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नई दिल्ली। मनरेगा को लेकर कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने सोमवार को केंद्र सरकार पर जुबानी हमला किया। केंद्र सरकार पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को जानबूझकर खत्म करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इसे बदला गया तो भारत की ग्रामीण आबादी के लिए इसके नतीजे बहुत बुरे होंगे।
उनकी यह टिप्पणी संसद द्वारा विपक्ष के कड़े विरोध के बीच विकसित भारत गारंटी फॉर एम्प्लॉयमेंट एंड लाइवलीहुड मिशन (ग्रामीण) बिल पास किए जाने के कुछ दिनों बाद आई है। एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार में छपे एक लेख में सोनिया गांधी ने तर्क दिया कि यूपीए सरकार के तहत 2005 में लागू किया गया मनरेगा, जो काम के संवैधानिक अधिकार की गारंटी देने वाला एक अधिकार-आधारित कानून था, उसे बिना किसी चर्चा, सलाह-मशविरे या संसदीय प्रक्रियाओं का सम्मान किए प्रभावी ढंग से खत्म किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का नाम हटाना तो बस शुरुआत है। सोनिया गांधी ने इसे दुनिया के सबसे बड़े सोशल सिक्योरिटी प्रोग्राम के गहरे संरचनात्मक विनाश का प्रतीक बताया। सोनिया गांधी के अनुसार, मनरेगा को खत्म करने की कोशिश रातों-रात शुरू नहीं हुई। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सालों से इसे धीरे-धीरे खत्म करने का तरीका अपनाया है, बजट में ठहराव, भुगतान में देरी और जिसे उन्होंने अधिकार छीनने वाली टेक्नोलॉजी कहा, उसके जरिए धीरे-धीरे इस योजना को खोखला किया जा रहा है, जिससे यह जमीन पर ज्यादा से ज्यादा अप्रभावी होती जा रही है।
कांग्रेस ने अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर मांग की थी कि बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाए और बाद में इसे वापस लेने पर जोर दिया। इन आपत्तियों और विपक्षी सांसदों के वॉकआउट के बाद भी दोनों सदनों में यह कानून पास हो गया। इसके बाद बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली और रविवार को यह कानून बन गया। सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि नया कानून एक वैधानिक रोजगार गारंटी को एक ऐसे नौकरशाही, मनमाने कार्यक्रम से बदल देता है जिससे ग्रामीण रोजगार सहायता का स्वरूप मौलिक रूप से बदल जाता है।
उन्होंने कहा कि डिमांड के हिसाब से मिलने वाली, बिना किसी लिमिट वाली रोजगार योजना की जगह केंद्र सरकार ने तय बजट सीमा लगा दी है। यह बदलाव मनरेगा के मूल वादे पर सीधा हमला है। उन्होंने उन प्रावधानों पर भी जोर दिया जिनके अनुसार साल भर काम खत्म हो जाएगा, खेती के पीक सीजन के दौरान 60 बिना काम वाले दिन होंगे, और राज्यों का फंडिंग में हिस्सा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया जाएगा। सोनिया गांधी ने कहा कि खर्च का एक बड़ा हिस्सा राज्यों पर डालकर, मोदी सरकार इसे लागू करने से हतोत्साहित कर रही है और चेतावनी दी कि पहले से ही खराब राज्यों की फाइनेंसियल हालत ष्और भी खराब हो जाएगी।
केंद्र पर बहुत ज्यादा केंद्रीकरण का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि नया फ्रेमवर्क ग्राम सभाओं और पंचायतों को नजरअंदाज करता है और विकेन्द्रीकृत प्लानिंग की जगह पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान से जुड़े टॉप-डाउन मॉडल को लाता है। कांग्रेस नेता ने कहा कि यह बदले की भावना से किया गया केंद्रीकरण है। सरकार के इस दावे को खारिज करते हुए कि नई योजना से 125 दिनों तक रोजगार की गारंटी मिलेगी, उन्होंने इस वादे को गुमराह करने वाला और नामुमकिन बताया।
सोनिया गांधी ने ग्रामीण मजदूरी बढ़ाने, मजबूरी में होने वाले पलायन को रोकने और स्थानीय स्व-शासन को मजबूत करने में मनरेगा की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान, यह उन कुछ तरीकों में से एक था जिसके जरिए सबसे गरीब परिवारों तक मदद पहुंची। उन्होंने कहा कि काम के अधिकार को खत्म करने को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने इसे अधिकारों पर आधारित कानूनों पर एक बड़े हमले से जोड़ा, जिसमें सूचना, शिक्षा, वन अधिकार और भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानून शामिल हैं।
उन्होंने आगे कहा कि मनरेगा ने महात्मा गांधी के सर्वोदय, यानी सभी के कल्याण के विजन को साकार किया और काम के संवैधानिक अधिकार को लागू किया। इसका खत्म होना हमारी सामूहिक नैतिक विफलता है, जिसके वित्तीय और मानवीय परिणाम आने वाले सालों में भारत के करोड़ों कामकाजी लोगों को भुगतने पड़ेंगे। अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है कि हम एकजुट हों और उन अधिकारों की रक्षा करें जो हम सभी की रक्षा करते हैं।
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