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वीआई को बड़ी राहत : SC ने केंद्र को AGR बकाए पर दोबारा से विचार करने की अनुमति दी, 20 करोड़ ग्राहकों के हितों का रखा गया ध्यान

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Author : admin

पब्लिश्ड : 27-10-2025 02:08 PM

अपडेटेड : 27-10-2025 08:38 AM

नई दिल्ली। देश की बड़ी दूरसंचार कंपनियों में से एक वोडाफोन-आइडिया (वीआई) के लिए राहत भरी खबर है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को वीई पर 9,450 करोड़ रुपए के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) बकाए पर दोबारा से विचार करने की अनुमति दे दी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह निर्णय दूरसंचार कंपनी के 20 करोड़ ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश दिया। मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार ने दूरसंचार कंपनी में 49 प्रतिशततक इक्विटी निवेश किया है और यह निर्णय 20 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं की चिंताओं को देखते हुए लिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को 92,000 करोड़ वसूलने दी थी अनुमति

बता दें, 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की एजीआर की परिभाषा को सही ठहराया और केंद्र को 92,000 करोड़ रुपए का बकाया वसूलने की अनुमति दी थी, जो वोडाफोन और भारती एयरटेल जैसी प्रमुख दूरसंचार कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका था। वोडाफोन की नई याचिका में दूरसंचार विभाग द्वारा उठाई गई 9,450 करोड़ रुपए की नई एजीआर मांग का मुद्दा उठाया गया है। याचिका में तर्क दिया गया है कि मांग का एक बड़ा हिस्सा 2017 से पहले की अवधि का है, जिसका निपटारा सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है।

एसजी तुषार मेहता ने कपंनी का रखा पक्ष

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार द्वारा वोडाफोन में इक्विटी निवेश करने के कारण मामले की परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है। उन्होंने कहा, सरकार का हित जनहित है और 20 करोड़ उपभोक्ता हैं। अगर इस कंपनी को नुकसान होता है, तो इससे उपभोक्ताओं के लिए समस्याएं पैदा होंगी।

यह भी बोला सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र इस मुद्दे की जांच करने को तैयार है।शीर्ष अदालत ने कहा, अगर अदालत अनुमति दे तो सरकार पुनर्विचार करने और उचित निर्णय लेने को भी तैयार है। इन विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए, हमें सरकार द्वारा इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने में कोई बाधा नहीं दिखती। हम स्पष्ट करते हैं कि यह नीतिगत मामला है, ऐसा कोई कारण नहीं है कि केंद्र को ऐसा करने से रोका जाए।

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