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इंदौर। स्वच्छता, तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में अहिल्या नगरी इंदौर आए दिन नए कीर्तिमान गढ़ रहा है। अब इंदौर ने अंतरिक्ष मिशन में भागीदारी का भी इतिहास रचने की सफलता प्राप्त की है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी सफलता प्राप्त की है। संस्थान ने भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक अत्याधुनिक क्रायोजेनिक आॅप्टिकल फाइबर सेंसर विकसित किया है, जो अत्यंत निम्न-तापमान (-270 डिग्री सेल्सियस तक) वाले वातावरण में भी सटीक रूप से काम करने में सक्षम है।
इंदौर की यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि आईआईटी इंदौर द्वारा विकसित नव सेंसर कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसका उपयोग -180 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर एलएनजी पाइपलाइनों की निगरानी, रिसाव का पता लगाने, प्रक्षेपण यान के उपकरणों के तापीय स्वास्थ्य की निगरानी और अंतरिक्ष यान के क्रायोजेनिक ईंधन टैंकों में तापमान और द्रव स्तर को मापने के लिए किया जा सकेगा।
आॅप्टिकल फाइबर सेंसर होते हैं हल्के
एयरोस्पेस, ऊर्जा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में कई उन्नत प्रणालियों को हीलियम, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के क्वथनांक (बाइलिंग प्वाइंट) के करीब के तापमान पर काम करना पड़ता है। पारंपरिक सेंसर इतने ठंडे वातावरण में संघर्ष करते हैं। आॅप्टिकल फाइबर सेंसर हल्के होने और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हस्तक्षेप से मुक्त होने के कारण बेहतर होते हैं, लेकिन स्टैंडर्ड आॅप्टिकल फाइबर भी बहुत कम तापमान पर अपनी संवेदनशीलता (सेंसेटिविटी) खो देते हैं।
एसएमए कोटिंग का उपयोग किया
इस चुनौती से पार पाने के लिए, आईआईटी इंदौर की टीम ने आॅप्टिकल फाइबर पर 'शेप मेमोरी एलॉयझ् (एसएमए) कोटिंग का उपयोग किया। एसएमए में व्यापक तापमान सीमा में काम करने की अनूठी क्षमता होती है। यह कोटिंग फाइबर से गुजरने वाले आॅप्टिकल सिग्नल में होने वाले बदलावों को बढ़ा देती है, जिससे क्रायोजेनिक तापमान पर भी सेंसर की संवेदनशीलता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
तीन संयुक्त पेटेंट प्रक्रिया में
यह नवाचार मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की मेक्ट्रोनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन लैब द्वारा प्रोफेसर आई.ए. पलानी और शोधकर्ता डॉ. नंदिनी पात्रा के नेतृत्व में विकसित किया गया है। इस परियोजना को इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (एलपीएससी) के साथ रेस्पॉन्ड कार्यक्रम के तहत कार्यान्वित किया गया है। इस तकनीक के लिए वर्तमान में तीन संयुक्त पेटेंट प्रक्रिया में हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इंदौर आईआईटी द्वारा यह नवाचार भारत की रणनीतिक तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता को दशार्ता है। इसरो के साथ हमारा सहयोग सीधे राष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशनों का समर्थन कर सकता है और स्वदेशी एयरोस्पेस तकनीकों में योगदान दे सकता है।झ् शोध दल का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर पलानी ने कहा कि अंतरिक्ष यान के ईंधन टैंकों में अति-निम्न तापमान की निगरानी एक बड़ी चुनौती है और यह नया सेंसर इस समस्या का प्रभावी समाधान है।
- प्रो. सुहास जोशी, निदेशक, आईआईटी, इंदौर
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