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नई दिल्ली। राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के आज 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस खास मौके पर दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में स्मरणोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया जो पूरे एक साल तक चलेगा। इस भव्य कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया। इस राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव का उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा देने वाले गीत वंदे मातरम के महत्व को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया।
जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 7 नवंबर 2025 का दिन बहुत ऐतिहासिक है। आज हम वंदे मातरम के 150वें वर्ष का महाउत्सव मना रहे हैं। यह पुण्य अवसर हमें नई प्रेरणा देगा और कोटि-कोटि देशवासियों को नई ऊर्जा से भर देगा। इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज वंदे मातरम पर एक विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं।

पीएम ने कहा- वंदे मातरम् भारत की आजादी का उद्घोष था। यह हर दौर में प्रासंगिक है। 1937 में वंदे मातरम् का एक हिस्सा हटा दिया गया था। उसके टुकड़े कर दिए थे। वंदे मातरम् के विभाजन ने देश के विभाजन के बीज बोए थे। वह विभाजनकारी सोच आज भी देश के लिए चुनौती बनी हुई है।
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम् के मूल रूप में लिखा है कि भारत माता सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा हैं। जब दुश्मन ने आतंक के लिए जरिए भारत की सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया, तो पूरी दुनिया ने देखा, नया भारत आतंक के विनाश के लिए दुर्गा भी बनना जानता है।
पीएम ने महापुरुषों-मां भारती के संतानों को किया नमन
इस मौके पर पीएम मोदी ने देश के लाखों महापुरुषों और मां भारती की संतानों को ‘वंदे मातरम’ के लिए जीवन खपाने के लिए श्रद्धापूर्वक नमन किया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम, ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है और एक संकल्प है। वंदे मातरम, ये शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की आराधना है। वंदे मातरम, ये शब्द हमें इतिहास में ले जाता है, ये हमारे वर्तमान को नए आत्मविश्वास से भर देता है और हमारे भविष्य को ये नया हौसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे हम भारतवासी पा न सकें।
वंदे मातरम हर दौर में, हर काल में प्रासंगिक
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुलामी के उस कालखंड में वंदे मातरम इस संकल्प का उद्घोष बन गया था कि भारत की आजादी का, मां भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियां टूटेंगी। उसकी संतानें स्वयं अपने भाग्य की विधाता बनेंगी। वंदे मातरम आजादी के परवानों का तराना होने के साथ ही इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हमें इस आजादी की रक्षा कैसे करनी है। उन्होंने कहा कि इस गीत की रचना गुलामी के कालखंड में हुई, लेकिन इसके शब्द कभी भी गुलामी के साए में कैद नहीं रहे। वे गुलामी की स्मृतियों से सदा आजाद रहे। इसी कारण वंदे मातरम हर दौर में, हर काल में प्रासंगिक है। इसने अमरता को प्राप्त किया है।
पीएम मोदी ने किया बांकिमचंद्र को
बंकिमचंद्र को याद करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, 1875 में, जब बंकिम बाबू ने बंग दर्शन में वंदे मातरम प्रकाशित किया था, तब कुछ लोगों को लगा था कि यह तो बस एक गीत है। लेकिन देखते ही देखते ‘वंदे मातरम’ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर बन गया। एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की जुबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था।
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