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नई दिल्ली। राष्ट्रीय जल पुरस्कारों को लेकर सोशल मीडिया पर फैल रहे एक दावे को पीआईबी फैक्ट चेक ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में यह आरोप लगाया जा रहा था कि एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से बनाई गई तस्वीरों, फर्जी निमंत्रण कार्ड्स और छोटे-छोटे गड्ढों को बड़े जलाशयों के रूप में दिखाकर राष्ट्रीय जल पुरस्कार हासिल किए गए हैं।
इस दावे को प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट चेक इकाई ने पूरी तरह फर्जी बताया है। पीआईबी फैक्ट चेक ने स्पष्ट किया है कि जल संचय-जन भागीदारी पुरस्कारों का मूल्यांकन बेहद पारदर्शी और सख्त प्रक्रिया के तहत किया जाता है। इन पुरस्कारों के लिए किसी भी तरह की एआई से बनाई गई तस्वीरों या भ्रामक सामग्री के आधार पर निर्णय नहीं लिया जाता।
पीआईबी के अनुसार, पुरस्कारों का पूरा मूल्यांकन केवल जेएसजेबी डैशबोर्ड पर उपलब्ध प्रविष्टियों के आधार पर ही किया जाता है। यह डैशबोर्ड हर जल संरचना को जीआईएस निर्देशांक, जियो-टैग की गई तस्वीरों और संबंधित वित्तीय विवरणों के जरिए ट्रैक करता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि दिखाई जा रही संरचनाएं वास्तविक हैं और जमीनी स्तर पर मौजूद हैं।
इसके अलावा, जिलों द्वारा भेजी गई सभी प्रविष्टियों की पहले जिला अधिकारियों द्वारा जांच की जाती है और फिर मंत्रालय स्तर पर उनकी बहुस्तरीय समीक्षा होती है। गुणवत्ता और प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए कम से कम एक प्रतिशत कार्यों का स्वतंत्र रूप से भौतिक सत्यापन भी किया जाता है। यानी अधिकारी खुद मौके पर जाकर यह जांचते हैं कि दावा किया गया काम वास्तव में हुआ है या नहीं।
पीआबी ने यह भी साफ किया है कि कैच द रेन (सीटीआर) पोर्टल एक पूरी तरह अलग प्लेटफॉर्म है। इस पोर्टल पर अपलोड की गई तस्वीरों या जानकारियों को राष्ट्रीय जल पुरस्कारों के लिए किसी भी तरह से विचार में नहीं लिया जाता। सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा यह भ्रम कि सीटीआर पोर्टल की तस्वीरों से पुरस्कार मिले हैं, पूरी तरह गलत है।
पीआईबी फैक्ट चेक ने लोगों से अपील की है कि वे केंद्र सरकार से जुड़ी किसी भी जानकारी के लिए केवल आधिकारिक और विश्वसनीय स्रोतों पर ही भरोसा करें। सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले अप्रमाणित दावों से सावधान रहें और बिना जांचे-परखे उन्हें आगे न बढ़ाएं।
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