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मप्र के ऊपर 4.65 लाख करोड़ का कर्ज : वित्त मंत्री ने बताई उपलब्धि, नहीं दिया दो साल के ऋण का आंकड़ा

वित्त मंत्री ने बताई उपलब्धि, नहीं दिया दो साल के ऋण का आंकड़ा
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admin

Dec 22, 202512:09 PM

भोपाल। डॉ. मोहन यादव सरकार के कार्यकाल के 2 साल पूरा होने पर विभागीय मंत्री आए दिन अपने-अपने विभाग की उपलब्धियां गिना रहे हैं। इसमें वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा भी शामिल हैं। उन्होंने भी वित्त विभाग की उपलब्धियां गिनाईं, जिसमें उन्होंने हर महीने लिए जा रहे हजारों करोड़ के कर्ज को भी सरकार की एक उपलब्धि बताया। हालांकि उन्होंने 2 साल में लिए गए कुल कर्ज का आंकड़ा नहीं दिया।

वित्त विभाग के आंकड़ों के अनुसार मौजूदा स्थिति में मप्र के ऊपर कुल कर्जा 4.65 लाख करोड़ है, जो वित्त वर्ष 2025-26 के कुल बजट 4.21 लाख करोड़ से 34 हजार करोड़ ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष में ही सरकार ने करीब 49 हजार 600 करोड़ रुपए का कर्जा उठाया है। यानी मौजूदा सरकार को जरूरतें पूरा करने के लिए औसतन 125 करोड़ रुपए का कर्जा रोजाना लेना पड़ रहा है।

वित्त विभाग बोला- राज्य की प्रगति के लिए कर्ज जरूरी

वित्त विभाग का कहना है कि सरकार पूंजीगत व्यय (इंफ्रास्ट्रक्चर विकास) के लिए कर्ज लेती है। राज्य की प्रगति के लिए यह जरूरी है। हर बार कर्ज लेने से पहले सरकार अधिसूचना जारी करती है कि पंूजीगत व्यय के लिए कर्ज लिया जाएगा। यह बात अलग है कि वित्त विभाग ने अभी तक अपनी संपत्ति की कोई कीमत नहीं बताई है।

सरकारी एसेट्स का मूल्य राज्य की बकाया देनदारियों से कई गुना ज्यादा

सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि सरकारी एसेट्स का मूल्य राज्य की बकाया देनदारियों से कई गुना ज्यादा है। इसलिए मप्र सरकार को कर्ज लेने में किसी तरह की अड़चन नहीं है। 17 दिसंबर को मप्र विधानसभा के 70 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बुलाए गए विशेष सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि सरकार ने पिछले दो सालों में 14-15 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। मुख्यमंत्री ने राज्य पर बढ़ रहे कर्ज को लेकर कहा कि कर्ज की बड़ा हिस्सा पिछली सरकारों ने लिया था।

कर्ज लेकर यहां हो रहा निवेश

वित्त विभाग के अधिकारी ने बताया कि सभी तरह के कर्ज राज्य के विकास और भविष्य के लिए फायदेमंद एसेट्स बनाने के लिए गए हैं। जिसमें बांध, नहरों, भवन, कुआं, तालाब, सड़क आदि का निर्माण शामिल हैं। साथ ही तकनीक, संचार, यातायात, सहकारी बैंकों, अन्य को-ऑपरेटिव सोसाइटियों की शेयर कैपिटल में इन्वेस्टमेंट, तीसरे पक्ष की संस्थाओं आदि को कर्जा देने के लिए, जो किस्तों में ब्याज के साथ कर्ज चुकाएंगे और मप्र के ऊर्जा विभाग की बिजली उत्पादन, बिजली ट्रांसमिशन और बिजली वितरण कंपनियों को कर्जा देने के लिए लिए गए। यह एक तरह का निवेश है।

लाड़ली बहना योजना का बढ़ा बोझ

मौजूदा स्थिति में मप्र सरकार की बड़े वित्तीय भार वाली योजना लाडली बहना है। सरकार ने इस योजना के तहत मासिक भुगतान को 1250 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 1500 रुपए प्रति माह कर दिया है। पहले इस योजना में मासिक भुगतान के लिए 1540 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि की जरूरत थी, अब बढ़ाकर 1850 करोड़ खर्च हो रहे हैं। सरकार ने 2028 तक इस योजना के तहत मासिक भुगतान को 3 हजार रुपये प्रति माह तक ले जाने का वादा किया है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री लाडली बहनों (महिला लाभार्थियों) को 5000 रुपए प्रति माह देने की इच्छा भी जताई है, हालांकि इसके के लिए कोई समय सीमा घोषित नहीं की गई है।

राजस्व और व्यय में असंतुलन

मप्र सरकार द्वारा लगातार बढ़ते कर्ज को श्उपलब्ध्यि और श्निवेश्य के रूप में प्रस्तुत करना कई सवाल खड़े करता है। यह सच है कि पूंजीगत व्यय के लिए लिया गया कर्ज भविष्य की परिसंपत्तियां खड़ी करता है, लेकिन जब कुल कर्ज राज्य के कुल बजट से भी अधिक हो जाए, तो वित्तीय अनुशासन पर चिंता स्वाभाविक है। रोज औसतन 125 करोड़ का कर्ज लेना इस बात का संकेत है कि राजस्व और व्यय के बीच संतुलन कमजोर है। लाड़ली बहना जैसी लोक-कल्याणकारी योजनाएं सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, पर उनके दीर्घकालिक वित्तीय बोझ का स्पष्ट रोडमैप सामने नहीं है। सरकार के एसेट्स का मूल्य सार्वजनिक न करना भी पारदर्शिता की कमी दर्शाता है। कर्ज विकास का साधन हो सकता है, पर असीमित कर्ज भविष्य की पीढियों पर भारी बोझ बन सकता है।

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