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रायपुर। 1986 में रुके हुए बिल भुगतान के लिए कर्मचारी से 100 रुपए रिश्वत लेने के आरोपी को छत्तीसगढ हाईकोर्ट ने 39 साल बाद बरी कर दिया है। कोर्ट ने निचली अदालत से सुनाई गई सजा को निरस्त मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में बिल असिस्टेंट रहे जगेश्वर प्रसाद अवस्थी को बाइज्जत बरी किया। बता दें कि 100 रुपए की रिश्वत लेने के मामले में निचली अदालत ने अवस्थी को दोषी ठहराया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उन्हें आखिरकार राहत मिल गई। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वत मांगने पक्के सबूत नहीं मिले हैं, ऐसे में आरोपी को बरी किया जाता है। कोर्ट के इस फैसले से यह भी सिद्ध हो गया न्याय भले ही देर से मिले लेकिन अंधेर नहीं।
वित्त विभाग में बिल सहायक के पद पर कार्यरत थे अवस्थाी
उल्लेखनीय है कि अपीलकर्ता रायपुर निवासी रामेश्वर प्रसाद अवस्थी एमपीएसआरटीसी रायपुर के वित्त विभाग में बिल सहायक के पद में कार्यरत थे। शिकायतकर्ता अशोक कुमार वर्मा ने वर्ष 1981 से 1985 के दौरान सेवाकाल के बकाया बिल भुगतान के लिए अपीलकर्ता रामेश्वर प्रसाद से संपर्क किया. उसने सेवाकाल के बकाया बिल भुगतान के लिए 100 रुपए की मांग की। जिसके बाद अशोक कुमार ने इसकी शिकायत कर दी. जिसके बाद तब के लोकायुक्त ने ट्रैप बिछाया और फिनॉल्फ्थेलीन पाउडर लगे नोटों के साथ उन्हें पकड़ लिया गया. साल 2004 में निचली अदालत ने उन्हें एक साल की जेल की सजा सुना दी थी।
साक्ष्य पेश करने में विफल रहा अभियोजन पक्ष
इस सजा के खिलाफ जगेश्वर प्रसाद अवस्थी हाईकोर्ट चले गए। इस मामले में चली लंबी सुनवाई के बाद अब जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि, अभियोजन पक्ष अपने साक्ष्य भार का निर्वहन करने में विफल रहा है। साक्ष्य, चाहे मौखिक हों, दस्तावेजी हों, या परिस्थितिजन्य हों, रिश्वतखोरी के कथित अपराध के आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में विफल रहता है. इसलिए, निचली अदालत द्वारा दर्ज दोषसिद्धी अस्थाई है, इसके साथ ही कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए दोषसिद्धी और सजा को रद्द किया है।
अवस्थी का यह पक्ष भी रहा मजबूत
अवस्थी का पक्ष यह भी था कि तब उनके पास तो बिल पास करने का अधिकार ही नहीं था। वह अधिकार उन्हें रिश्वत मांगने की कथित तारीख के एक महीने बाद मिला था। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि केवल जेब से रंगे हुए नोट मिल जाना ही सजा के लिए काफी नहीं है। रिश्वत मांगने का इरादा और उसका पक्का सबूत होना बहुत जरूरी है। बहरहाल 39 साल की लंबी कानूनी माथापच्ची के बाद अवस्थी अब हर आरोप से आजाद हैं।
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