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संघ प्रमुख ने नर्मदा परिक्रमा पुस्तक का किया विमोचन : हमने विश्व का किया नेतृत्व किया पर किसी राष्ट्र पर नहीं पाई विजय, चींटी से सीख लेने दिया मंत्र
इंदौर। आरएसएस चीफ मोहन भागवत शनिवार को दो दिवसीय दौरे पर इंदौरे पहुंचे। उन्होंने रविवार को पुस्तक 'नर्मदा परिक्रमा' का विमोचन किया। यह पुस्तक पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा लिखी गई है। इस दौरान मोहन भागवत ने सभा को संबोधित करते हुए चींटी से सीख लेकर जीवन जीने का मंत्र दिया।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि कुछ लोग बचपन में ही सभी इच्छाओं को त्यागने का श्रेय प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन हर किसी में वह शक्ति नहीं होती। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह मार्ग एक चींटी के समान होता है जो धीरे-धीरे छोटे-छोटे कदम उठाकर फल की ओर बढ़ती है। जिस फल को एक पक्षी झट से झपटकर एक झटके में चूस लेता है, चींटी धीरे-धीरे वहां पहुंचती है और अपने छोटे से मुंह से उतना ही रस चूसती है जितना उसमें समा सकता है। इसे पिपीलिका मार्ग (चींटी का मार्ग) कहते हैं।
दुनिया में हर प्रकार के लोग
उन्होंने कहा कि दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं और सबके लिए रास्ते हैं। उन सबकी मान्यता भी है। उसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। बस अपने रास्ते को पहचानकर कैसे चलते हैं, बस उसी की बात होती है। कभी-कभी उत्तम रास्ते को मनोयोग से करने से जो नहीं प्राप्त होता है, वह सामान्य लोग इस चींटी वाले कदम से प्राप्त कर लेते हैं।
अनुभूति और जागरूकता ही सत्य
मोहन भागवत ने कहा कि एकाग्रचित्त होकर मां नर्मदा के दर्शन करो। तब तुम इस नाटकीय संसार से दूर हटकर अपने वास्तविक स्वरूप में लौट जाओगे। क्षण भर के लिए ही सही, यह अनुभव हर बार होता है, लेकिन उसके लिए भक्ति और भाव चाहिए। अगर कोई दृढ़ता से मानता है कि नर्मदा का जल केवल हाइड्रोजन आॅक्साइड है तो यह उनके लिए नहीं है, क्योंकि उनके लिए इसमें कोई सार नहीं है, क्योंकि यहां अनुभूति ही ईश्वर है, अनुभूति ही सत्य है। जागरूकता ही सत्य है।
हमने किया विश्व का नेतृत्व
उन्होंने कहा कि हमने विश्व का नेतृत्व किया, फिर भी हमने कभी किसी राष्ट्र पर विजय नहीं पाई, कभी किसी के व्यापार को दबाया नहीं, कभी बदला नहीं लिया, कभी जबरन धर्मांतरण नहीं कराया। हम जहां भी गए, हमने सभ्यता दी, ज्ञान दिया, शास्त्र पढ़ाए और जीवन को उन्नत बनाया। हर राष्ट्र की अपनी पहचान थी, फिर भी उनके बीच हमेशा आपसी संवाद रहा। आज वह संवाद गायब है।
जो माता-पिता को छोड़ देते हैं उनके अंदर संस्कार नहीं
भागवत ने आगे कहा कि आज मनुष्य के पास इतना ज्ञान है कि वह बहुत सी बातों को प्रत्यक्ष करता है, जो पहले हम नहीं करते थे। इससे तथाकथित विकास हुआ, लेकिन पर्यावरण बिगड़ा। मनुष्य भौतिक दृष्टि से उन्नत बने, लेकिन परिवार टूटने लगे और आपस में पटती नहीं है। लोग माता-पिता को रास्ते में छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके अंदर संस्कार नहीं है।
ज्ञान और कर्म दोनों जरूरी
संघ प्रमुख ने कहा, यह आवश्यक है: ज्ञान और कर्म, ये दो मार्ग हैं। यह आकाश में उड़ने या चींटी की तरह कदम दर कदम आगे बढ़ने जैसा है। ज्ञान और कर्म दोनों आवश्यक हैं। एक ज्ञानी व्यक्ति जो निष्क्रिय रहता है, वह किसी काम का नहीं होता। वास्तव में जब बुद्धिमान लोग निष्क्रिय रहते हैं तो आपदाएं आती हैं और अगर कोई बिना ज्ञान के कार्य करता है तो वह मूर्खों का काम बन जाता है।
ज्ञान दिन सिखाता है जीवन का शाश्वत ज्ञान
उन्होंने कहा, जीवन का ज्ञान, वह शाश्वत ज्ञान जो हमें प्रतिदिन सिखाता है, सदैव हमारे साथ है। यह लोग हैं, तपस्वी संत हैं, हमारी प्रकृति है, हमारे पहाड़ हैं, हमारी नदियां हैं, हमारे पत्थर हैं, हमारे पेड़ हैं और हमारे पशु-पक्षी हैं। इनमें से हम किसकी पूजा नहीं करते? हम सबकी पूजा करते हैं। इन सभी के लिए हमारे पास पूजा के दिन हैं, क्योंकि हर जगह चेतना है और हर जगह पवित्रता है। जहां कहीं भी महानता या उत्कृष्टता प्रकट होती है, उसे एक सामान्य व्यक्ति भी देख सकता है और हमने उसे पूजा का विषय बनाया है।
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