसान होगा। यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
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