Latest News

नई दिल्ली। अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रही बहस और चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने एक बार फिर अपना रुख स्पष्ट किया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था। इसी वजह से कई सामाजिक संगठनों और नागरिकों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।
मौजूदा याचिका भी उसी दौर की देन है। सरकार का कहना है कि अब सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद हालात पूरी तरह बदल गए हैं और खनन को केवल सतत, वैज्ञानिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से ही आगे बढ़ाया जाएगा, ताकि अरावली को बचाया जा सके। अरावली को लेकर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही तुलना पर भी सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। नर्मदा परियोजना को लेकर गुजरात में कभी जिस तरह के आरोप लगाए गए थे, वैसी ही स्थिति बताने को केंद्रीय मंत्री ने सिरे से खारिज कर दिया है।
यह कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक झूठ
केंद्रीय मंत्री का कहना है कि यह कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक और झूठ है, जिसे अब जनता समझ चुकी है। कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के समय विदेशी एजेंसियों और एनजीओ की भूमिका को लेकर उठे सवालों की तरह अरावली के मामले में भी भ्रम फैलाने की कोशिशों का आरोप लगाया गया है। केंद्रीय मंत्री का दावा है कि अरावली को लेकर कुछ राजनीतिक विरोधी जानबूझकर गलतफहमी पैदा कर रहे हैं, लेकिन यह प्रयास पूरी तरह नाकाम हो चुका है। सरकार पारदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के साथ अरावली संरक्षण के लिए काम कर रही है।
कोर्ट ने अरावली में किसी तरह की नहीं दी छूट
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर भी स्थिति पूरी तरह साफ कर दी गई है। केंद्रीय मंत्री के अनुसार, कोर्ट ने अरावली में किसी तरह की छूट नहीं दी है। बल्कि पर्यावरण मंत्रालय के श्ग्रीन अरावली प्रोजेक्ट को मान्यता दी गई है और आईसीएफआरआई को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि जब तक पूरी वैज्ञानिक योजना तैयार नहीं हो जाती, तब तक कोई नया खनन नहीं होगा।
इस योजना के तहत अरावली पहाड़ियों और पूरे क्षेत्र की पहचान, उनकी इको-सेंसिटिविटी तय की जाएगी और उसके बाद ही आगे का फैसला लिया जाएगा। भूपेंद्र यादव का कहना है कि इन कदमों का मकसद अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगाना और भविष्य में केवल सतत खनन को ही अनुमति देना है।
Advertisement
