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इंसान की संवेदना सबके लिए : रजत जयंती कार्यक्रम में बोले आरएसएस चीफ- सिर्फ कानून से नहीं चलता समाज

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Author : admin

पब्लिश्ड : 08-11-2025 12:18 PM

अपडेटेड : 08-11-2025 06:48 AM

बेंगलुरु। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को बेंगलुरु में हुए नेले फाउंडेशन के रजत जयंती समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि एक अच्छा काम 25-50 साल चलाना कठिन होता है, क्योंकि अच्छा काम करते हैं तो रास्ता हमेशा थकाने वाला और कठिन होता है, लेकिन इतने लंबे समय तक अच्छा काम करते रहना हम सबके लिए आनंद का विषय है।

मोहन भागवत ने कहा कि समाज केवल कानून से नहीं चलता है, बल्कि संवेदना से भी चलता है। एक अपनापन होता है। हम सभी को उस अपनेपन की संवेदना, उत्कृष्टता से अपने हृदय में अभिभूत करके उसे जागरूक रखने का काम करना चाहिए। तब हमारा समाज, भारतवर्ष, खड़ा होगा और हम विश्वगुरु बनेंगे। यह जो अपनापन है, वही हम सभी लोगों का मूल स्वरूप है। सभी लोगों में एक ही अस्तित्व है- उसी को हमारी परंपरा में ब्रह्म या ईश्वर कहते हैं जिसे आज विज्ञान भी मानता है।

इंसान के मन में होती संवेदना

मोहन भागवत ने कहा कि जब हम खाना खाने बैठते हैं और अगर कोई भूखा व्यक्ति हमारे पास आता है, ऐसे में हम या तो उसको खाना खिलाएंगे या फिर उसको भगा देंगे। अगर वो हमारे भगाने से नहीं जाता तो उसकी तरफ पीठ करके खाना खाएंगे, क्योंकि हम उसके सामने भोजन रखकर नहीं खा सकते। इसको संवेदना कहते हैं। इंसान के मन में संवेदना होती है। हालांकि, जानवरों में भी संवेदना होती है, लेकिन इंसान की संवेदना सबके लिए होती है।

इसलिए आत्महत्या नहीं करते जानवर

जानवरों की संवेदना केवल अपने तक होती है। उनको केवल खाना है और जीना है। जब तक जीना है, तब तक खाना है, इसलिए जानवर आत्महत्या नहीं करते। लेकिन, इंसान को दूसरे की संवेदना का अहसास होता है, जो दूसरे के दुख-तकलीफ को समझता है। इसे करुणा कहते हैं, मानव हृदय में एक भावना है।

पहले संवेदनाओं से चलता था समाज

उन्होंने कहा कि 50-60 साल पहले जो देहातों से शहर में पढ़ने जाते थे तो वो बताते थे कि मेरी ठहरने और खाने की व्यवस्था नहीं है। वो किसी के घर में रहते थे। पहले घरों में खाने का एक हिस्सा निकालकर रखा जाता था कि कोई आएगा तो उसको खिलाया जाएगा। पहले समाज संवेदनाओं से चलता था, लेकिन अब हम धीरे-धीरे जड़वादी चिंतन की जद में हो गए हैं।

पुनर्जीवित किया जाना चाहिए समाज के महत्व को

मोहन भागवत कहते हैं कि आज समाज की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि इन कार्यों को औपचारिक रूप से करना ही होगा। यह अच्छी बात है कि लोग ये कर रहे हैं। वे 25 वर्षों से ऐसा कर रहे हैं। ये सकारात्मक पहल है। हालांकि, इन कार्यों को करने वालों का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इसे देखकर लोगों में करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति जागरूकता विकसित होनी चाहिए। समाज के मूल्यों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। जो लोग यह कार्य कर रहे हैं, उनसे दूसरों को प्रेरणा मिलनी चाहिए और समाज को प्रगति करनी चाहिए।

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