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नेपाल में नई सरकार बनाने की कवायद तेज : ओली सरकार को हिलाने वाले चार चेहरे रेस में, सशीला कार्की का नाम सबसे आगे

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Author : admin

पब्लिश्ड : 11-09-2025 12:31 PM

अपडेटेड : 11-09-2025 07:01 AM

काठमांडू। नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ शुरू हुए युवाओं के आंदोलन ने देश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। राजधानी काठमांडू से लेकर कई शहरों में हुए हिंसक प्रदर्शन में जहां 30 लोगों को अपनी जांन गंवानी पडी और 300 से अधिक घायल हुए हैं। वहीं प्रदर्शनकारियों संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थानों को आग के हवाले कर दिया।

हालात इतने बिगड़े कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कई मंत्रियों को देश छोड़ना पड़ा। हालांकि, अब हालात काबू में लाने के लिए सेना सड़कों पर उतरी है और शांति बहाल करने की कोशिशें तेज कर दी गई हैं। इस उथल-पुथल में चार चेहरों की भूमिका सबसे अहम मानी जा रही है। इनमें सुदन गुरुंग, बालेंद्र (बालेन) शाह, रबि लमिछाने और सुशीला कार्की का नाम शामिल है।

हालांकि इस उथल-पुथल के बीच अब नई सरकार बनाने की कवायद तेज हो गई है। सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि रेस में कई और नेता शामिल है। इसमे सुदन गुरुंग का भी नाम है। इवेंट मैनेजमेंट और नाइट लाइफ इंडस्ट्री छोड़कर सामाजिक कार्यों में जुटे सुदन ने 2015 के भूकंप के दौरान ‘हमि नेपाल’ एनजीओ की स्थापना की थी। कोविड महामारी में राहत कार्यों से भी वे चर्चा में रहे।

दूसरा प्रमुख चेहरा काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह हैं। सिविल इंजीनियर और रैप आर्टिस्ट से नेता बने बालेंद्र शाह 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मेयर चुने गए और युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। 2023 में टाइम मैगजीन ने उन्हें टॉप 100 उभरते नेताओं में शामिल किया।

शाह सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहते हैं और इसीलिए युवा पीढ़ी उनसे गहरे तौर पर जुड़ी हुई है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए जेन-जी आंदोलन को खुला समर्थन दिया और राजनीतिक दलों से अपील की कि वे इस आंदोलन का राजनीतिक फायदा न उठाएं। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सख्त छवि और ओली सरकार से टकराव ने उन्हें युवाओं की उम्मीद के तौर पर स्थापित कर दिया। तीसरे बड़े चेहरे में रबि लमिछाने का नाम शामिल है। पत्रकार और टीवी एंकर के रूप में लोकप्रियता हासिल करने के बाद उन्होंने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी बनाई और चुनावों में 20 सीटें जीतीं। वे गृह मंत्री भी बने, लेकिन सहकारी फंड घोटाले में फंसकर जेल गए।

इसके बावजूद उनकी पार्टी ने खुलकर युवाओं के आंदोलन का समर्थन किया और सांसदों ने एक साथ इस्तीफा देकर सरकार पर दबाव बनाया। आंदोलन की ताकत इतनी बढ़ी कि युवाओं ने उन्हें जेल से छुड़ाने में भी भूमिका निभाई। वहीं, इस आंदोलन को मजबूत आवाज देने में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम भी शामिल है। 1952 में जन्मी कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले दिए।

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